ये 3 राशियां हमेशा क्यों रहती हैं प्यासी और असंतुष्ट?
इन तीन राशियों में स्थित ग्रह पर यदि हो शत्रु ग्रह की दृष्टि तो जीवन खराब समझो
ज्योतिष मान्यता के अनुसार कुछ ऐसी राशियां हैं जो अपने जीवन में प्राप्त चीजों के प्रति हमेशा असंतुष्ट ही रहती हैं, भले ही उन्हें आप दुनिया का राजपाट सौंप दो, इसके बाद भी उन्हें संतुष्टी नहीं होगी। यानी कहने का अर्थ ये कि कितना ही पानी पिला तो फिर भी वे प्यासी ही रहेगी। इसी के साथ प्यासे ग्रह भी होते हैं। खासकर यह लेख ग्रहों पर आधारित है। ऐसा क्यों है?
त्रिशित ग्रह योग: ज्योतिष में राशियों के साथ ही त्रिशित ग्रह योग भी इसके लिए जिम्मेदार माने गए हैं। यानी प्यासे ग्रह। यानी इन राशियों के ग्रह भी इस असंतुष्टि और प्यास के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे जातक के जीवन में सब कुछ चाहते की इच्छा और लालसा बनी रहती हैं। इसके चलते इन राशियों के जातक किसी भी हद तक जा सकते हैं। इस चाहते के चलते ये परजीवी या शोषक भी बन जाते हैं। आओ जानते हैं कि वे कौनसी राशियां और उनके ग्रह जिम्मेदार हैं।
प्यासा ग्रह की 5 खास स्थितियां:-
1. पहला कोई भी ग्रह जल राशि में हैं और दूसरा उसके ऊपर किसी शत्रु ग्रह की दृष्टि है। मान लो मेष में मंगल लग्न में हैं और कर्क में बुध चौथे भाव में है तो बुध यहां पर प्यासा ग्रह बन जाएगा। यानी त्रिशित ग्रह।
2. मान लो यदि आपका सूर्य 4, 8 या 12वीं राशि में बैठा हो और उसके ऊपर उसके शत्रु शनि की दृष्टि है तो सूर्य प्यासा ग्रह कहलाएगा। इसी प्रकार कोई भी ग्रह इन राशियों में हो और उस पर किसी शत्रु ग्रह की दृष्टि हो तो उस ग्रह को प्यासा ग्रह माना जाएगा। ऐसे में यह जिस भी भाव में स्थिति बन रही है उस भाव का फल खराब कर देगा।
3. यदि तीनों ग्रहों यानी चंद्र, मंगल, बृहस्पति में से कोई भी ग्रह कर्क, वृश्चिक और मीन में स्थित हो और उस पर किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि हो तो यह स्थिति बनती है।
4. यदि कोई ग्रह नीच का हो जैसे मंगल कर्क में और उस पर किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो या वह राहु या केतु के साथ संयोग बना रहा हो तो भी ऐसी स्थिति बनती है।
5. यदि कोई ग्रह तीनों राशियों में से किसी भी एक राशि में पाप ग्रह के साथ स्थित हो और उस पर किसी भी शुभ ग्रह दृष्टि नहीं हो तो भी ऐसी स्थिति बनती है।
ये हैं 3 जल राशियां: 1. कर्क, 2. वृश्चिक और 3. मीन। यह तीनों की राशियां को जल तत्व की राशियां हैं। इन राशियों के बारे में कहा जाता है कि यह हमेशा बैचेन बनी रहती हैं। इन्हें पैसा, प्रसिद्धि और शक्ति तीनों चाहिए, लेकिन यह सब मिलने के बाद भी ये असंतुष्ट ही रहेंगी। उपरोक्त स्थिति जिस भी भाव में बन रही है जातक को उस भाव का फल मिलता है यानी की उस भाव की वह प्यास खत्म ही नहीं होने देगा।
12 भावों में इसका फल:
1. यदि लग्न में यह स्थिति बनती है तो जातक अपने पूरे जीवन से व्यक्तित्व से, स्वभाव से कभी भी संतुष्ट नहीं हो पाएगा।
2. दूसरे भाव में यह योग बनेगा तो जातक हमेशा धन का प्यासा बना रहेगा। कुटुंब परिवार से असंतोष बना रहेगा।
3. तीसरे भाव में भाई बहनों का भाव है। यानी वह अपने भाई बहनों के प्रति असंतुष्ट रहेगा। चाहे भाई बहन उसे कुछ भी दे दे। इसके अलावा जातक कभी खुलकर कर्म नहीं कर पाएगा या पराक्रम नहीं दिखा पाएगा।
4. चौथा भाव भूमि, भवन, परिवार और वाहन के साथ सुख-सुविधाओं का है जिसे लेकर वह हमेशा असंतुष्ट रहेगा।
5. पांचवां भाव संतान और प्रेम का है जिन्हें लेकर वह असंतुष्ट रहेगा। शिक्षा में भी अवरोध होगा।
6. छठे भाव में रोग, शत्रु और ऋण से हमेशा वह घिरा रहेगा। नौकरी के प्रति असंतुष्ट रहेगा।
7. सप्तम भाव में यह योग बनेगा तो आपकी अपने जीवनसाथी से हमेशा असंतुष्टी बनी रहेगी। साझेदारी के कारोबार में भी यही हालात रहेंगे।
8. अष्टम भाव में यह योग बनेगा तो जातक जीवन के रहस्यों और गोपनीय बातों के साथ ही सेहत, अध्यात्म को लेकर असंतुष्ट रहेगा।
9. नवम भाव में भाग्य को लेकर प्यासा रह जाएगा। जातक को भाग्य से जितना मिला उससे वह कभी संतुष्ट नहीं रहेगा।
10. दशम भाव में है तो जातक नौकरी या व्यापार यदि किसी भी क्षेत्र में कर्म करने के बाद भी असंतुष्ट रहेगा। जातक पूर्ण रूप से कर्म कर ही नहीं पाएगा। कर्म का फल मिलने में भी रुकावटें आएंगी।
11. एकादश भाव में है यह ग्रह स्थित तो जातक अपनी इच्छाओं को लेकर हमेशा असंतुष्ट रहेगा। इच्छाओं के मार्ग में रुकावट भी बहुत आएंगी।
12. द्वादश भाव में यह स्थिति खर्चों के प्रति जातक असंतुष्ट रहता है। व्यर्थ के खर्च होते रहेंगे। जातक निवेश या दूर यात्रा से असंतुष्ट ही रहेगा।
मुख्य रूप से ये ग्रह हैं इन राशियों के लिए जिम्मेदार: कर्क का चंद्र, वृश्चिक का मंगल और मीन का बृहस्पति ग्रह है। ज्योतिष मान्यता के अनुसार यह भावना या इस तरह के स्वभाव सिर्फ ग्रहों की विशेष स्थिति पर लागू होता है जो इन तीनों जल तत्व की राशियों में स्थित होते हैं। यानी इसके लिए सिर्फ राशियां जिम्मेदार नहीं है। इन राशियों में स्थित ग्रह व्यक्ति के जीवन में ऐसा भाव पैदा करते हैं जैसे कि सब कुछ पाकर भी कुछ कमी रह गई हो। इन ग्रहों की विशेष युति को ही त्रिशित ग्रह या प्यासा ग्रह कहते हैं। इसके कारण जातक के भीतर बेचैनी, तलाश, भटकाव, असंतोष आ सकता है। ऐसा क्यों होता है?
कर्क, वृश्चिक व मीन राशि को ही त्रिशित ग्रह माना गया है क्योंकि कुंडली का चौथा भाव कर्क राशि का है जो मानसिक शांति, घर, सुख और आराम देता है। आठवां भाव मंगल और शनि का है जो गुप्त इच्छाओं, गहरे रहस्यों और परिवर्तन का भाव होता है। बारहवां भाव- शैय्या सुख, त्याग, अलगाव और विदेश संबंधी बातों का भाव होता है। बारहवां भाव गुरु यानी बृहस्पति का है जो शैय्या सुख, आत्मिक विकास, त्याग, अलगाव और विदेश संबंधी बातों का प्रभाव छोड़ता है। इन तीनों भावों को मोक्ष त्रिकोण कहा कहा गया है। यानी जन्म, जीवन और मृत्यु। ये ग्रह अक्सर कर्मों का बोझ या पिछले जन्म की अधूरी इच्छाओं का संकेत भी देते हैं। ये सभी भाव इच्छाओं और आंतरिक प्यास से जुड़े होते हैं, चाहे वह भावनात्मक हो, शारीरिक हो या आध्यात्मिक।