ज्योतिष एक गहन विषय है। यह अथाह सागर की भांति है जिसकी संपूर्ण थाह पाना असंभव है। ज्योतिष शास्त्र में ऐसे अनेक महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं जिनके विधिवत् अध्ययन के बिना किसी भी जातक की जन्मपत्रिका का सटीक फलित नहीं किया जा सकता है।
ज्योतिष का ऐसा ही एक अति-महत्वपूर्ण सिद्धांत है- 'ग्रहावस्था', जिसका सही विश्लेषण किए बिना किसी भी कुंडली का सही फलित किया जाना असंभव है। जिस प्रकार मनुष्यों की आयु अनुसार बचपन, यौवन एवं वृद्ध अवस्था होती है ठीक उसी प्रकार ज्योतिष में ग्रहों की उनके अंशों के अनुसार बाल, कुमार, युवा, वृद्ध और मृत अवस्था होती है। इन्हीं विभिन्न अवस्थाओं के अनुरूप ग्रह अपने शुभाशुभ फल में वृद्धि व न्यूनता करते हैं।
उदाहरण के लिए यदि किसी जन्मपत्रिका में कोई राजयोगकारक शुभ ग्रह अपनी बाल, वृद्ध या मृत अवस्था में हो तो वह अपने शुभफल में कमी करता है। इसके विपरीत जन्मपत्रिका का अशुभ ग्रह यदि बाल, वृद्ध या मृत अवस्था में हो तो यह जातक के लिए अच्छा होता है क्योंकि ऐसा ग्रह अपनी अशुभता में कमी करता है।
आइए जानते हैं कि ग्रह कब बाल, कुमार, युवा, वृद्ध और मृत अवस्था में होते हैं-
सम एवं विषम राशि के नियम-
इससे पूर्व कि हम ग्रहों के अंश अनुसार उनकी अवस्था की जानकारी दें, हम अपने पाठकों को एक विशेष नियम के बारे में बताना आवश्यक समझते हैं जो सम एवं विषम राशियों में ग्रहों की स्थिति से संबंधित है। सम राशियों में स्थित ग्रह के अंश अनुसार उसकी अवस्था विषम राशि में उसके स्थित होने पर ठीक विपरीत हो जाती है। उदाहरणार्थ वृषभ (सम) राशि में स्थित 6 अंशों वाला 'बाल' अवस्था का ग्रह मेष (विषम) राशि में समान अंशों में स्थित होने पर भी 'वृद्ध' अवस्था वाला हो जाता है।
आइए अब जानते हैं कि किस अंश तक ग्रह की कौन सी अवस्था रहती है-
अवस्था -सम अंश-विषम अंश
बाल : 30 : 6
कुमार : 24 : 12
युवा :18 :18
वृद्ध :12 :24
मृत :06 :30
विशेष- शून्य (0) अंश का ग्रह चाहे सम या विषम किसी भी राशि में स्थित हो मृत अवस्था वाला ही माना जाता है जो ग्रह की सर्वाधिक निर्बल अवस्था होती है।
ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र