प्रत्येक वर्ष यह पर्व बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में पूरे भारत वर्ष में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। यह त्योहार प्रमुखता से हिन्दू और जैन धर्म के लोग मनाते हैं। इस वर्ष 18 अप्रैल-2018 को अक्षय तृतीया आ रही है-
अक्षय तृतीया का क्या महत्व है?
सर्व सिद्ध मुहूर्त के रुप में भी अक्षय तृतीया का बहुत अधिक महत्व है। माना जाता है इस दिन बिना पंचांग या शुभ मुहूर्त देखे आप हर प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, वस्त्र आभूषण आदि की खरीदारी, जमीन या वाहन खरीदना आदि को कर सकते हैं। पुराणों में इस दिन पितरों का तर्पण, पिंडदान या अन्य किसी भी तरह का दान अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
इतना ही नहीं इस दिन किए जाने वाला जप, तप, हवन, दान और पुण्य कार्य भी अक्षय हो जाते हैं।
अगर यह तिथि रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए जाने वाले दान-पुण्य के कार्यों का फल और अधिक बढ़ जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के पूजन का विधान है।
पूजन का समय
अक्षय तृतीया पूजन का शुभ मुहूर्त = प्रात: 05:56 से दोपहर 12:20 तक।
मुहूर्त की अवधि = 6 घंटा 23 मिनट
चौघड़िया मुहूर्त :
प्रातः मुहूर्त (लाभ, अमृत) = 05:57 से 09:09
प्रातः मुहूर्त (शुभ) = 10:45 से 12:21
दोपहर मुहूर्त (चर, लाभ) = 15:33 से 18:45
सायं मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) = 20:08 से 24:20
आज ही के दिन कई महापुरुषों का जन्म भी हुआ था। अक्षय तृतीया पर्व को कई नामों से जाना जाता है। इसे अखतीज और वैशाख तीज भी कहा जाता है। इस पर्व को भारतवर्ष के खास त्योहारों की श्रेणी में रखा जाता है। इस दिन स्नान, दान, जप, होम आदि अपने सामर्थ्य के अनुसार जितना भी किया जाए, अक्षय रुप में प्राप्त होता है।
अक्षय तृतीया कई मायनों से बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता है। बिना पंचांग देखे किसी भी शुभ कार्य का आरंभ किया जा सकता है। जिनके काम नहीं बन पाते हैं, या व्यापार में लगातार घाटा हो रहा है अथवा किसी कार्य के लिए कोई शुभ मुहुर्त नहीं मिल पा रहा हो तो उनके लिए यह दिन अति शुभ है। कोई भी नई शुरुआत करने के लिए अक्षय तृतीया का दिन बड़ा मंगलमयी माना जाता है। अक्षय तृतीया में सोना खरीदना बहुत शुभ माना गया है। इस दिन स्वर्णादि आभूषणों की ख़रीद-फरोख्त को भाग्य की शुभता से जोड़ा जाता है।
इस पर्व से अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। इसके साथ महाभारत के दौरान पांडवों के भगवान श्रीकृष्ण से अक्षय पात्र लेने का उल्लेख आता है। इस दिन सुदामा भगवान श्री कृष्ण के पास गए थे और भगवान ने उनसे मुट्ठी-भर भुने चावल प्राप्त किए थे।
इस तिथि में भगवान के नर-नारायण, परशुराम, हयग्रीव रुप में अवतरित हुए थे। इसलिए इन अवतारों की जयन्तियां मानकर इस दिन को उत्सव रुप में मनाया जाता है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी। इसी कारण से यह तिथि युग तिथि भी कहलाती है।
इसी दिन प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी खुलते हैं। वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मन्दिर में केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।
अक्षय तृतीया में पूजा, जप-तप, दान स्नानादि शुभ कार्यों का विशेष महत्व तथा फल रहता है। इस दिन गंगा इत्यादि पवित्र नदियों और तीर्थों में स्नान करने का विशेष फल प्राप्त होता है. यज्ञ, होम, देव-पितृ तर्पण, जप, दान आदि कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
अक्षय तृतीया के दिन गर्मी की ऋतु में खाने-पीने, पहनने आदि के काम आने वाली और गर्मी को शान्त करने वाली सभी वस्तुओं का दान करना शुभ होता है। इसके अतिरिक्त इस दिन जौ, गेहूं, चने, दही, चावल, खिचडी, ईश (गन्ना) का रस, ठण्डाई व दूध से बने हुए पदार्थ, सोना, कपड़े जल का घड़ा आदि दान दें। इस दिन पार्वती जी का पूजन भी करना शुभ रहता है।
अक्षत तृतीया व्रत एवं पूजा
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान इत्यादि नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रत या उपवास का संकल्प करें। पूजा स्थान पर विष्णु भगवान की मूर्ति या चित्र स्थापित कर पूजन आरंभ करें भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं, तत्पश्चात उन्हें चंदन, पुष्पमाला अर्पित करें।
पूजा में में जौ या जौ का सत्तू, चावल, ककड़ी और चने की दाल अर्पित करें तथा इनसे भगवान विष्णु की पूजा करें। इसके साथ ही विष्णु की कथा एवं उनके विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। पूजा समाप्त होने के पश्चात भगवान को भोग लगाएं व प्रसाद सभी भक्तों में बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें। सुख शांति तथा सौभाग्य समृद्धि हेतु इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती जी का पूजन विशेष रूप से किया जाता है।
इस दिन किए गए कार्यों में शुभता प्राप्त होती है,भविष्य में उसके शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।
यह दिन सभी के जीवन में अच्छे भाग्य और सफलता को लाता है, इसलिए लोग जमीन जायदाद संबंधी कार्य, शेयर मार्केट में निवेश रियल एस्टेट के सौदे या कोई नया बिजनेस शुरू करने जैसे काम इसी दिन करने की चाह रखते हैं।
इस तिथि के दिन महर्षि गुरु परशुराम का जन्म दिन होने के कारण इसे परशुराम तीज या परशुराम जयंती भी कहा जाता है। इस दिन गंगा स्नान का भारी महत्व है। इस दिन स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्नाता के लिए कलश, पंखा, खडाऊं, छाता,सत्तू, ककड़ी, खरबूजा, शक्कर आदि पदार्थ ब्राह्मण को दान करने चाहिए। उसी दिन चारों धामों में श्री बद्रीनाथ नारायण धाम के पाट खुलते हैं इस दिन भक्तजनों को श्री बद्री नारायण जी का चित्र सिंहासन पर रख मिश्री तथा चने की भीगी दाल से भोग लगाना चाहिए। भारत में सभी शुभ कार्य मुहुर्त समय के अनुसार करने का प्रचलन है अत: इस शुभ तिथि का चयन किया जाता है, जिसे अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। इस त्योहार का वर्णन भविष्य पुराण एवं पद्म पुराण में प्रमुखता से मिलता है।