Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

शंकराचार्य के इस गणित से दुनिया में आएगी नई क्रांति

Advertiesment
हमें फॉलो करें Shankaracharya Nischalanand Saraswatiji

नृपेंद्र गुप्ता

वैदिक गणित में पारंगत व्यक्ति के लिए गणित की गुत्थियों को सुलझाना बेहद आसान होता है। इसके जादू से गणित के कठिन से कठिन सवालों को चुटकी में हल किया जा सकता है। वैदिक गणित के आगे भी गणित है और वेदादि शास्त्रों के आधार पर उस गणित की खोज की है गोवर्धन मठ पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वतीजी ने। माना जा रहा है कि इसके सिद्धांतों से भौतिक विज्ञान को एक नई दिशा मिलेगी। इससे एक नई क्रांति आएगी और विज्ञान की दु्निया में कई बड़े चमत्कार देखने को मिलेंगे।
 

वेदादि शास्त्रों के अध्धयन से स्वामीजी ने गणित में शून्य और एक को लेकर ऐसी धारणाएं विकसित की हैं, जो वैज्ञानिकों से भिन्न हैं। उनके निष्कर्षों के आधार पर तो फिजिक्स के कई सूत्र खरे नहीं उतरते अर्थात अगर इस पर अधिक शोध किया जाए तो दुनिया में कई बदलाव होंगे। 
 
उन्होंने गणित की 10 किताबों की रचना की है, इनमें से 9 का प्रकाशन हो चुका है और 10वें ग्रंथ 'प्राथमिक वैदिकार्ष गणित' का प्रकाशन शीघ्र ही होने वाला है। इतना ही नहीं, पहली किताब 'स्वस्तिक गणित' का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशन के लिए तैयार है। 9वें ग्रंथ 'गणित सूत्रम' में 300 से अधिक सूत्र दिए गए हैं। 
 
स्वामीजी का दावा है कि इन ग्रंथों में गणित के वे मूलभूत सिद्धांत हैं, जो लाखों वर्ष पूर्व विलुप्त हो गए थे। उन्हें वेदादि शास्त्रों के आधार पर प्रकट किया गया है। इनमें शून्य को भावांक के रूप में ख्यापित किया गया है।
 
स्वामीजी ने आधुनिक बाइनरी सिस्टम में गणित की दृष्टि से एक बड़ी मौलिक भूल की ओर ध्यान आकर्षित किया है। उनके अनुसार आधुनिक बाइनरी सिस्टम (व्यंक पद्धति) में शुन्य और एक में समस्त संख्या का सम्मिवेश किया जाता है, परंतु इसमें गणितीय दृष्टि से ही मौलिक भूल सन्निहित है। इसका विमार्जन गणित सूत्रम, शुन्येकि सिद्धि और द्वंक पद्धति माध्यम से किया गया है। 
 
उन्होंने कहा कि फिजिक्स में गणित की जो पहेलियां हैं उनमें शुन्य को अभाव कोटि का मानकर सुलझाने का प्रयास किया गया है। अत: वैज्ञानिक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की त्रुटियां व्याप्त हैं। बौद्धों ने जिस प्रकार शुन्यवाद को अदूरदर्शितापूर्वक ख्यापित किया, इसी प्रकार उनकी अनुकृति कर गणितज्ञों ने शुन्य को अभाव मान लिया। जबकि एक निर्विशेष एक का नाम शुन्य है और सविशेष शून्य का नाम एक है। 1 में से 1 को घटाया जाए तो शुन्य की प्राप्ति होती है और शुन्य में एक जोड़ने पर एक की प्राप्ति होती है अत: शून्य और एक दोनों अनादि अंक है। इन सब गंभीर तथ्यों को 10 ग्रंथों के माध्यम से ख्यापित किया गया है। वयंक पद्धति, गणित दर्शन इन 10 पुस्तकों में शामिल है। 
 
अगलेे पन्ने पर... शंकराचार्य निश्चलानंदजी के गुरु की देन है वैदिक गणित, क्या है इसकी विशेषता...
 

वैदिक गणित के रचयिता श्री गोवर्धन मठ पुरी पीठ के मान्य 143वें जगदगुरु शंकराचार्य श्रीभारती कृष्णतीर्थजी हैं। उन्होंने 32 सूत्रों के माध्यम से पूरे विश्व को आश्चर्यचकित करने वाला गणित प्रदान किया। जिस गणित की गति ट्रैक्टर और बैलगाड़ी की तरह थी, उसे राजधानी एक्सप्रेस की गति प्रदान करने वाला वैदिक मैथेमेटिक्स है।
 
इसमें अल्प समय और मोदपूर्ण शैली में जटिल से जटिल प्रश्नों का समाधान गणित के माध्यम से होता है। जैसे बिजली के माध्यम से भिन्न-भिन्न अनेक प्रकार के कार्य की सिद्धि होती है, वैसे ही वैदिक गणित में जो सूत्र और प्रयोग सन्निहित किए गए हैं उसकी उपयोगिता गणित की सभी शाखाओं में समान रूप से प्राप्त है। अभिप्राय यह है कि गणित को सुगम और सरस बनाने वाला ग्रंथ वैदिक गणित है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भारतीय सीमा में घुसे चीनी सैनिक, जांबाज जवानों ने खदेड़ा...