सोमवती अमावस्या : पढ़ें सरल पूजन विधि...
आज सोमवती अमावस्या है। सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। यह अमावस्या हिन्दू धर्म में विशेष धार्मिक महत्व रखती है। इस अवसर पर जहां हजारों श्रद्धालु शिप्रा, हरिद्वार कुंभ में डुबकी लगाएंगे, वहीं देश के सभी मंदिरों में भी आस्थावानों का तांता लगेगा। ज्योतिष तथा धर्मशास्त्रों में सोमवती अमावस्या व शिप्रा स्नान का विशेष महत्व बताया गया है।
सोमवती अमावस्या के दिन नदी, तट, तीर्थक्षेत्र में स्नान तथा दान आदि करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से लेकर दोपहर पश्चात नदी स्नान किया जा सकता है। इस दिन विशेषकर गायों को चारा खिलाने तथा वस्त्र आदि दान देने का महत्व शास्त्रों में उल्लेखित है। इसके अलावा स्नानार्थी तीर्थ पुरोहितों से भाल पर तिलक लगवाएंगे, वहीं स्नान के समय श्लोक भी गूंजेंगे। तीर्थ पुरोहितों के अनुसार शिप्रा में स्नान करने से मनोकामनाओं की सिद्धि होती है।
वहीं उज्जैन के सोम तीर्थ में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को विशेष फल मिलता है। उज्जैन ही ऐसा शहर है, जो तीर्थस्थल कहा जाता है तथा यहीं सोमतीर्थ कुंड विद्यमान है।
इस दिन सुहागन महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत रखने का विधान है। इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान का फल प्राप्त होता है, ऐसा पुराणों में वर्णित है। विशेषकर सोमवार को भगवान शिवजी का दिन माना जाता है इसलिए सोमवती अमावस्या पर शिवजी की आराधना, पूजन-अर्चना उन्हीं को समर्पित होती है। इसीलिए सुहागन महिलाएं पति की दीर्घायु की कामना करते हुए पीपल के वृक्ष में शिवजी का वास मानकर उसकी पूजा और परिक्रमा करती हैं।
पूजन का महत्व : पुराणों के अनुसार सोमवती अमावस्या पर स्नान-दान करने की भी परंपरा है। वैसे तो इस दिन गंगा स्नान का विशिष्ट महत्व माना गया है, परंतु जो लोग गंगा स्नान करने नहीं जा पाते, वे किसी भी नदी या सरोवर तट आदि में स्नान कर सकते हैं तथा शिव-पार्वती और तुलसीजी का पूजन कर सोमवती अमावस्या का लाभ उठा सकते हैं।
ऐसा माना गया है कि पीपल के मूल में भगवान विष्णु, तने में शिवजी तथा अग्रभाग में ब्रह्माजी का निवास होता है। अत: इस दिन पीपल के पूजन से सौभाग्य की वृद्धि होती है।
सोमवती अमावस्या के दिन पीपल की परिक्रमा करने का विधान है। उसके बाद गरीबों को भोजन कराया जाता है।
* सोमवती अमावस्या के दिन की यह भी मान्यता है कि इस दिन पितरों को जल देने से उन्हें तृप्ति मिलती है।
* महाभारत काल से ही पितृ विसर्जन की अमावस्या, विशेषकर सोमवती अमावस्या पर तीर्थस्थलों पर पिंडदान करने का विशेष महत्व है।
* सोमवती अमावस्या के दिन सूर्यनारायण को जल देने से दरिद्रता दूर होती है।
* पर्यावरण को सम्मान देने के लिए भी सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करने का विधान माना गया है।
अगला लेख