Balarama Jayanti n Harchath pooja : भारत भर में हरछठ या हल षष्ठी व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व आज यानी 5 सितंबर 2023, मंगलवार के दिन मनाया जा रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में यह पर्व मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलराम जी का जन्म हुआ था। श्री बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है। इसी कारण उन्हें हलधर भी कहा जाता है।
अत: बलराम जी के नाम पर इस पर्व का नाम 'हल षष्ठी या हर छठ' पड़ा। भारत के कुछ पूर्वी हिस्सों में इसे 'ललई छठ' भी कहा जाता है। इस दिन बलराम जयंती, शीतला सातम, मासिक कार्तिगाई आदि नामों से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की छठी तिथि को महिलाएं अपने पुत्र के दीर्घायु होने और उन्हें असामयिक मौत से बचाने के लिए हर छठ या हल षष्ठी व्रत करती हैं। इस दिन महिलाएं ऐसे खेत में पैर नहीं रखतीं, जहां फसल पैदा होनी हो और ना ही पारणा करते समय अनाज व दूध-दही खाती है।
आइए जानते हैं पूजन विधि और शुभ मुहूर्तों के बारे में :
हरछठ और बलराम जयंती पर पूजा मुहूर्त
भाद्रपद कृष्ण षष्ठी तिथि का प्रारंभ- 4 सितंबर 2023, सोमवार को 04.41 पी एम से,
षष्ठी तिथि की समाप्ति- 5 सितंबर 2023, मंगलवार को 03.46 पी एम बजे तक।
ब्रह्म मुहूर्त- 04.30 ए एम से 05.15 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 04.53 ए एम से 06.01 ए एम
अभिजित मुहूर्त- 11.54 ए एम से 12.45 पी एम
विजय मुहूर्त- 02.26 पी एम से 03.16 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 06.39 पी एम से 07.01 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 06.39 पी एम से 07.47 पी एम
त्रिपुष्कर योग- 03.46 पी एम से 6 सितंबर को 06.01 ए एम,
निशिता मुहूर्त- 11.57 पी एम से 6 सितंबर को 12.43 ए एम तक।
रवि योग मुहूर्त- 09.00 ए एम से 6 सितंबर को 06.01 ए एम तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग- 09.00 ए एम से 6 सितंबर को 06.01 ए एम तक।
5 सितंबर 2023, मंगलवार : दिन का चौघड़िया
चर- 09.10 ए एम से 10.45 ए एम
लाभ- 10.45 ए एम से 12.20 पी एम
अमृत- 12.20 पी एम से 01.54 पी एम
शुभ- 03.29 पी एम से 05.04 पी एम
रात्रि का चौघड़िया
लाभ- 08.04 पी एम से 09.29 पी एम
शुभ- 10.55 पी एम से 6 सितंबर को 12.20 ए एम तक।
अमृत- 12.20 ए एम से 6 सितंबर को 01.45 ए एम तक।
चर- 01.45 ए एम से 6 सितंबर को 03.11 ए एम तक।
हरछठ पूजन विधि :
* भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को प्रातः स्नानादि से निवृत्त हो जाएं।
* तपश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर गोबर लाएं।
* इसके बाद पृथ्वी को लीपकर एक छोटा-सा तालाब बनाएं।
* इस तालाब में झरबेरी, ताश तथा पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई 'हर छठ' को गाड़ दें।
* पश्चात इसकी पूजा करें।
* पूजा में सतनाजा (चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का तथा मूंग) चढ़ाने के बाद धूल, हरी कजरियां, होली की राख, होली पर भुने हुए चने के होरहा तथा जौ की बालें चढ़ाएं।
* हर छठ के समीप ही कोई आभूषण तथा हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखें।
* पूजन करने के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन द्वारा हवन करें।
* पश्चात कथा कहें अथवा सुनें।
अंत में निम्न मंत्र से प्रार्थना करें-
गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते।
स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्॥
ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि।
अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, तुभ्यं नमो नमः॥
- अर्थात् हे देवी! आपने गंगा द्वार, कुशावर्त, विल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया है। सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बारंबार नमस्कार है, आप मुझे अचल सुहाग दीजिए। इस तरह यह व्रत किया जाता है।
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