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साल 2016 : रिक्त पदों को लेकर विधि मंत्रालय को पड़ी फटकार

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नई दिल्ली। उच्च न्यायपालिका में बढ़ते रिक्त पदों को लेकर इस साल कानून मंत्रालय को निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की फटकार का कई बार सामना करना पड़ा। यहां तक कि उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में नियुक्ति से संबंधित दिशा-निर्देशों के मसौदे को अंतिम रूप देने का मंत्रालय का प्रयास भी अंजाम तक नहीं पहुंच सका। मंत्रालय ने इस साल 126 न्यायाधीशों की नियुक्ति की, जो बीते कई वर्षों में सर्वाधिक है।
मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में 24 अप्रैल को हैरान करने वाला वाकया हुआ जब प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में भावुक हो उठे। उन्होंने न्यायाधीशों के पदों को वर्तमान 21,000 से बढ़ाकर 40,000 करने में सरकार की ‘निष्क्रियता’ पर खेद व्यक्त करते हुए कहा कि आप सारा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते। असामान्य रूप से भावुक ठाकुर ने विधि आयोग द्वारा वर्ष 1987 में की गई अनुशंसा को याद किया जिसमें प्रति 10 लाख लोगों पर न्यायाधीशों की संख्या 10 से बढ़ाकर 50 करने का सुझाव था।
 
ठाकुर द्वारा न्यायाधीश-आबादी अनुपात पर विधि आयोग की अनुशंसा का हवाला देने के कुछ दिन बाद तत्कालीन विधिमंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा कि वह रिपोर्ट वैज्ञानिक आंकड़ों पर आधारित नहीं थी। इस सम्मेलन में यह फैसला हुआ कि लंबित मामलों की संख्या में कमी लाने के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उच्च न्यायालयों में पुन: नियुक्ति के लिए संविधान के अत्यंत विशिष्ट प्रावधान का उपयोग किया जाएगा।
 
विधि मंत्रालय ने सम्मेलन के ब्योरों को मंजूरी देने के कुछ दिन बाद संसदीय समिति को बताया कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों से निपटने की कोई व्यवस्था नहीं है। फिलहाल सरकार के पास 6 उच्च न्यायालयों के 18 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की पुन: नियुक्ति लंबित है। (भाषा)

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