खगोलविदों की गणनाओं के अनुसार आज 21 दिसंबर 2020 को शनि और गुरु बहुत नज़दीक होंगे और इस खगोलीय घटना को आसानी देखा जा सकेगा।
खगोलविदों के अनुसार यह घटना कई वर्षों के बाद घटित हो रही है लेकिन क्या इस घटना का कोई ज्योतिषीय महत्त्व भी है! आइए जानते हैं-
ज्योतिष शास्त्र अनुसार नवग्रहों में शनि और गुरु बहुत ही महत्त्वपूर्ण ग्रह हैं जो जातक के जीवन को प्रभावित करने में महती भूमिका रखते हैं।
गुरु को ज्योतिष शास्त्र में देवगुरु की उपाधि प्राप्त है वहीं शनि न्यायाधिपति व दण्डाधिकारी की भूमिका में हैं। गुरु का रंग सुनहरा होता है एवं वे बुद्धि व विवेक का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस जातक की जन्मपत्रिका में गुरु स्वराशि या उच्चराशिस्थ होते हैं वह जातक अतीव बुद्धिमान व विवेकवान होता है।
गुरु एक राशि में 1 वर्ष तक संचरण करते हैं। गुरु की उच्च राशि कर्क व नीच राशि मकर है। गुरु के केन्द्रस्थान में स्वराशिस्थ व उच्चराशिस्थ होने से ज्योतिष का सुप्रसिद्ध "हंस" नामक पंचमहापुरुष राजयोग बनता है जो जातक को जीवन में आशातीत सफलता प्रदान करता है।
गुरु व चंद्र की युति व परस्पर केन्द्रस्थ होने से "गजकेसरी" नामक राजयोग बनता है वहीं "राहु-गुरु" का संयोग होने पर अति अशुभ "चाण्डाल" योग बनता है। गुरु की तरह शनि की भूमिका ज्योतिष शास्त्र में महत्त्वपूर्ण मानी गई है शनि स्वभाव से क्रूर व अलगाववादी ग्रह हैं। शनि का रंग काला है एवं यह धीमी गति से चलते हैं इसके कारण शनि का एक नाम "शनैश्चर" भी है। शनि को ज्योतिष शास्त्र में दण्डाधिकारी माना गया है। शनि सेवक, सेवा व न्याय का प्रतिनिधि ग्रह है। शनि एक राशि में ढ़ाई वर्षों तक संचरण करते हैं।
इसी संचरण के कारण जातकों पर ढैय्या व साढ़ेसाती का प्रभाव होता है। शनि मेष राशि में नीच एवं तुला राशि में उच्चराशिस्थ होते हैं। गुरु की भांति ही शनि के केन्द्रस्थान में स्वराशिस्थ व उच्चराशिस्थ होने से ज्योतिष का सुप्रसिद्ध "शश" नामक पंचमहापुरुष राजयोग बनता है जो जातक को जीवन में आशातीत सफलता प्रदान करता है।
वहीं कुण्डली में शनि व चंद्र की युति होने से अशुभ "विषयोग" का निर्माण होता है। उपर्युक्त विश्लेषण का सार तत्व यह है कि ज्योतिष शास्त्र में शनि व गुरु के संयोग से कोई भी शुभाशुभ योग नहीं बनता है।
अत: अंतरिक्ष में गुरु व शनि का एक सीध में आना, बहुत करीब आना, पास से गुजरना ये सब खगोलीय घटनाएं हैं जिनका ज्योतिष की दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं है। अत: पाठकगण इसे केवल एक खगोलीय घटना के रूप में देखें।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र