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प्राण, अपान और अपानवायु मुद्रा

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अनिरुद्ध जोशी

मुद्राओं का जीवन में बहुत महत्व है। मुद्रा दो तरह की होती है पहली जिसे आसन के रूप में किया जाता है और दूसरी हस्त मुद्राएं होती है। मुद्राओं से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ प्राप्त किया जा सकता है। यहां प्रस्तुत है प्राण, अपान और अपानवायु मुद्रा की विधि और लाभ।
 
प्राण मुद्रा : छोटी अंगुली (चींटी या कनिष्ठा) और अनामिका (सूर्य अंगुली) दोनों को अंगूठे से स्पर्श करो। इस स्थिति में बाकी छूट गई अंगुलियों को सीधा रखने से अंग्रेजी का 'वी' बनता है।
 
प्राण मुद्रा के लाभ : प्राण मुद्रा हमारी प्राण शक्ति को शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करती है। इसके कारण व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है। यह मुद्रा नेत्र और फेंफड़े के रोग में लाभदायक सि‍द्ध होती है। इससे विटामिनों की कमी दूर होती है। इस मुद्रा को प्रतिदिन नियमित रूप से करने से कई तरह के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
 
अपान मुद्रा : मध्यमा और अनामिका दोनों को आपस में मिलाकर उनके शीर्षों को अंगूठे के शीर्ष से स्पर्श कराएं। बाकी दोनों अंगुलियों को सीधा रखें।
 
अपान के लाभ : इस मुद्रा को करने से मधुमेह, मूत्र संबंधी रोग, कब्ज, बवासीर और पेट संबंधी रोगों में लाभ मिलता है। गर्भवती महिलाओं के लिए यह मुद्रा लाभदायक बताई गई है। अपान वायु का संबंध पृथ्वी तत्व और मूलाधार चक्र से है। 
 
अपान वायु मुद्राः अंगूठे के पास वाली पहली उंगली अर्थात तर्जनी को अंगूठे के मूल में लगाकर मध्यमा और अनामिका को मिलाकर उनके शीर्ष भाग को अंगूठे के शीर्ष भाग से स्पर्श कराएं। सबसे छोटी उंगली (कनिष्ठिका) को अलग से सीधी रखें। इस स्थिति को अपान वायु मुद्रा कहते हैं।
 
अपान वायु मुद्रा के लाभ : हृदय रोगियों के लिए यह मुद्रा बहुत ही लाभदायक बताई गई है। इससे रक्तचाप को ठीक रखने में सहायता मिलती है। पेट की गैस एवं शरीर की बेचैनी इस मुद्रा के अभ्यास से दूर होती है। आवश्यकतानुसार हर रोज 20 से 30 मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है।

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