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जब लग्न में मंगल हो

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भारती पंडित

लग्न का मंगल कई दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। यह लग्न में बैठकर चतुर्थ और सप्तम स्थान को दृष्टि देता है और पूर्ण मांगलिक योग बनाता है।
 
लग्नस्थ मंगल स्वगृही, मित्र क्षेत्री या उच्च का हो तो जातक पुष्ट देह का, अच्छी कद-काठी का, निरोगी व अच्छे कार्य करके समाज में पद-यश पाने वाला होता है। पाप प्रभाव में आया मंगल जातक को क्रोधी, झगड़ालू, व्यर्थ प्रलाप करने वाला बनाता है। ऐसे लोगों को दाँतों के रोग व उदर रोग होने की आशंका रहती है। रक्तचाप की शिकायत भी रहती है।
 
लग्नस्‍थ मंगल जातक की कई व्यवसायों की तरफ आकृष्ट करता है मगर सफलता कम ही मिलती है। यह मंगल अहंकार भी बढ़ाता है। मिथुन व तुला का मंगल मिलनसार, व्यवहार कुशल बनाता है।
 
सिंह राशि का मंगल धन व उन्नतिदायक होता है। वृषभ, कन्या, व मकर का मंगल कंजूस व संकुचित विचारों का बनाता है। कर्क, वृश्चिक, कुंभ व मीन का मंगल यश तो देता है, मगर धन की कमी बनाता है। मेष का मंगल सुखकारक होता है।
 
मंगल पर पाप प्रभाव होने की स्थिति में हनुमान जी की उपासना, मंगलवार का व्रत व लाल वस्तु का दान उपयोगी होता है।

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