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akshaya tritiya 2021 : 14 मई को अक्षय तृतीया, जानिए कैसे मनाएं यह पर्व

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इस साल शुक्रवार, 14 मई 2021 को अक्षय तृतीया पर्व मनाया जा रहा है। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया यानी अक्षय तृतीया के दिन पूजा, जप-तप, दान, स्नानादि आदि शुभ कार्यों का विशेष महत्व तथा फल प्राप्त होता है। ग्रीष्म ऋतु का आगमन लहराती फसल से लोगों में खुशी का संचार कर होता है। इसके साथ ही विभिन्न पर्वों की भी दस्तक सुनाई देने लगती है।
 
धर्म व मानव मूल्यों की रक्षा हेतु श्री हरि विष्णु देशकाल के अनुसार अनेक रूपों को धारण करते हैं। जिसमें भगवान परशुराम, नर-नारायण, हयग्रीव (?) के तीन पवित्र व शुभ अवतार अक्षय तृतीया को उदय हुए। मानव कल्याण की इच्छा से धर्म शास्त्रों में पुण्य शुभ पर्व की कथाओं की आवृत्ति हुई है। जिसमें अक्षय तृतीया का व्रत भी प्रमुख है जो अपने आप में स्वयंसिद्ध है। अक्षय तृतीया में सतयुग किंतु कल्पभेद से त्रेतायुग की शुरुआत होने से इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है। 
 
लॉक डाउन में मनेगा त्योहार- इस तिथि का जहां धार्मिक महत्व है वहीं यह तिथि व्यापारिक रौनक बढ़ाने वाली भी मानी गई है, लेकिन इस बार कोरोना महामारी के चलते स्वर्णादि आभूषणों की खरीद फरोख्त नहीं हो सकेगी और लॉक डाउन का पालन करते हुए ही सादगीपूर्वक घर पर यह त्योहार मनाना होगा। इस दिन जहां बाजार की रौनक गायब रहेगी वहीं, सभी को घर में रहकर ही इस त्योहार को मनाना उचित रहेगा। 
 
क्या करें दान- वैशाख मास में भगवान भास्कर की तेज धूप तथा प्रचंड गर्मी से प्रत्येक जीवधारी भूख-प्यास से व्याकुल हो उठता है इसलिए इस तिथि में शीतल जल, कलश, चावल, चने, दूध, दही, खाद्य व पेय पदार्थो सहित वस्त्राभूषणों का दान अक्षय व अमिट पुण्यकारी माना गया है।
 
किन देवता का करें पूजन- सुख, शांति, सौभाग्य तथा समृद्धि हेतु इस दिन शिव-पार्वती और नर-नारायण के पूजन का विधान है। इस दिन श्रद्धा विश्वास के साथ व्रत रख जो प्राणी गंगा जमुनादि तीर्थों में स्नान कर अपनी शक्तिनुसार तीर्थस्थल व घर में ब्राह्मणों द्धारा यज्ञ, होम, देव-पितृ तर्पण, जप, दानादि शुभ कर्म करते हैं उन्हें उन्नत व अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
 
तृतीया तिथि का महत्व- तृतीया तिथि मां गौरी की तिथि है जो बल, बुद्धिवर्धक मानी गई है। अतः सुखद गृहस्थ की कामना से जो भी विवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन मां गौरी व संपूर्ण शिव परिवार की पूजा करते हैं उनके सौभाग्य में वृद्धि होती है। यदि अविवाहित इस दिन श्रद्धा एवं विश्वास के साथ प्रभु शिव व माता गौरी को परिवार सहित शास्त्रीय विधि से पूजते हैं, उन्हें सफल व सुखद वैवाहिक सूत्र में जुड़ने का पवित्र अवसर मिलता है।
 
दुर्भाग्य का अंत- इसी दिन श्री बद्रीनारायण धाम के पट खुलते हैं, श्रद्धालु भक्त प्रभु की अर्चना-वंदना करते हुए विविध नैवेद्य अर्पित करते हैं, लेकिन इस बार वहां भी श्रद्धालुओं की भीड़ नजर नहीं आ सकेगी। अक्षय तृतीया सुख-शांति व सौभाग्य में निरंतर वृद्धि करने वाली तिथि मानी गई है। इस परम शुभ अवसर का जैसा नाम वैसा काम भी है अर्थात्‌ अक्षय जो कभी क्षय यानी नष्ट न हो, ऐसी युगादि तिथि में किए गए शुभ व धर्म कार्य वृद्धिदायक व अक्षय रहते हैं तथा दुर्भाग्य का अंत होता है।


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