जैसा की इसके नाम से ही विदित होता है कि यह अभय प्रदान करती है इसीलिए इसका नाम अभय मुद्रा है। अभय और ज्ञान मुद्रा एक साथ की जा सकती है।
आपने भगवान के चित्रों में उन्हें आशीर्वाद देते हुए देखा ही होगा, वही अभय मुद्रा है। अँगुठे और तर्जनी अँगुली मिलाकर भी अभय मुद्रा की जाती है और आशीर्वाद की मुद्रा भी अभय मुद्रा कही जाती है।
विधि- सर्वप्रथम किसी भी सुखासन में बैठकर अपने दोनों हाथों की हथेलियों को सामने की ओर करते हुए कंधे के पास रखते हैं। ज्ञान मुद्रा करते हुए आँखों को बंद कर गहरी श्वास लें और छोड़ें और शांति तथा निर्भिकता को महसूस करें। यही है अभय मुद्रा। इसे अभय ज्ञान मुद्रा भी कहते हैं।
लाभ- इस मुद्रा का निरंतर अभ्यास करने से मन में किसी भी तरह का भय नहीं रहता। इससे मन में शांति, निश्चिंतता और परोपकार का जन्म होता है। व्यक्ति खुद के भीतर शक्ति और शांति को महसूस करता है।