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भारतीय परंपरा में ज्योतिष का स्थान, महत्व, उपयोग और क्या है वेदों से संबंध

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डॉ. अनिता कपूर

, बुधवार, 11 जून 2025 (11:30 IST)
भारतीय परंपरा में ज्योतिष का स्थान और महत्व: 
वेदों से संबंध: ज्योतिष को वेदों के साथ जोड़ा जाता है, खासकर ऋग्वेद और यजुर्वेद में इसके संकेत मिलते हैं। इसे वेदांग माना गया है, यानी वेदों के अंग के रूप में, जो वेदों की सही व्याख्या और क्रियान्वयन में मदद करता है।ALSO READ: जाति जनगणना: मुगल और अंग्रेजों ने इस तरह जातियों में बांटा था हिंदुओं को
 
समय और कर्म का विज्ञान: ज्योतिष समय, ग्रहों की स्थिति, नक्षत्रों और राशियों का अध्ययन करता है। यह जीवन के विभिन्न पहलुओं—जैसे स्वास्थ्य, विवाह, करियर, वित्त और मानसिक स्थिति पर ग्रहों के प्रभाव का अनुमान लगाता है।
 
नियत घटनाओं का पूर्वानुमान: भारतीय ज्योतिष में जन्मकुंडली के आधार पर किसी व्यक्ति के जीवन की प्रमुख घटनाओं, उसके स्वभाव, क्षमताओं और आने वाले समय की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगाया जाता है।
 
धार्मिक और सामाजिक भूमिका: विवाह, गृहप्रवेश, व्यापार आदि महत्वपूर्ण कार्यों के शुभ समय (मुहूर्त) निर्धारित करने में ज्योतिष का व्यापक उपयोग होता है। यह समाज में निर्णय लेने का एक पारंपरिक माध्यम भी रहा है।
 
आध्यात्मिक दृष्टिकोण: ज्योतिष को कर्म के सिद्धांत से जोड़ा जाता है। ग्रहों की चाल और प्रभाव को कर्मों का परिणाम माना जाता है, जो व्यक्ति के जीवन को दिशा देता है।
 
प्रसिद्ध ग्रंथ और पांडित्य: पद्मपुराण, भरद्वाज संहिता, वराहमिहिर के 'बृहत्संहिता' और 'बृहज्जातक' आदि ग्रंथों में ज्योतिष के विस्तृत सिद्धांत और नियम लिखे गए हैं।
 
ज्योतिष के उपयोग:
     क्षेत्र                              उपयोग
धार्मिक : व्रत, पूजा, यज्ञ आदि के शुभ समय निर्धारण में
सामाजिक : विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश आदि के मुहूर्त
स्वास्थ्य : ग्रहों के आधार पर रोग और आरोग्य का पूर्वानुमान
कृषि : वर्षा, बुवाई और फसल कटाई के समय का निर्णय
राजनीति : चुनाव, शासन और युद्ध की संभावनाएं
आध्यात्मिक : आत्मा, पुनर्जन्म और कर्म के फल को समझने में।
 
भारतीय ज्ञान परंपरा भारतीय ज्योतिष शास्त्र केवल 'भविष्य बताने' का साधन नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में दिशा देने वाली एक व्यापक, वैज्ञानिक और दार्शनिक प्रणाली है। घटित कर्मों को केवल ईश्‍वर ही जानता है, कोई साधारण मनुष्‍य इसकी पूर्ण गणना नहीं कर सकता।

यह घटनाएं न केवल किसी भी आत्‍मा के पृथ्‍वी पर प्रवास का समय निर्धारित करती है, बल्कि ज्‍योतिषी के समक्ष हमेशा प्रथम चुनौती के रूप में खड़ी रहती है। वैदिक दर्शन शास्त्रानुसार मनुष्य के कर्म तीन प्रकार के हैं संचित, प्रारब्ध और द्रियामाण कर्म। इन तीनो के माध्यम से जन्म, जन्मांतर में किए गए कर्मों के कारण हमें सुख, दुख की अनुभूति होती है। कर्मों का फल प्रत्येक प्राणी को अनिवार्य व अपरिहार्य रूप में भोगना पड़ता है। 
 
हमारे ऋषियों ने जीवन के प्रत्येक पहलू को अनेक दृष्टिकोणों से देखा कि आयु क्या है - जन्म से मृत्यु तक का समय आयु कहलाता है। इस आयु को भी उन्होंने सृष्टि, अरिष्टायु, अल्पायु, मध्यायु, दीर्घायु, परमायु इत्यादि में बांटा है। ज्योतिष कभी किसी का भाग्य नही बदल सकता ये बात सब को पता होंनी चाहिए।ALSO READ: हनुमानजी की इन 5 तरीकों से भक्ति करने से दूर होगा गृह कलेश

वैसे ही कुंडली आप की रिपोर्ट कार्ड है और नतीजा है आपके संचित कर्म। आपने किसी भी जन्‍म में कुछ भी किया हो, वह हमेशा संचित होता रहता है। इन्‍हीं कर्म बंधनों को पूरा करने के लिए हम जन्‍म लेते हैं। अब संचित कर्म का कौन सा हिस्‍सा हमें वर्तमान जीवन में पूरा करना है, उसका आवंटन ईश्‍वर करते हैं और हमें आवंटित कर्म अर्थात प्रारब्‍ध के साथ धरती पर भेज देते हैं। 
 
ज्योतिष आप को संकेत देता है उपाय बताता है, चेतावनी देता है पर कर्म आपके होते हैं, और ये जरूरी नही कि, आप उनको भगवान मान के चलो। जीवन और मृत्यु मनुष्य के दो पक्ष है। जीवन के पक्ष में संघर्ष, निराशा, आशा, सफलता और अल्पकालिक सुख है तो मृत्यु एक सार्वभौमिक सत्य है।

जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु होनी है सिर्फ यही एक प्रत्यक्ष सत्य है। जीवन सिखाता है, रूलाता है, दिखाता है और समझाता भी है किन्तु मृत्यु में रीटेक नहीं होता। जीवन भाग्य से मिलता है लेकिन मृत्यु की प्रकृति कर्मो पर आधारित है। इसलिए ऐसे कर्म करने चाहिए जिससे मरने के बाद भी लोगों के जेहन में बने रहें।
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जीवन नदी की तरह हैं....सुख दुःख दो किनारे हैं। हर मेरी सोच गहरी है....लहरें संघर्ष हैं....हमारे कर्म ही हमारे सारथी हैं। ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 135 में कहा गया है कि आम तौर पर आत्मा शरीर प्राप्त करने के बाद अपने पिछले जन्मों के कर्मों का परिणाम भोगती है और भ्रम के प्रभाव में (भ्रम की ओर आकर्षित होकर) पाप करती है और पापों का सामना करने के लिए फिर से जन्म लेती है। आत्मा अमर है और शरीर से सदैव अलग रहती है। जब कोई साधक किसी विद्वान आचार्य से मिलकर आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करता है तो चौथा मंत्र कहता है कि आत्मा को मोक्ष मिलता है।
 
ज्योतिष भारतीय परंपरा में केवल भविष्य बताने का विज्ञान नहीं, बल्कि जीवन के अनगिनत पहलुओं को समझने, समय का सदुपयोग करने और कर्म के अनुसार जीवन को संचालित करने की एक समृद्ध प्रणाली है। इसका स्थान भारतीय संस्कृति और दर्शन में एक दार्शनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
 
भारतीय ज्ञान परंपरा एक अत्यंत समृद्ध और बहुआयामी परंपरा है जिसमें अध्यातम और ज्योतिष जैसी अनेक विधाएं न केवल सह अस्तित्व में हैं, बल्कि एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। देखिए ये विधाएं किस प्रकार समाहित हैं:
 
1. अध्यात्म और ज्योतिष का परस्पर संबंध: अध्यात्म आत्मा, ब्रह्म, मोक्ष, ध्यान, साधना और आत्म-ज्ञान की खोज से संबंधित है। यह जीवन के परम उद्देश्य को जानने की प्रक्रिया है। ज्योतिष समय की प्रकृति, ग्रहों की चाल और उनके प्रभाव का विज्ञान है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं- स्वास्थ्य, मनोवृति, कर्मफल, और भविष्य का विश्लेषण करता है।
 
इन दोनों में संबंध इस प्रकार है: कर्म और ज्योतिष: अध्यात्म कहता है कि मनुष्य के कर्म उसका भविष्य निर्धारित करते हैं। ज्योतिष इन कर्मों के फल का 'काल निर्धारण' करता है- कब कौन सा फल मिलेगा।
 
ध्यान और ग्रह शांति: अध्यात्मिक अभ्यास जैसे मंत्र जप, ध्यान, और पूजा, विशेष ग्रह दोषों को शांति प्रदान करने के लिए उपयोग में आते हैं।
 
मनोविज्ञान और आत्मज्ञान: ज्योतिषीय चार्ट में व्यक्ति की प्रवृत्तियां (गुण, दोष, संस्कार) दिखते हैं, जिन्हें अध्यात्मिक साधना से परिष्कृत किया जा सकता है।
 
2. वेदों में समावेश : वेदांग ज्योतिष: वेदों के छह अंगों में से एक है 'ज्योतिष', जो यज्ञों के समय निर्धारण के लिए प्रयोग होता था। यह दिखाता है कि ज्योतिष वेदों में मूलतः समाहित है। उपनिषदों में ध्यान और ब्रह्मज्ञान: उपनिषद अध्यात्म का मूल स्रोत हैं। वे स्पष्ट रूप से आत्मा और ब्रह्म के ज्ञान को प्रमुख मानते हैं।
 
3. शास्त्रों में समन्वय: ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता, योगसूत्र: ये ग्रंथ अध्यात्म के मूल ग्रंथ हैं, पर इनमें काल, कर्म, और ग्रहों के प्रभावों के संकेत मिलते हैं। बृहत् पाराशर होरा शास्त्र (ज्योतिष): इसमें भी ध्यान, दान, मंत्र, और आत्मिक उपायों का वर्णन मिलता है।
 
4. आचार्यों की भूमिका: भारतीय दर्शन में आचार्य गण जैसे आदिशंकराचार्य, वसिष्ठ, पाराशर, वराहमिहिर, पतंजलि आदि ने दोनों क्षेत्रों में कार्य किया। उनका दृष्टिकोण यह था कि:अध्यात्म अंततः मुक्ति की ओर ले जाता है। ज्योतिष मार्गदर्शन देता है कि कब और कैसे कौन-सी साधना या कर्म अपनाए जाएं।
 
5. प्रयोगात्मक समन्वय: कुंडली देखकर साधना निर्देश: किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली देखकर यह बताया जाता है कि वह किस प्रकार की साधना से लाभान्वित होगा- भक्ति, योग, ज्ञान या कर्म मार्ग।ALSO READ: ज्ञान की ज्योति: भारतीय अध्यात्म और परंपरा का संगम, पढ़ें रोचक जानकारी

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