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कब है वृषभ संक्रांति, क्या है इसका महत्व

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हमें फॉलो करें Vrishabha Sankranti in 2025

WD Feature Desk

, गुरुवार, 1 मई 2025 (16:14 IST)
Vrishabha Sankranti in 2025: वृषभ संक्रांति एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो न केवल खगोलीय घटना का प्रतीक है, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और कृषि महत्व भी रखता है। इस दिन दान, पूजा और पवित्र स्नान करना शुभ माना जाता है। वृषभ संक्रांति अधिकतर 14 अथवा 15 मई को ही पड़ती है। धार्मिक मान्यतानुसार वृषभ संक्रांति हेतु संक्रांति क्षण से पूर्व की 16 घटी अतिशुभ मानी जाती है तथा संक्रांति के पूर्व की 16 घटी से लेकर संक्रांति क्षण तक का समय सभी तरह के दान-पुण्य तथा गतिविधियों हेतु स्वीकार किया जाता है। वृषभ संक्रांति के समय गौदान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। ALSO READ: भारत- पाकिस्तान को लेकर क्या भविष्य मालिका की भविष्यवाणियां हो रही हैं सच, आगे क्या होगा?
 
आइए यहां जानते हैं वृषभ संक्रांति की तिथि और महत्व के बारे में...
 
वृषभ संक्रांति कब है : जानें तिथि और शुभ मुहूर्त: Vrishabha Sankranti 2025 Auspicious Muhurat
 
वृषभ संक्रांति: 15 मई 2025, गुरुवार को 
 
वृषभ संक्रांति पुण्य काल - सुबह 05 बजकर 30 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक। 
कुल अवधि- 06 घंटे 47 मिनट्स। 
वृषभ संक्रांति महा पुण्य काल: 15 मई को सुबह 05 बजकर 30 मिनट से सुबह 07 बजकर 46 मिनट तक।
कुल अवधि - 02 घंटे 16 मिनट्स
वृषभ संक्रांति का क्षण: 15 मई को रात 12 बजकर 11 मिनट पर। 
 
वृषभ संक्रांति का महत्व: वृषभ संक्रांति का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। यह वह दिन है जब सूर्य मेष राशि से वृषभ राशि में गोचर करते हैं, जो ज्येष्ठ माह की शुरुआत का प्रतीक है। 'वृषभ' का अर्थ बैल होता है और इसे भगवान शिव के वाहन नंदी से जोड़ा जाता है। 
 
इस दिन के महत्व की यदि बात करें तो यह सौर माह की शुरुआत का दिन माना जाता है और यह हिन्दू सौर कैलेंडर के दूसरे महीने, ज्येष्ठ की शुरुआत का प्रतीक है। साथ ही यह अवधि कृषि चक्र के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है, खासकर बीज बोने और नई कृषि गतिविधियों की शुरुआत के लिए। इस दृष्टि से इका कृषि में भी बहुत महत्व है।ALSO READ: चार धाम के लिए बिना रजिस्ट्रेशन जाने से तीर्थ यात्रियों को होंगी ये दिक्कतें, जानें पंजीकरण की पूरी प्रक्रिया
 
धार्मिक महत्व: इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना और दान-पुण्य करना इस दिन अत्यंत फलदायी माना जाता है। साथ ही पितरों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म भी किए जाते हैं। इस खास अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा करना शुभ माना जाता है, जिससे सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। कुछ क्षेत्रों में भगवान शिव की भी पूजा की जाती है, क्योंकि वृषभ उनका वाहन है। 
 
यह दिन प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और पर्यावरण का सम्मान करने का भी संदेश देता है। कुछ स्थानों पर गौ धन यानी (गाय का दान भी किया जाता है। सूर्य के इस राशि परिवर्तन को सकारात्मक ऊर्जा और बदलाव का प्रतीक माना जाता है।

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।ALSO READ: पाकिस्तान के किन इलाकों में फैली थी सिंधु घाटी सभ्यता, जानिए क्या थी विशेषता

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