Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(सप्तमी तिथि)
  • तिथि- चैत्र शुक्ल सप्तमी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत/मुहूर्त-महानिशा पूजा
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

स्त्रियों को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए..., पढ़ें खास जानकारी

हमें फॉलो करें स्त्रियों को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए..., पढ़ें खास जानकारी
webdunia

पं. हेमन्त रिछारिया

हमारे सनातन धर्म में प्रत्येक व्यक्ति के लिए यथासामर्थ्य पूजा करना अनिवार्य बताया गया है। शास्त्रों में पूजा करने के विविध रूप व विधान बताए गए हैं। जिनके माध्यम से श्रद्धालु अपने इष्टदेव की पूजा कर उनके श्रीचरणों में अपनी श्रद्धा ज्ञापित कर सकता है। 
 
पूजा के यह विविध प्रकार पंचोपचार, दशोपचार, षोडशोपचार पूजन कहे जाते हैं। इन सभी प्रकारों में सर्वश्रेष्ठ प्रकार षोडषोपचार पूजन विधि का माना गया है। षोडषोपचार पूजन विधि में सोलह विविध उपचारों से भगवान की पूजा की जाती है जिसमें अंतिम उपचार षाष्टांग दंडवत प्रणाम माना गया है। दंडवत प्रणाम की हमारी पूजा विधि में सर्वाधिक मान्यता होती है। 
 
दंडवत प्रणाम को सभी प्रकार के प्रणामों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है किंतु क्या आप यह जानते हैं कि हमारे शास्त्रों में स्त्रियों को दंडवत प्रणाम करने का सर्वथा निषेध है। शास्त्रानुसार स्त्रियों को कभी भी किसी के भी सम्मुख दंडवत प्रणाम नहीं करना चाहिए। आजकल अनेक स्थानों पर देखने में आता है कि स्त्रियां भी मंदिरों, पूजा स्थलों व परिक्रमा आदि में षाष्टांग दंडवत प्रणाम करती हैं, जो शास्त्रानुसार अनुचित है। ऐसा क्यों है इसका समाधान हमें 'धर्मसिन्धु' नामक ग्रंथ में मिलता है, जिसमें स्पष्ट निर्देश है-
 
'ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम्।
वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं।।'
 
- अर्थात् ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ (पुस्तक) एवं स्त्रियों का वक्षस्थल (स्तन) यदि सीधे भूमि (बिना आसन) का स्पर्श करते हैं तो पृथ्वी इस भार को सहन नहीं कर सकती है। इस असहनीय भार को सहने के कारण वह इस भार को डालने वाले से उसकी श्री (अष्ट-लक्ष्मियों) का हरण कर लेती है। 
 
ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ (पुस्तक) एवं स्त्रियों के वक्षस्थल को पृथ्वी पर सीधे स्पर्श कराने वाले की अष्ट-लक्ष्मियों क्षय होने लगता है। अत: शास्त्र के इस निर्देशानुसार स्त्रियों को दंडवत प्रणाम कभी नहीं करना चाहिए। स्त्रियों को दंडवत प्रणाम के स्थान पर घुटनों के बल बैठकर अपना मस्तक भूमि से लगाकर ही प्रणाम करना चाहिए एवं ब्राह्मणों, शंख, शालिग्राम भगवान को, धर्मग्रंथ (पुस्तक) को सदैव उनके यथोचित आसन पर ही विराजमान कराना चाहिए।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

इस तरह होता है शनि की साढ़े साती का भयानक असर, जानिए बचने के उपाय