Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

गोधूलि-लग्न क्या है, विवाह में कब करें इस लग्न का चयन और किन बातों का रखें ध्यान, जानिए

Advertiesment
हमें फॉलो करें गोधूलि-लग्न क्या है, विवाह में कब करें इस लग्न का चयन और किन बातों का रखें ध्यान, जानिए
webdunia

पं. हेमन्त रिछारिया

विवाह का दिन एवं विवाह-लग्न निश्चित करना एक बेहद चुनौतीपूर्ण व श्रम-साध्य कार्य है जिसे किसी विद्वान दैवज्ञ से ही करवाना चाहिए। अक्सर लोग अपनी भौतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के चलते विवाह का दिन व लग्न सुनिश्चित करने में गंभीर लापरवाही एवं शुभ-मुहूर्त की उपेक्षा करते हैं। जिसका दुष्परिणाम यदा-कदा दंपत्ति को अपने वैवाहिक जीवन में भोगना पड़ता है। 
 
शास्त्रानुसार विवाह-लग्न की शुद्धि 'मेलापक' (कुंडली मिलान) के कई दोषों को समाप्त करने का सामर्थ्य रखती है। अत: विवाह का दिन एवं विवाह-लग्न का चयन बड़ी ही सावधानी से किया जाना चाहिए।
 
क्या है 'गोधूलि लग्न'- 
 
जब भी विवाह-लग्न चयन की बात होती है तो ‘गोधूलि लग्न’की चर्चा होती है। गोधूलि बेला के सही समय को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान गोधूलि बेला को सूर्यास्त से 12 मिनिट पूर्व एवं सूर्यास्त से 12 मिनिट पश्चात् कुल 1 घड़ी का मानते हैं वहीं कुछ विद्वानों के मतानुसार गोधूलि बेला सूर्यास्त से 24 मिनिट पूर्व व सूर्यास्त से 24 मिनिट पश्चात् कुल 2 घड़ी का माना जाता है। बहरहाल, आज हमारा विषय गोधूलि बेला के समय के स्थान पर ‘गोधूलि-लग्न’ की ग्राह्यता पर आधारित है।
 
 
विवाह में ‘गोधूलि लग्न’का चयन कब करें-
 
आज हम ‘वेबदुनिया" के पाठकों को इस विशेष जानकारी से अवगत करा रहे हैं कि विवाह में ‘गोधूलि-लग्न’केवल तभी ग्रहण की जाती है जब विवाह हेतु शुद्ध दिवस का चयन होने के उपरांत भी शुद्ध विवाह-लग्न उपस्थित ना हो। यदि विवाह वाले दिन शुद्ध लग्न उपस्थित है तो मात्र अपनी सुविधा के लिए ‘गोधूलि-लग्न’का चयन किया जाना शास्त्रसम्मत नहीं है। शास्त्र में यह स्पष्ट उल्लेख है कि जहां तक संभव हो विवाह वाले दिन शुद्ध लग्न के चयन को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए। शुद्ध विवाह लग्न की अनुपस्थिति में ही केवल ‘गोधूलि-लग्न’का चयन किया जाना चाहिए अन्यत्र नहीं।
 
विवाह लग्न के चयन में इन बातों का रखें ध्यान-
 
विवाह लग्न का चयन करते समय निम्न बातों का विशेष ध्यान रखा जाना आवश्यक है-
 
1. वर एवं वधू के जन्म लग्न व जन्म राशि की अष्टम राशि का विवाह लग्न नहीं होना चाहिए।
 
2. वर एवं वधू के जन्म लग्न से अष्टमेश विवाह लग्न में उपस्थित नहीं होना चाहिए।
 
3. वर एवं वधू का जन्म लग्न विवाह लग्न नहीं होना चाहिए।
 
4. विवाह-लग्न में ‘लग्न-भंग’योग नहीं होना चाहिए।
 
5. विवाह-लग्न ‘कर्तरी-दोष’से पीड़ित नहीं होना चाहिए।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: [email protected]
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ईस्टर संडे : क्यों खास माना गया है यह पर्व, जानिए महत्व एवं 6 खास बातें