आसन परिचय : संस्कृत शब्द पद्म का अर्थ होता है कमल। इसीलिए पद्मासन को कमलासन भी कहते हैं। ध्यान मुद्रा के लिए यह आसन महत्वपूर्ण है।
आसन लाभ : पद्मासन से पैरों का रक्त-संचार कम हो जाता है और अतिरिक्त रक्त अन्य अंगों की ओर संचारित होने लगता है जिससे उनमें क्रियाशीलता बढ़ती है। यह तनाव हटाकर चित्त को एकाग्र कर सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है। छाती और पैर मजबूत बनते हैं। वीर्य रक्षा में भी मदद मिलती है। नियमित अभ्यास से पेट कभी बाहर नहीं निकलता।
पद्मासन में प्राणायाम करने से साधक को या रोगी का चित्त शांत होता है। साधना और ध्यान के लिए यह आसन श्रेष्ठ है। इससे चित्त एकाग्र होता है। चित्त की एकाग्रता से धारणा सिद्ध होती है।
अवधि/दोहराव : प्रारंभ में यह आसन 30 सेकंड के लिए करना चाहिए फिर सुविधानुसार समय को बढ़ाया जा सकता है। इस आसन में पारंगत होने के लिए दो से तीन बार करना चाहिए।
सावधानी : पैरों में किसी भी प्रकार का अत्यधिक कष्ट हो तो यह आसन न करें। साइटिका अथवा रीढ़ के निचले भाग के आसपास किसी प्रकार का दर्द हो या घुटने की गंभीर बीमारी में इसका अभ्यास न करें। पद्मासन समस्त व्याधियों को नष्ट करता है। समस्त व्याथियों से अभिप्राय दैहिक, दैविक और भौतिक व्याथियों से हैं।
आसन विधि :
स्टेप 1- दोनों पैरों को सीधा कर दंडासन की स्थिति में भूमि पर बैठ जाइए।
स्टेप 2- दाहिने पैर के अंगुठे को बाएं हाथ से पकड़कर घुटने मोड़ते हुए दाहिने पैर के पंजे को बाईं जांघ के मूल पर रखिए।
स्टेप 3- बाएं पैर के अंगुठे को दाहिने हाथ से पकड़कर घुटने मोड़ते हुए बाएं पैर के पंजे को दाहिनी जांघ पर के मूल पर रखिए।
स्टेप 4- दोनों घुटने भूमि पर टिकें हो और पैर के तलवे आकाश की ओर। रीढ़, गला व सिर सीधी रेखा में रखिए।
स्टेप 5- हथेलियों को घुटनों पर रखिए या एक हथेली को दूसरी पर रखकर गोद में रखिए। आंखें बंद कर सांसों को गहरा खींचते हुए सामान्य गति कर लें।
स्टेप 6- आसन से वापस लौटने के लिए पहले बाएं पैर के पंजे को दाहिने हाथ से पकड़कर लंबा कर दें। फिर दाहिने पैर के पंजे को बाएं हाथ से पकड़कर लंबा कर दें और पुन: दंडासन की स्थिति में आ जाए। यह एक ओर से किया गया आसन है अब आप पहिले बाएं पैर को जंघा पर रखकर इसे आस को करें।