हमारे षोडश संस्कारों में विवाह का बहुत महत्त्व है। विवाह का दिन व लग्न निश्चित करते समय वर एवं वधु की जन्मपत्रिका अनुसार सूर्य, चन्द्र व गुरु की गोचर स्थिति का ध्यान रखना अति आवश्यक होता है। जिसे त्रिबल शुद्धि कहा जाता है।
विवाह के समय सूर्य वर की जन्मराशि से चतुर्थ, अष्टम या द्वादश गोचरवश स्थित नहीं होना चाहिए। गुरु कन्या की जन्मराशि से चतुर्थ, अष्टम या द्वादश एवं चन्द्र वर-वधु दोनों की जन्मराशि से चतुर्थ, अष्टम या द्वादश स्थित नहीं होना चाहिए।
यदि सूर्य, गुरु व चन्द्र गोचरवश इन भावों में स्थित होते हैं तब वे अपूज्य कहलाते हैं। शास्त्रानुसार ऐसी ग्रहस्थिति में विवाह करने का निषेध बताया गया है। कुछ पण्डितगण ऐसी स्थिति में सूर्य व गुरु की शांति कर विवाह की अनुमति दे देते हैं जिसे क्रमश: लाल पूजा या पीली पूजा कहा जाता है किन्तु यह सर्वथा अनुचित है। सूर्य व गुरु की शान्ति केवल उनके गोचरवश पूज्य भावों में स्थित होने पर ही की जा सकती है, 'अपूज्य' स्थानों में स्थित होने पर नहीं। अत: विवाह के समय त्रिबल शुद्धि का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया