त्रिखल दोष दो तरह से जाना जाता है एक कुंडली में और दूसरे घर में जन्मे तीन जातक से। जन्मे जातक से उत्पन्न त्रिखल दोष की शांति कराना जरूरी होता है अन्यथा इसका बुरा परिणाम होता है।
जन्मकुंडली में : जन्मकुंडली में त्रिखल दोष तब बनता है जब एक ही ग्रह तीन परिस्थिति में अपने कारक भाव में बैठता है। जैसे किसी व्यक्ति के जन्म समय सूर्य कृतिका, उत्तराषाड़ या उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में हो तथा जन्मकुंडली में सूर्य पहले या दसवें भाव में स्थित हो तो त्रिखल दोष का निर्माण होता है। क्योंकि इन नक्षत्रों का स्वामी सूर्य है। प्रथम और दशम भाव का कारक ग्रह भी सूर्य है आदि।
तीन जातक से : यदि तीन लड़कों के बाद एक लड़की का जन्म हुआ है या तीन लड़की के बाद एक लड़के का जन्म हुआ है तो इससे त्रिखल दोष उत्पन्न होता है। ऐसी ज्योतिष की मान्यता है।
क्या होता है इस दोष से : ज्योतिष मान्यता के अनुसार इस दोष के चलते यदि लड़के के बाद लड़की हुई है तो लड़की और यदि लड़की के बाद लड़का हुआ है तो लड़के को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। इससे पितृ कुल या मातृ कुल में अनिष्ट होता है।
आपने सुना होगा कि तीन बहनों के बाद बड़ी कठिनाइयों से लड़के का जन्म हुआ था और घर की सारी बहनें उसे बहुत प्यार करती थी लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था। वह लड़का किसी बीमारी या दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त हो गया। यदि ऐसा नहीं होता है तो लड़के का जीवन कष्टभरा रहता है। यह भी मान्यता है कि इससे नाना पक्ष को हानि होती है।
निवारण : शास्त्रों में इस दोष का निवारण करवाने का विधान व विधी बताई गई है। जातक या जातिका के जन्म के बाद या जब भी समय मिले इसका निवारण करवा लेना चाहिए।
सामान्य तौर पर यह उपाय बताए जाते हैं- जन्म का अशौच बीतने के बाद किसी शुभ दिन किसी धान की ढेरी पर चार कलश की स्थापना करके ब्रह्मा, विष्णु, शंकर और इंद्र की पूजा करनी चाहिए। रूद्र सूक्त और शांति सूक्त का पाठ करना चाहिए फिर हवन करना चाहिए। इससे अनिष्ट शांत होता है। शांति के लिए सूतक आदि के बाद किसी शुभ मुहूर्त में पूजा करवानी चाहिए।