सूर्यदेव के कर्क राशि में प्रवेश करने को कर्क संक्रांति कहा जाता है। कर्क संक्रांति सूर्यदेव की दक्षिण यात्रा के प्रारंभ को दर्शाती है जिसे दक्षिणायन कहते हैं। कर्क संक्रांति को छह माह के उत्तरायण काल का अंत माना जाता है। इस दिन से दक्षिणायन की शुरुआत होती है, जो मकर संक्रांति तक चलती है।
माना जाता है इस दिन से छह माह तक देवताओं की रात्रि आरंभ हो जाती है। मकर संक्रांति से अग्नि तत्व बढ़ता है, जबकि कर्क संक्रांति से जल तत्व की अधिकता हो जाती है।
दक्षिणायन के चारों माह में भगवान विष्णु और भगवान शिव का पूजन किया जाता है। इस दिन तुलसी पत्र से भगवान विष्णु की पूजा करना फलदायी माना गया है। पितरों की शांति के लिए पिंड दान किया जाता है। कर्क संक्रांति को किसी भी शुभ और नए कार्य के प्रारंभ के लिए शुभ नहीं माना जाता है।
इस समय किए जाने वाले कार्यों में देवों का आशीर्वाद नहीं प्राप्त होता है। इस दिन सूर्यदेव को जल अर्पित करें।
संक्रांति में की गई सूर्य उपासना से दोषों का शमन होता है। सूर्यदेव से सदा स्वस्थ रहने से कामना करें।
आदित्य स्तोत्र एवं सूर्य मंत्र का पाठ करें। इस समय में शहद का प्रयोग लाभकारी माना जाता है।
कर्क संक्रांति पर वस्त्र एवं खाने की चीजों और विशेषकर तेल के दान का विशेष महत्व है।
करें इन 5 चीजों का दान
- सुहागन बुजुर्ग महिला को वस्त्र
-किसी बुजुर्ग को पूजा में पहनने वाला धोती वस्त्र
-किसी बालिका को नारंगी रंग का परिधान
-किसी बालक को हरे फल
-किसी नवविवाहित दम्पत्ति को भोजन कराएं।