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दिवाली से पहले बन रहा गुरु पुष्य योग, जानिए इस बार क्यों माना जा रहा है सबसे शुभ मुहूर्त

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WD Feature Desk

, शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024 (07:02 IST)
Guru pushya nakshatra 2024 dates and time: इस बार दिवाली के पहले 24 अक्टूबर 2024 गुरुवार के दिन गुरु पुष्य नक्षत्र रहेगा जो कि अति शुभ माना जा रहा है। इसी दिन अमृत और सर्वार्थ सिद्धि योग भी है। गुरुवार से युक्त होने के कारण इसकी शुभता बढ़ गई है। यह नक्षत्र सोना, चांदी और वाहन खरीदा के लिए शुभ माना जाता है। 24 अक्टूबर को प्रात: 06:15 से लेकर अगले दिन 25 अक्टूबर को प्रात: 07:40 बजे तक यह नक्षत्र रहेगा। पुष्य नक्षत्र स्थायी होता है़ अत: इस नक्षत्र में खरीदी की गई कोई भी वस्तु लंबे समय तक उपयोगी रहती है तथा शुभ फल प्रदान करती है। यह नक्षत्र योग सोना, चांदी, बर्तन, वाहन, घर, गृह प्रवेश, ग्रह शांति, शिक्षा सम्बन्धी मामलों के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। यह योग अन्य शुभ कार्यों के लिए भी शुभ मुहूर्त के रूप में जाना जाता है।
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24 अक्टूबर 2024 गुरु पुष्य नक्षत्र के दिन का शुभ मुहूर्त:-
सोना और वाहन खरीदने का मुहूर्त: सुबह 11:43 से दोपहर 12:28 के बीच।
लाभ का चौघड़िया: दोपहर 12:05 से दोपहर 01:29 के बीच।
शुभ का चौघड़िया: अपराह्न 04:18 से शाम 05:42 के बीच।
 
नोट : वैसे इस दिन पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग पूरे दिन रहेगा इसलिए राहुकाल छोड़कर कभी भी कुछ भी खरीद सकते हैं। राहुकाल दोपहर 01:29 से दोपहर 02:54 के बीच रहेगा। 
 
नक्षत्र और वार : 27 नक्षत्रों में से एक 8वां नक्षत्र पुष्‍य है और 28वां नक्षत्र अभिजीत है। जिस वार को पुष्य नक्षत्र आता है उसे उसी वार के अनुसार जाना जाता है। जैसे रवि पुष्‍य योग, शनि पुष्य योग, गुरु पुष्य योग। बुधवार और शुक्रवार के दिन पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र उत्पातकारी भी माने गए हैं। बाकि दिन आने वाले पुष्‍य नक्षत्र शुभ है और उनमें भी शनि और गुरु पुष्‍य ( गुरु पुष्य नक्षत्र 2024 ) को सबसे शुभ माना गया है।
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गुरुवार को पुष्य नक्षत्र का संयोग और महत्व: अन्य माह के पुष्य नक्षत्र से ज्यादा दीपावली के पहले आने वाला पुष्य नक्षत्र खास माना जाता है, क्योंकि दीपावली के लिए की जाने वाली खरीदी के लिए यह विशेष शुभ होता है जिससे कि जो भी वस्तु इस दिन आप खरीदते हैं वह लंबे समय तक उपयोग में रहती है। इस क्षत्र में मान्यता अनुसार इस दौरान की गई खरीदारी अक्षय रहेगी। अक्षय अर्थात जिसका कभी क्षय नहीं होता है। इसे 'ज्योतिष्य और अमरेज्य' भी कहते हैं। अमरेज्य शब्द का अर्थ है- देवताओं का पूज्य।
 
बृहस्पति को पुष्य नक्षत्र के देवता के रूप में माना गया है। दूसरी ओर शनि ग्रह पुष्य नक्षत्र के अधिपति ग्रह माने गए हैं। इसीलिए शनि का प्रभाव शनि ग्रह के कुछ विशेष गुण इस नक्षत्र को प्रदान करते हैं। पुष्य नक्षत्र के सभी चार चरण कर्क राशि में स्थित होते हैं जिसके कारण यह नक्षत्र कर्क राशि तथा इसके स्वामी ग्रह चन्द्रमा के प्रभाव में भी आता है। चूंकि बृहस्पति शुभता, बुद्धि‍मत्ता और ज्ञान का प्रतीक हैं, शनि स्थायि‍त्व का, इसलिए इन दोनों का योग मिलकर पुष्य नक्षत्र को शुभ और चिर स्थायी बना देता है। इसके साथ ही चन्द्रमा को वैदिक ज्योतिष में मातृत्व तथा पोषण से जुड़ा हुआ ग्रह माना जाता है। शनि, बृहस्पति तथा चन्द्रमा का इस नक्षत्र पर मिश्रित प्रभाव इस नक्षत्र को पोषक, सेवा भाव से काम करने वाला, सहनशील, मातृत्व के गुणों से भरपूर तथा दयालु बना देता है जिसके चलते इस नक्षत्र के प्रभाव में आने वाले जातकों में भी यह गुण देखे जाते हैं।

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