How to celebrate Baisakhi festival: बैसाखी का पर्व 14 अप्रैल 2023 शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस पर्व का प्रचलन खासकर पंजाब और हरियाणा के हिन्दू और सिख परिवार के लोगों के बीच है। इस दिन सूर्यदेव मेष राशि में प्रवेश करते हैं, अत: यह दिन को मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह पंजाबी नववर्ष का प्रतीक तथा सिख धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है।
बैसाखी क्यों मनाई जाती है?
- 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उस समय बैसाखी का पर्व भी था। इसीलिए 13 अप्रैल को भी महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।
- पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियां मनाते हैं। यह रबी की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है।
क्या करते हैं बैसाखी वाले दिन?
- बैसाखी का पर्व मुख्य रूप से या तो किसी गुरुद्वारे या फिर किसी खुले क्षेत्र में मनाया जाता है, जिसमें लोग भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करते हैं। अंत में लोग लंगर चखते हैं।
- पूरे देश में श्रद्धालु गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते हैं। मुख्य समारोह आनंदपुर साहिब में होता है, जहां पंथ की नींव रखी गई थी।
- सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर लाया जाता है।
- दूध और जल से प्रतीकात्मक स्नान करवाने के बाद गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर बैठाया जाता है। इसके बाद पंच प्यारे 'पंचबानी' गाते हैं।
- दिन में अरदास के बाद गुरु को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है।
- प्रसाद लेने के बाद सब लोग 'गुरु के लंगर' में शामिल होते हैं।
- श्रद्धालु इस दिन कारसेवा करते हैं।
- दिनभर गुरु गोविंदसिंह और पंच प्यारों के सम्मान में शबद् और कीर्तन गाए जाते हैं।
- इस दिन पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है।
- शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फसल की खुशियां मनाते हैं।