देश के पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव बेहद अहम है, इसलिए न सिर्फ भाजपा को बल्कि सभी राजनीतिक दलों को इनके परिणामों का बेसब्री से इंतजार है। 10 फरवरी से शुरू हुए यूपी, गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखंड में 7 चरणों में चुनाव हो रहे हैं, कहीं दो चरणों में भी मतदान होगें। जिसके नतीजें 10 मार्च को आएंगे।
यूपी में तो पहले और दूसरे चरण के मतदान हो भी चुके हैं। चुनाव के शेष चरण 20, 23, 27 फरवरी और 3 व 7 मार्च को होने हैं।
यूपी का सियायी संग्राम
इन सभी राज्यों में यूपी का सियासी संग्राम सबसे बड़ा माना जा रहा है, क्योंकि माना जाता है कि दिल्ली की सत्ता की गली यहीं से गुजरती है। यहां 403 सीटों के लिए यह सियासी दंगल हो रहा है। जबकि पंजाब में 117 सीटों, उत्तराखंड में 70 सीटों, मणिपुर में 60 सीटों और 40 सीटों के लिए गोवा में चुनाव हो रहे हैं।
सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए यूपी की जीत बेहद होगी, ये न सिर्फ योगी बल्कि भाजपा के भविष्य का भी रास्ता तय करेगी। यहां सबसे ज्यादा सीटे होने की वजह से जो भी फैसला होगा, वो राज्य और केंद्र दोनों के लिए एक तरह से जनमत संग्रह की तरह होगा।
भाजपा की हार-जीत से ही जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव और राज्य सभा में बहुमत के आंकड़े पर असर पड़ेगा, इसी से तय होगा कि सरकार द्वारा भविष्य में लाए जा रहे बिल में विपक्ष की क्या भूमिका होगी और वे कितना सहयोग करेंगे या नहीं करेंगे।
आपको याद होगा कि साल 2017 में भाजपा ने बहुमत के साथ 325 सीटों पर जीत दर्ज की थी, वो भी सीएम चेहरे का ऐलान किए बगैर। जबकि इस बार तो योगी ही यूपी का सीएम चेहरा हैं।
पांच राज्यों में सियायत के इस महायुद्ध में बहुत बड़े- बड़े दाव लगे हुए हैं। यूपी में तो कोरोना महामारी के चलते ऑनलाइन और ऑफलाइन इलेक्शन कैंपेन चलाए जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने हालांकि अब ऑफलाइन प्रचार की भी अनुमति दे दी है।
यूपी में समाजवादी पार्टी, आरएलडी, बीएसपी और कांग्रेस ने अपने चिर-परिचित राजनीतिक दुश्मन के खिलाफ अपने खिलाड़ी उतारे हैं। हालांकि, सभी तरह के चुनावी विश्लेषण और अटकलें कम या ज्यादा सीटों के साथ भाजपा की जीत का दावा कर रहे हैं। सपा का गठबंधन नंबर दो पर हो सकता है।
कुछ सर्वेक्षण तो कहते हैं कि बीएसपी और कांग्रेस सिंगल डिजीट पर सिमट सकती हैं। हालांकि, बीजेपी की जीत इतनी भी आसान नहीं होगी, जितना समझा जा रहा है, क्योंकि भले ही सरकार ने किसान बिल वापस ले लिया हो, लेकिन उससे उपजे विरोध की आंच अभी मद्धम नहीं पड़ी है। यह भी याद रखा जाना चाहिए कि इस विरोध में शामिल बड़ा वर्ग इसी आसपास के क्षेत्रों से ही आता है।
माना जाता रहा है कि भाजपा के खात्मे के लिए चीन और पाकिस्तान जैसी अंतरराष्ट्रीय शक्तियां भी अपनी ताकत लगाती रही हैं। वहीं, हाल ही में पसरे कनार्टक हिजाब मुद्दे को भी विपक्ष मुस्लिमों को भाजपा के खिलाफ करने के लिए इस्तेमाल करेगा। वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के करीब 11 जिलों में जाट भी भाजपा के लिए चुनौती होंगे, जो 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का बड़ा वोट बैंक रहा है।
मोदी-शाह के बयानों के मायने
पीएम मोदी ने कहा था कि यूपी में पहले चरण के मतदान के बाद भाजपा का ध्वज फहराता हुआ नजर आ रहा है। गृह मंत्री अमित शाह ने भी शाहजहापुर में कहा कि पहले चरण के चुनावों ने भाजपा की जीत का आधार रख दिया है। इन दोनों बयानों से विपक्षी दलों के चेहरे पर मायूसी जरूर देखी जा रही है।
पंजाब के कैप्टन कैसे बदलेंगे समीकरण
अब पंजाब की बात करते हैं। कभी पंजाब के कांग्रेस के सिरमोर रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह इस चुनाव में भाजपा का साथ दे रहे हैं। पंजाब में भाजपा 65 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा को सहयोग कर रहे कैप्टन ने 37 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के विवाद में सीएम बने चरणजीत सिंह चन्नी यहां फिर से मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। जबकि सिद्धू को हाई कमान से उम्मीद थी कि उन्हें सीमए बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
पंजाब में रसूखदार मंडी वाले जो कृषि बिल के खिलाफ थे, इनकी इस चुनाव में हार-जीत को लेकर अहम भूमिका होगी। ये सारे समीकरण पंजाब चुनाव को बेहद दिलचस्प बनाने वाले हैं। बीजेपी, कांग्रेस और बसपा मैदान में है, लेकिन अटकलें लगाई जा रही हैं कि यहां आप पार्टी बाजी मार सकती है।
उत्तराखंड का कलह
यूपी की तरह उत्तराखंड में भी अंदरूनी कलह है, क्योंकि टिकट कटने से यहां भी कुछ नेता नाराज हैं। भाजपा शासित इस राज्य को एंटी-इन्कंबेंसी का सामना करना पड़ सकता है।
सीएम पुष्कर सिंह धामी का हिजाब मामले के संदर्भ में दिया गया बयान कि अगर उनकी पार्टी जीतती हैं तो राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लगाया जाएगा, किस करवट बैठता है यह तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
कांग्रेस में पूर्व सीमए हरिश रावत और प्रीतम सिंह के बीच दरार, टिकटों को लेकर असंतोष और सीएम चेहरे को लेकर कई मसले हैं, जिन्हें फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, जबकि इनका निपटारा किया जाना चाहिए था।
गोवा में पर्रिकर के बिना चुनाव
गोवा में करिश्माई और सक्षम नेता मनोहर पर्रिकर के बिना चुनाव हो रहे हैं, यह पहली बार है कि सीएम प्रमोद सावंत के नेतृत्व में भाजपा सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस, आप, तृणमूल कांग्रेस, विजय सरदेसाई के नेतृत्व वाली गोवा फॉरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) चुनाव लड़ रही है। पिछले चुनावों में एमजीपी और जीएफपी किंगमेकर थे। इस बार यहां क्या होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
मणिपुर में क्या होगा?
मणिपुर में, भाजपा और उसके सहयोगी दल अपने दम पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिसका लक्ष्य दो तिहाई बहुमत हासिल करना है, जिसमें कांग्रेस के साथ छह दलों का गठबंधन है। नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), नागा पीपुल्स पार्टी (एनपीएफ) भाजपा की सहयोगी हैं। जदयू कई सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सीएम बीरेन सिंह, अच्छी संख्या में सीटें हासिल करने के लिए आश्वस्त हैं और त्रिशंकु विधानसभा की संभावना से इनकार करते हैं। लेकिन यहां भी अभी से अटकलें लगाना गलत होगा, ये सत्ता के लिए लडे जा रहे राजनीतिक युद्ध हैं, क्या होगा कोई नहीं जानता।