शिवजी को बिल्वपत्र, धतूरा और आंकड़ा अर्पित करना बहुत ही शुभ माना जाता है। हिन्दू धर्म में बिल्व अथवा बेल (बिल्ला) पत्र भगवान शिव की आराधना का मुख्य अंग है। आओ जानते हैं शिवजी को अर्पित करने के 12 फायदे।
1. कहते हैं शिव को बिल्वपत्र चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है क्योंकि बिल्वपत्र की जड़ में साक्षात लक्ष्मीजी का वास होता है। इसीलिए इसके वृक्ष को श्रीवृक्ष भी कहते हैं। इसकी पूजा करने से धन की प्राप्ति होती है।
2. इस वृक्ष की जड़ में घी, अन्न, खीर या मिष्ठान्न दान अर्पित करने से दरिद्रता का नाश होता है और कभी भी धनाभाव नहीं रहता है।
3. इस वृक्ष की जड़ का विधिवत पूजन करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है।
4. यदि संतान सुख पाना चाहते हैं तो शिवलिंग पर इसका फूल, धतूरा, गंध और स्वयं बिल्वपत्र चढ़ाने के बाद इस वृक्ष के जड़ का पूजन करना चाहिए।
5. बिल्वपत्र के वृक्ष की जड़ का जल अपने माथे पर लगाने से समस्त तीर्थ यात्राओं का पुण्य प्राप्त होता है।
6. बिल्वपत्र की जड़ को पानी में घिसकर फिर उबालकर औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। कष्टकारी रोगों में भी यह अमृत के समान लाभकारी होती है।
7. बिल्वपत्र का सेवन, त्रिदोष यानी वात (वायु), पित्त (ताप), कफ (शीत) व पाचन क्रिया के दोषों से पैदा बीमारियों से रक्षा करता है।
8. बिल्वपत्र का सेवन त्वचा रोग और डायबिटीज के बुरे प्रभाव बढ़ने से भी रोकता है व तन के साथ मन को भी चुस्त-दुरुस्त रखता है।
9. हिन्दू धर्म में बिल्व वृक्ष के पत्र (पत्ते) शिवलिंग पर चढ़ाए जाते हैं। भगवान शिव इसे चढ़ाने से प्रसन्न होते हैं।
10. जो व्यक्ति शिव-पार्वती की पूजा बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है।
11. यह माना जाता है कि देवी महालक्ष्मी का भी बेल वृक्ष में वास है। जिस घर में एक बिल्व का वृक्ष लगा होता है उस घर में लक्ष्मी का वास बतलाया गया है।
12. बिल्व पत्र को शिवजी के तीनों नेत्रों का प्रतीक भी माना जाता है। यह तीन नेत्र भूत, भविष्य और वर्तमान देखते हैं। उसी तरह महाशिवरात्रि के दिन शिवजी को बिल्व पत्र चढ़ाने से समृद्धि, शांति और शीतलता आती है।
नोट : चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या और किसी माह की संक्राति को बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए।
बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्रः-
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।