Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

आयुर्वेद चिकित्सा में इन तरीकों से करवा सकते हैं इलाज, 100 प्रतिशत मिलेगा लाभ

हमें फॉलो करें आयुर्वेद चिकित्सा में इन तरीकों से करवा सकते हैं इलाज, 100 प्रतिशत मिलेगा लाभ

अनिरुद्ध जोशी

आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे आरंभिक चिकित्‍सा शाखा है। प्राकृतिक चिकित्सा इसका एक अंग मात्र है। आयुर्वेद का जन्म भारत में हुआ। समय समय पर आयुर्वेद की चिकित्सा कराते रहेंगे तो सदा स्वस्थ और युवा बने रहेंगे। तो आओ जानते हैं कि आयुर्वेद में आप किस तरह से चिकित्सा लाभ ले सकते हैं।
 
 
1. आयुर्वेद प्रकृति के अनुसार जीवन जीने की सलाह देता है।
 
2. सेहतमंद बने रहकर मोक्ष प्राप्त करना ही भारतीय ऋषियों का उद्देश्य रहा है।
 
3. आयुर्वेद कहता है कि 'पहला सुख निरोगी काया'।
 
4. आयुर्वेद मानता है कि हमारी अधिकतर बीमारियों का जन्म स्थान हमारा दिमाग है। इच्छाएं, भाव, द्वेष, क्रोध, लालच, काम आदि नकारात्मक प्रवृत्तियों से कई तरह के रोग उत्पन्न होते हैं।
 
 
5. आयुर्वेद के अनुसार भोजन को यदि उत्तम भावना और प्रसन्नता से पकाकर और उसी भावना से खाया जाए तो वह अमृत के समान गुणों का हो जाता है।
 
6. आयुर्वेद के अनुसार भोजन के लगभग 1 घंटे बाद पानी पीने से खाए गए भोजन का लाभ मिलता है और व्यक्ति निरोगी भी रहता है।
 
7. त्रिदोष :- आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शारीर में तीन जैविक-तत्व होते हैं जिन्हें त्रिदोष कहा जाता है। शारीर के भीतर इन तीन तत्वों का उतार-चढ़ाव लगा रहता है। इनका संतुलन गड़बड़ाने या कम ज्यादा होने से रोग उत्पन्न होते हैं।
 
 
यह तीन दोष हैं- वात (वायु तत्व) पित्त (अग्नि तत्व) और कफ। वात के 5 उपभाग है 1- प्राण वात, 2- समान वात, 3- उदान वात, 4- अपान वात और 5- व्‍यान वात। पित्त के भी 5 उपभाग है 1- साधक पित्‍त, 2- भ्राजक पित्‍त, 3- रंजक पित्‍त, 4- लोचक पित्‍त और 5- पाचक पित्‍त। इसी तरह से कफ के भी 5 उपभाग है- 1- क्‍लेदन कफ, 2- अवलम्‍बन कफ, 3- श्‍लेष्‍मन कफ, 4- रसन कफ और 5- स्‍नेहन कफ।
 
आयुर्वेद के आठ अंग
1. काया चिकित्सा : इसमें शरीर को औषधि प्रदान की जाती है।
2. काउमारा भर्त्य : इसमें बच्चों की चिकित्सा की जाती है।
3. सल्यतंत्र : इसमें सर्जरी की जाती है।
4. सलाक्यतंत्र : कान, नाक, आंख और मुंह के रोगों के लिए चिकित्सा।
5. भूतविद्या : मानसिक विकारों के लिए चिकित्सा।
6. अगदतंत्र : विष या जहर आदि के लिए चिकित्सा।
7. रसायनतंत्र : विटामिन और पोषक तत्वों से संबंधी चिकित्सा।
8. वाजीकरणतत्र : यौन सुख से जुड़ी समस्या संबंधी चिकित्सा।
 
 
आयुर्वेद के पंचकर्म:- इसके मुख्‍य प्रकार बताएं जा रहे हैं परंतु इसके उप प्रकार भी है। यह पंचकर्म क्रियाएं योग का भी अंग है।
 
1. वमन क्रिया : इसमें उल्टी कराकर शरीर की सफाई की जाती है। शरीर में जमे हुए कफ को निकालकर अहारनाल और पेट को साफ किया जाता है।
 
2. विरेचन क्रिया : इसमें शरीर की आंतों को साफ किया जाता है। आधुनिक दौर में एनिमा लगाकर यह कार्य किया जाता है परंतु आयुर्वेद में प्राकृतिक तरीके से यह कार्य किया जाता है।
 
 
3. निरूहवस्थी क्रिया : इसे निरूह बस्ति भी कहते हैं। आमाशय की शुद्धि के लिए औषधियों के क्वाथ, दूध और तेल का प्रयोग किया जाता है, उसे निरूह बस्ति कहते हैं।
 
4. नास्या : सिर, आंख, नाक, कान और गले के रोगों में जो चिकित्सा नाक द्वारा की जाती है उसे नस्य या शिरोविरेचन कहते हैं।
 
5. अनुवासनावस्ती : गुदामार्ग में औषधि डालने की प्रक्रिया बस्ति कर्म कहलाती है और जिस बस्ति कर्म में केवल घी, तैल या अन्य चिकनाई युक्त द्रव्यों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है उसे अनुवासन या 'स्नेहन बस्ति कहा जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Motivation : आपके जैसा दुनिया में कोई दूसरा नहीं तो फिर क्यों हैं निराश?