हमारे सनातन धर्म में पूजा-पाठ व अनुष्ठानों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। चाहे व्रत हो, व्रत-उद्यापन हो, तीज-त्योहार की पूजा हो या अन्य कोई अनुष्ठान हो। इन्हें सम्पन्न कराने के लिए कर्मकाण्डी ब्राह्मणों की आवश्यकता होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूजा-पाठ व अनुष्ठानों को किन ब्राह्मणों से सम्पन्न कराया जाना चाहिए। शास्त्रों में इसका स्पष्ट निर्देश हमें मिलता है। शास्त्र का वचन है-
'काम क्रोध विहीनश्च पाखण्ड स्पर्श वर्जित:।
जितेन्द्रीय: सत्यवादी च सर्व कर्म प्रशस्यते॥'
अर्थात्- जो विप्र काम, क्रोध से निर्लिप्त हो। पाखण्ड ने जिसे स्पर्श तक ना किया हो। जो जितेन्द्रीय और जो सत्यवादी हो, यह शास्त्र की पहली शर्त है। इसके अतिरिक्त पूजा-पाठ व अनुष्ठान कराने वाले विप्रों का उच्चारण शुद्ध हो तथा वे मन्त्रों व श्लोकों के अर्थ से भलीभांति परिचित हों। शास्त्रानुसार ऐसे ही ब्राह्मणों से पूजा-पाठ व अनुष्ठान कराना श्रेयस्कर होता है।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया