हिन्दू धर्म में अक्षय तृतीया का अत्यंत महत्व है। इसे भगवान भगवान परशुराम की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। यह शुभ दिन हर मामले में अक्षय फल प्रदान करने वाला स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है।
इस दिन स्नान, दान, यज्ञ, हवन, पूजन एवं अनुष्ठान विशेष यप से फलदायी होते हैं जिनका अनंत गुना फल प्राप्त होता है और शुभ कार्यों के लिए भी अक्षय तृतीय का दिन अति उत्तम माना गया है।
इन वस्तुओं का करें दान -
सूर्य की शुभता हेतु गेहूं का सत्तू, लाल चंदन, गुड़, लाल वस्त्र, ताम्रपात्र तथा फल-फूल का दान मंदिर में दें।
चंद्रमा की मजबूती के लिए चावल, घी, चीनी, मोती, दूध, सफेद मिठाई, शंख, कपूर का दान करें।
मंगल की शुभता के लिए जौ का सत्तू, गेहूं, लाल मसूर, घी, गुड़, शहद, मूंगा आदि का दान करें।
बुध की अनुकूलता के लिए हरे रंग की चीजें, जैसे- हरे वस्त्र, मूंग दाल, हरे फल तथा सब्जी का दान करें।
गुरु की प्रसन्नता के लिए पीली चीजों जैसे केला, आम, पपीते का दान करें। केले के पेड़ में हल्दी मिश्रित जल चढ़ाकर घी का दीपक जलाएं।
शुक्र शांति के लिए इत्र दान, सुगंध दान, सुहागिनों को वस्त्र एवं श्रंगार सामग्री देकर सम्मानित करें। इसके अलावा मिश्री, सत्तू, ककड़ी, खरबूजा, दूध, दही का दान करें।
शनि एवं राहु के लिए एक नारियल को मोती में लपेटकर सात बादाम के साथ दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर में चढ़ा दें। केतु की शांति हेतु सप्त धान्य, पंखे, खड़ाऊ, छाता, लहसुनिया और नमक का दान करें।
सिर्फ दान-पुण्य ही नहीं किसी भी प्रकार के शुभ कार्य, सोने-चांदी की खरीदी एवं पुण्यदायी कर्मों के लिए अक्षय तृतीया का दिन अबूझ मुहूर्त होता है। ज्योतिषीय आधार पर भी इसका अत्यधिक महत्व माना गया है।
क्या होता है अबूझ मुहूर्त :
दरअसल ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों के अलावा सूर्य व चंद्रमा को सबसे महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है, जो पूरी सृष्टि को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। ज्योतिष अनुसार चंद्रमा मन का स्वामी व समस्त परिणामों को प्रत्यक्ष एवं शीघ्रता से प्रभावित करता है, वहीं सूर्य नक्षत्र मंडल का स्वामी व केंद्र है।
सूर्य एवं चंद्रमा दोनों को ही प्रत्यक्ष देवों का स्थान दिया गया है। अक्षय तृतीया के दिन दोनों ही ग्रह अपनी उच्च राशि में होते हैं। यही कारण है कि इस दिन अबूझ मुहूर्त होता है।