मंगल नवग्रहों में से एक है। लाल आभायुक्त दिखाई देने वाला यह ग्रह जब धरती की सीध में आता है तब इसका उदय माना जाता है। उदय के पश्चात 300 दिनों के बाद यह वक्री होकर 60 दिनों तक चलता है। बाद में फिर सामान्य परिक्रमा मार्ग पर आकर 300 दिनों तक चलता है। ऐसी स्थिति में मंगल का अस्त होना कहा गया है।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार मंगल ग्रह मेष राशि एवं वृश्चिक राशि का स्वामी होता है। मंगल मकर राशि में उच्च भाव में तथा कर्क राशि में नीच भाव में कहलाता है।
सूर्य, चंद्र एवं बृहस्पति इसके सखा या शुभकारक ग्रह कहलाते हैं एवं बुध इसका विरोधी ग्रह कहलाता है। शुक्र एवं शनि अप्रभावित या सामान्य रहते हैं।
मंगल तीन चंद्र नक्षत्रों का भी स्वामी है- मृगशिरा, चित्रा एवं श्राविष्ठा या धनिष्ठा।
मंगल से संबंधित वस्तुएं हैं- रक्त वर्ण, पीतल धातु, मूंगा, आदि। इसका तत्त्व अग्नि होता है एवं यह दक्षिण दिशा और ग्रीष्म काल से संबंधित है।
कुंडली में मंगल के शुभ और अशुभ होने के प्रभाव निम्न होते हैं।
शुभ प्रभाव :
* मंगल सेनापति स्वभाव का है।
*शुभ हो तो साहसी, शस्त्रधारी व सैन्य अधिकारी बनता है या किसी कंपनी में लीडर या फिर श्रेष्ठ नेता।
*मंगल अच्छाई पर चलने वाला है ग्रह है किंतु मंगल को बुराई की ओर जाने की प्रेरणा मिलती है तो यह पीछे नहीं हटता और यही उसके अशुभ होने का कारण है।
*सूर्य और बुध मिलकर शुभ मंगल बन जाते हैं।
* दसवें भाव में मंगल का होना अच्छा माना गया है।
अशुभ प्रभाव :
* बहुत ज्यादा अशुभ हो तो बड़े भाई के नहीं होने की संभावना प्रबल मानी गई है।
*भाई हो तो उनसे दुश्मनी होती है।
*बच्चे पैदा करने में अड़चनें आती हैं।
*पैदा होते ही उनकी मौत हो जाती है।
*एक आंख से दिखना बंद हो सकता है।
*शरीर के जोड़ काम नहीं करते हैं।
*रक्त की कमी या अशुद्धि हो जाती है।
*मंगल के साथ केतु हो तो अशुभ हो जाता है।
*मंगल के साथ बुध के होने से भी अच्छा फल नहीं मिलता।
*चौथे और आठवें भाव में मंगल अशुभ माना गया है।
*किसी भी भाव में मंगल अकेला हो तो पिंजरे में बंद शेर की तरह है।