आवागमन हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है। हमें अपने दैनंदिन कार्यों को संपन्न करने के लिए आवागमन करना ही पड़ता है। वैसे तो आवागमन एक सामान्य-सी बात है किंतु जब किसी विशेष कार्य हेतु यात्रा करनी हो तो यह महत्वपूर्ण हो जाता है। पाठकों ने अपने जीवन में कभी-न-कभी यह अवश्य अनुभूत किया होगा कि कभी तो यात्रा बड़ी ही सानंद, सुगम व सफलतादायक संपन्न होती है लेकिन कभी यात्रा केवल एक व्यर्थ की भागदौड़ मात्र बनकर रह जाती है और अधिकतर लोग इसे एक संयोग मानकर उपेक्षित कर देते हैं। हमारे शास्त्रों में यात्रा करने एवं उसके सफल होने के लिए आवश्यक कुछ बातों का स्पष्ट निर्देश दिया गया है जिसे 'यात्रा मुहूर्त' कहते हैं। शास्त्रानुसार यदि शुभ मुहूर्त में यात्रा प्रारंभ की जाए तो उसके सानंद सफल होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
आइए, जानते हैं कि सफलतादायक यात्रा के लिए शास्त्रों ने किन मुहूर्तों का निर्धारण किया है?
दिशाशूल
यात्रा मुहूर्त निर्धारण में 'दिशाशूल' का महत्वपूर्ण स्थान है। जैसा कि नाम से विदित है 'शूल' अर्थात कांटा। दिशाशूल से आशय है कि पंचांग में जिस दिशा में 'दिशाशूल' दिया रहता है, यदि उस दिशा में संबंधित दिन यात्रा की जाए तो यात्रा सफल नहीं होती है।
आइए, जानते हैं प्रतिदिन का 'दिशाशूल'
दिन - दिशाशूल
1. रविवार -पश्चिम
2. सोमवार -पूर्व/ आग्नेय
3. मंगलवार -उत्तर
4. बुधवार -उत्तर/ नैऋत्य/ ईशान
5. गुरुवार -दक्षिण
6. शुक्रवार -पश्चिम/ वायव्य
7. शनिवार -पूर्व
समयशूल
शास्त्रानुसार दिशाशूल की ही तरह यात्रा करते समय 'समयशूल' का भी ध्यान रखना आवश्यक है। 'समयशूल' के अनुसार प्रात: पूर्व, मध्यान्ह दक्षिण, सायंकाल पश्चिम, रात्रि उत्तर दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए।
योगिनीवास
शास्त्रों में यात्रा मुहूर्त निर्धारण में 'दिशाशूल' व 'समयशूल' के साथ-साथ 'योगिनीवास' भी महत्वपूर्ण माना गया है। 'योगिनी सुखदावामे पृष्ठे वांछितदायिनी' के शास्त्रोक्त सूत्रानुसार यात्रा करते समय योगिनी का वास बाएं अथवा पीछे होना शुभ फलदायक होता है। योगिनीवास तिथि अनुसार देखा जाता है।
आइए, जानते हैं तिथि अनुसार योगिनीवास किस दिशा में होता है?
तिथि - दिशा
प्रतिपदा/ नवमी पूर्व
तृतीया/ एकादशी आग्नेय
पंचमी/ त्रयोदशी दक्षिण
चतुर्थी/ द्वादशी नैऋत्य
सप्तमी/ पूर्णिमा वायव्य
द्वितीया/ दशमी उत्तर
अष्टमी/ अमावस ईशान
ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया