चन्द्रमा की 16वीं कला को 'अमा' कहा गया है जिसमें चन्द्रमा की 16 कलाओं की शक्ति शामिल है। अमा के अनेक नाम आए हैं, जैसे अमावस्या, सूर्य-चन्द्र संगम, पंचदशी, अमावसी, अमावासी या अमामासी। परंपरा से अमावस्या की को पितर और पूर्णिमा को देवताओं का दिन माना जाता है। यह भी माना जाता है कि अमावस्या की रात नकारात्मक शक्तियों की रात रहती है परंतु ऐसी कोई बात नहीं है।
क्या होती है अमावस्या : अमावस्या के दिन चन्द्र नहीं दिखाई देता अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता है उसे अमावस्या कहा गया है, तब इसे 'कुहू अमावस्या' भी कहा जाता है। अमावस्या सूर्य और चन्द्र के मिलन का काल है। इस दिन दोनों ही एक ही राशि में रहते हैं। अमावस्या माह में एक बार ही आती है। मतलब यह कि वर्ष में 12 अमावस्याएं होती हैं। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है।
प्रमुख अमावस्याएं : सोमवती अमावस्या, भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या, दिवाली अमावस्या आदि मुख्य अमावस्या होती है।
दिवाली अमावस्या- कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली अमावस्या कहते हैं। कहते हैं कि इस दिन रात सबसे घनी होती है। मतलब यह कि यह अमावस्या अन्य अमावस्याओं की अपेक्षा अधिक घनेरी होती है। इसीलिए इस अमावस्या के समय दीपोत्सव मनाया जाता है। मूल रूप से यह अमावस्या माता कालीका से जुड़ी हुई है इसीलिए उनकी पूजा का भी महत्व है। इस दिन लक्ष्मी पूजा का महत्व भी है। कहते हैं कि दोनों ही देवियों का इसी दिन जन्म हुआ था।
सावधानियां : अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिए। इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं। पूर्वोत्तर राज्य, बंगाल, झारखंड, बिहार और उड़िसा आदि राज्यों में इस दिन अधिकतर लोग उपवास करते हैं।