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वृक्षासन योग से बढ़ाएं स्फूर्ति और एकाग्रता

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संस्कृत शब्द वृक्ष को अंग्रेजी में ट्री कहते हैं। इसके पर्यायवाची शब्द है झाड़ और पेड़। वृक्षासन को करने से व्यक्ति की आकृति वृक्ष के समान नजर आती है इसीलिए इसे वृक्षासन कहते हैं

अवधि/दोहराव : जब तक इस आसन की स्थिति में आसानी से संतुलन बनाकर रह सकते हैं सुविधानुसार उतने समय तक रहें। एक पैर से दो या तीन बार किया जा सकता है।

आसन की विधि : पहले सावधान मुद्रा में खड़े हो जाएं। फिर दोनों पैरों को एक दूसरे से कुछ दूर रखते हुए खड़े रहें और फिर हाथों को सिर के ऊपर उठाते हुए सीधाकर हथेलियों को मिला दें।

इसके बाद दाहिने पैर को घुटने से मोड़ते हुए उसके तलवे को बाईं जांघ पर टिका दें। इस स्थिति के दौरान दाहिने पैर की एड़ी गुदाद्वार-जननेंद्री के नीचे टिकी होगी। बाएं पैर पर संतुलन बनाते हुए हथेलियां, सिर और कंधे को सीधा एक ही सीध में रखें। यह स्थिति वृक्षासन की है।

वृक्षासन से लाभ : इससे पैरों की स्थिरता और मजबूती का विकास होता है। यह स्नायुमण्डल का विकास कर पैरों को स्थिरता प्रदान करता है। यह कमर और कुल्हों के आस पास जमीं अतिरिक्त चर्बी को हटाता है तथा दोनों ही अंग इससे मजबूत बने रहते हैं। यह तोंद नहीं निकलने देता।

इस सबके कारण इससे मन का संतुलन बढ़ता है। मन में संतुलन होने से आत्मविश्वास और एकाग्रता का विकास होता। इसे निरंतर करते रहने से शरीर और मन में सदा स्फूर्ति बनी रहती है।

संकलन - अनिरुद्ध

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