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आज है पिठोरी अमावस्या, जानिए सबसे प्रामाणिक कथा और शुभ मुहूर्त

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Pithori Amavasya 2021
 
आज यानी पिठोरी अमावस्या के दिन आटा गूंथ कर मां दुर्गा सहित 64 देवियों की आटे से मूर्ति बनाकर महिलाएं व्रत रखकर उनका पूजन करती हैं। आज के दिन आटे से बनी देवियों की पूजा होने के कारण ही यह दिन पिठोरी अमावस्या के नाम से जनमानस में प्रचलित हैं। इसे पिठौरा, कुशोत्पाटनी, कुशग्रहणी अमावस्या आदि नामों से भी जाना जाता है। 
 
पौराणिक शास्त्रों में भाद्रपद अमावस्या के दिन कुशा इकट्ठी करने की मान्यता है। इस दिन सुहागिनें व्रत रखकर भगवान भोलेनाथ और देवी दुर्गा का पूजन करती है। यह दिन पितरों की तृप्ति, पिंडदान, तर्पण और वंश वृद्धि के लिए अतिमहत्वपूर्ण माना गया है। अमावस्या की शाम पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीया लगाने और पितरों का स्मरण और शिव जी और शनि देव की आराधना करने से जीवन में चारों तरफ से के लाभ मिलता है। 
 
जानिए पिठोरी अमावस्या के शुभ मुहूर्त एवं कथा- 
 
पिठोरी अमावस्या शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि का प्रारंभ- सोमवार, 06 सितंबर को सुबह 07 बजकर 38 मिनट से
अमावस्या तिथि का समापन- 07 सितंबर को सुबह 06 बजकर 21 मिनट पर। 

आज भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की पिठोरी अमावस्या एवं सोमवती अमावस्या के दिन यह कथाएं अवश्य पढ़नी चाहिए। 
 
कथा 1 - 
 
पिठोरी अमावस्या की व्रत कथा के अनुसार बहुत समय पहले की बात है। एक परिवार में सात भाई थे। सभी का विवाह हो चुका था। सबके छोटे-छोटे बच्चे भी थे। परिवार की सलामती के लिए सातों भाइयों की पत्नी पिठोरी अमावस्या का व्रत रखना चाहती थीं। लेकिन जब पहले साल बड़े भाई की पत्नी ने व्रत रखा तो उनके बेटे की मृत्यु हो गई। दूसरे साल फिर एक और बेटे की मृत्यु हो गई। सातवें साल भी ऐसा ही हुआ।
 
तब बड़े भाई की पत्नी ने इस बार अपने मृत पुत्र का शव कहीं छिपा दिया। गांव की कुल देवी मां पोलेरम्मा उस समय गांव के लोगों की रक्षा के लिए पहरा दे रही थीं। उन्होंने जब इस दु:खी मां को देखा तो वजह जाननी चाही। तब बड़े भाई की पत्नी ने सारा किस्सा देवी पोलेरम्मा को सुनाया तो देवी को उस पर दया आ गई।
 
देवी पोलेरम्मा ने उस दु:खी मां से कहा कि वह उन सभी स्थानों पर हल्दी छिड़क दें, जहां-जहां उनके बेटों का अंतिम संस्कार हुआ है। तब बड़े भाई की पत्नी ने ऐसा ही किया। जब वह घर लौटी तो सातों पुत्र को जीवित देख, उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। तभी से उस गांव की हर माता अपने संतान की लंबी उम्र की कामना से  पिठोरी अमावस्या का व्रत रखने लगीं। आज के दिन यह कथा सुनीं और पढ़ी जाती है। 
 
उत्तर भारत में यह पर्व पिठोरी अमावस्या के नाम से माता दुर्गा की आराधना करके मनाया जाता है, वही दक्षिण भारत में यह त्योहार पोलाला अमावस्या के रूप में मां पोलेरम्मा जिन्हें मां दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है, की पूजा-अर्चना के साथ मनाने की परंपरा है। 

 
कथा 2 - 
सोमवती अमावस्या की पौराणिक एवं प्रचलित कथा के अनुसार एक गरीब ब्राह्मण परिवार था। उस परिवार में पति-पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। वह पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। उस पुत्री में समय और बढ़ती उम्र के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था। वह लड़की सुंदर, संस्कारवान एवं गुणवान थी। किंतु गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारें। वो उस कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि इस कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है।
 
तब ब्राह्मण दम्पति ने साधु से उपाय पूछा, कि कन्या ऐसा क्या करें कि उसके हाथ में विवाह योग बन जाए। साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही आचार-विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिंदूर लगा दें, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है।
 
साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही। अगल दिन कन्या प्रात: काल ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, साफ-सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती।
 
एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि- तुम तो सुबह ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा- मां जी, मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूं। इस पर दोनों सास-बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है। कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं? 
 
तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा। सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर उस कन्या की मांग में लगाया, उसका पति मर गया। उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी।
 
उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में वापस जान आ गई। धोबिन का पति वापस जीवित हो उठा।
 
इसीलिए सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भंवरी देता है, उसके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है। अतः जो व्यक्ति हर अमावस्या को न कर सके, वह सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं कि भंवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश का पूजन करता है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
 
ऐसी प्रचलित परंपरा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिंदूर और सुपाड़ी की भंवरी दी जाती है। उसके बाद की सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के हिसाब से फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने की सामग्री इत्यादि की भंवरी दी जाती है। और फिर भंवरी पर चढाया गया सामान किसी सुपात्र ब्राह्मण, ननंद या भांजे को दिया जा सकता है। यह ध्यान रखें यह भंवरी का सामान अपने गोत्र या अपने से निम्न गोत्र में दान नहीं देना चाहिए।

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