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देशभक्ति का ऑर्केस्ट्रा और ‘दूसरे गांधी’ अन्ना का एक और सत्याग्रह

हमें फॉलो करें देशभक्ति का ऑर्केस्ट्रा और ‘दूसरे गांधी’ अन्ना का एक और सत्याग्रह
, बुधवार, 28 मार्च 2018 (16:27 IST)
राजेश जोशी - रेडियो एडिटर, बीबीसी हिंदी

रामलीला मैदान के छतरी वाले मंच पर सफ़ेद धोती-कुर्ते और मराठी स्टाइल की सफ़ेद टोपी पहने अकेले बैठे अन्ना हज़ारे बीच-बीच में जेब से सफ़ेद रंग का रूमाल निकाल कर अपनी आंंखें मलने लगते हैं।
 
फिर वो रूमाल को मोड़कर कुरते की जेब में रख लेते हैं और सिंथेसाइज़र की धुन और ढोलक की थाप पर देशभक्ति के गीत गा रहे गायक की ताल से ताल मिलाते हुए हौले-हौले ताली बजाने लगते हैं। कुछ देर बाद वो जैसे ऊब कर उठ जाते हैं और मंच के पीछे अंतरध्यान हो जाते हैं।
 
नीचे वाले प्लेटफ़ॉर्म पर उनके गांव रालेगन सिद्धी से आए कार्यकर्ता, पंजाब और हरियाणा के कुछ किसान नेताओं के साथ ही ऑर्केस्ट्रा सजा है और एक सुरीला गायक उसकी धुन पर एक के बाद एक देशभक्ति के गीत गाए जा रहा है। फ़िलहाल दिलीप कुमार की फ़िल्म 'कर्मा' का गाना गाया जा रहा है - 'दिल दिया है जाँ भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए'। कुछ लोग अनमने भाव से तिरंगा झंडा इधर से उधर लहरा रहे हैं। अन्ना फिर मंच पर लौट आते हैं। उनका अकेलापन भी उनके साथ साथ चलता है।
 
अन्ना का पिछला अनशन : पिछली बार यानी 2011 में वो इतने अकेले नहीं थे। केंद्र में मनमोहनसिंह की भ्रष्ट सरकार थी, दिल्ली में शीला दीक्षित की सदारत में कॉमनवेल्थ गेम के मैनेजर चाँदी काट रहे थे। देश के सबसे बड़े एकाउंटेंट विनोद राय ने सरकार के मंत्रियों पर एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपए का घोटाला करने का कच्चा-पक्का हिसाब जनता के सामने रख दिया था।
 
अन्ना हज़ारे को जनता के ग़ुस्से का प्रतीक बनाया गया और दिल्ली लाकर इसी रामलीला मैदान में स्थापित कर दिया गया था। तब उनके साथ किरन बेदी थीं, प्रशांत भूषण थे, अरविंद केजरीवाल नाम का एक फ़ितरती नौजवान, योग सिखाने और आयुर्वेदिक दवाएँ बेचने वाला एक साधु, संघ के पूर्व सिद्धांतकार केएन गोविंदाचार्य, योगेंद्र यादव, सिनेमा एक्टर ओम पुरी और कुछ लोग कहते हैं कि परदे के पीछे सुपर जासूस अजित डोभाल भी अपनी ताक़त लगाए हुए थे।
 
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रणनीतिकार, कंप्यूटर प्रोग्रामर, नौजवान फ़ैशन डिज़ाइनर, एमबीए के छात्र, नुक्कड़ नाटक करने वाली टीमें, हर रंग के समाजवादी, हर रंग के काँग्रेस-विरोधी, रेहड़ी-ठेले वाले, फेरीवाले और सबसे ज़्यादा टीवी के पत्रकार - मर्द हों या औरत, सब अन्ना के रंग में रंगे हुए थे।
 
सब अन्ना जैसी सफ़ेद टोपियाँ पहने होते थे जिनमें लिखा होता था- 'आई एम अन्ना'। हमेशा विरोध के सुर में बात करने वाली अरुंधति राय शायद अकेली लेखिका थीं जिन्होंने अख़बार में लेख लिखा जिसका शीर्षक था - थैंक गॉड, आइ एम नॉट अन्ना!
 
'अन्ना में गांधी की छवि' : टीवी के पत्रकारों में अन्ना हज़ारे को 'दूसरा गांंधी' बताने की होड़ लगी रहती थी। नारे लगाए जाते थे - अन्ना नहीं है आंंधी है - देश का दूसरा गांंधी है। वो चौमासे के दिन थे। दिल्ली का आसमान बादलों से आच्छादित रहता था और दिन में उमस भर जाती थी। ऐसे में भारी भीड़ के बीच अन्ना का गांंधी समाधि पहुंंचकर श्रद्धांजलि देना टेलीविज़न के लिए सबसे बड़ी ख़बर थी।
 
भीड़ से बचकर निकलने के लिए धोती-कुरता पहने अन्ना दौड़ दौड़कर टीवी कैमरों से बचकर आगे भाग रहे थे। उनके पीछे पूरा ज़माना। टीवी ने इस दृश्य को ऐसे दिखाया जैसे मोहनदास करमचंद गांंधी ख़ुद को श्रद्धांजलि देने के लिए अपनी ही समाधि की तरफ़ दौड़े चले जा रहे हों। नर्वस से टीवी रिपोर्टर लगभग चीख़ते हुए बताते थे - 75 वर्ष की उम्र में भी इतनी ऊर्जा। देखिए, देखिए अन्ना कैसे तेज़ी से दौड़कर आगे जा रहे हैं।
 
कुछ पत्रकार अन्ना का अनशन कवर करने गए और अन्ना के ही होकर रह गए। ये अलग बात है कि आख़िरकार वो अन्ना के भी नहीं रहे और केजरीवाल के साथ हो लिए। अब छह साल बाद अन्ना अपने ओटले पर अकेले हैं। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए, अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बन गए, किरन बेदी गवर्नरी सँभाल रही हैं, ओम पुरी स्वर्ग सिधार गए, अजित डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं।
 
अन्ना के साथ बच गए हैं तो खिचड़ी बालों और पकी उम्र वाले पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से आए कुछ किसान, चिटफ़ंड कंपनियों से धोखा खाए कुछ इनवेस्टर, तिरंगे झंडे के रंग की साड़ियाँ पहनकर पूर्वी उत्तर प्रदेश से आई महिलाओं का एक दल और ऑर्केस्ट्रा की धुन पर देशभक्ति के गीत गाने वाले कुछ गायक।
 
और कुल मिलाकर टेलीविज़न के तीन कैमरे। टेलीविज़न की एक चिड़चिड़ी रिपोर्टर अपने किसी साथी को फ़ोन पर खरी-खोटी सुना रही है। अब अन्ना का आंदोलन रिपोर्टरों के लिए 'प्लम असाइनमेंट' नहीं रहा। कहाँ है ओवी वैन्स की वो भीड़? दिन-रात लाइव कवरेज करने वाले वो पत्रकार कहाँ हैं? और वो रणनीतिकार, वो फ़िल्मी सितारे?
 
"कल महाराष्ट्र के कृषि मंत्री गिरीश महाजन आए थे। उन्होंने अन्ना से एक डेढ़ घंटे तक बात की" - नवीन जयहिंद के पास कुलजमा एक यही वीआइपी नाम है गिनाने को। हरियाणा से आए वॉलेंटियर नवीन 'जयहिंद' फ़ौजियों वाली टोपी पहने रहते हैं और उनकी टी-शर्ट में जय हिंद छपा हुआ है। वो वॉकी-टॉकी पर बीच बीच में अपने किसी साथी से पूछ लेते हैं - मेन गेट पर सब ठीक है न?
 
पर अन्ना तो लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति की माँग कर रहे हैं, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने, किसानों को लागत का डेढ़ गुना दाम देने और सभी पार्टियों का चुनाव निशान ख़त्म किए जाने की माँग कर रहे हैं। ये तो सब केंद्र सरकार के प्रश्न हैं - महाराष्ट्र के मंत्री इसमें क्या करेंगे? मेरे इस सवाल पर नवीन 'जयहिंद' प्रतिवाद करते हैं - नहीं नहीं, केंद्रीय राज्यमंत्री भी आए थे अन्ना से मिलने।
 
अन्ना के मंच से पचास मीटर दूर लोहे की जाली के पार उनके समर्थकों को नीचे बैठाया गया है। लगता है वो भी तिरंगा हिलाते हिलाते ऊब गए हैं और अब शिथिल बैठे हैं। वो सिर्फ़ दूर से अन्ना के दर्शन कर सकते हैं। ऊपर मंच पर चढ़ने की किसी को इजाज़त नहीं है।
 
मंच संचालन कर रहे मराठी-भाषी व्यक्ति को तुरंत एहसास होता है कि गर्मी में शिथिल पड़े अन्ना-समर्थकों को जोश दिलाना पड़ेगा। माइक पर अचानक उनकी मराठी लहजे वाली हिंदी में की गई उद्घोषणा आसपास फैली ऊब को तोड़ती है।
 
वो कहते हैं : "यहां से हम देख सकते हे पूरा मैदान किसान मण्डपों से भरा हुआ हे (वो हैं को हमेशा हे ही कहते हैं)।" मेरी तरह ही कई लोग इस एलान की सत्यता जांंचने के लिए बेसाख़्ता पीछे घूमकर देखने लगते हैं। बड़े से शामियाने के नीचे वही उनींदे से किसान, महिलाएं और तिरंगा लिए लोग इधर उधर बैठे या अधलेटे दिखाई पड़ते हैं।
 
पूछने पर उन्नाव से आई महिलाओं में से एक मेहनतकश दिखने वाली महिला अपना दर्द ज़ाहिर करती हैं - "हम गरीब मनई हैं। न रुजगार, न खाने-कमाने का ठिकाना। हम अन्ना जी को यही बताने आए हैं।"
 
ऑर्केस्ट्रा पर ताल कहरवा बजने लगता है और माइक पर एलान गूँजता है - ज़िंदगी एक सफ़र के दिग्दर्शक अभय जी अब देशभक्ति का एक गाना प्रस्तुत करेंगे।
 
सिंथेसाइज़र की सुरीली तान और ढोलक की थाप पड़ने से पहले अभय जी गाना शुरू करते हैं - नफ़रत की लाठी तोड़ो, लालच का खंजर फेंको.... आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों.... आपस में प्रेम करो देशप्रेमियों। ताल कहरवा सुनकर शामियाने में बैठे कुछ लोगों को जोश आ जाता है और वो तिरंगा लेकर लहराने लगते हैं।
 
अन्ना अपनी गद्दी पर बैठे-बैठे इसी ताल पर हलके हलके फिर से बिना आवाज़ किए ताली बजाने लगते हैं - आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों...
 
कितनी उम्मीद? : कुछ देर बाद गाना ख़त्म होता है, लोग फिर मुरझाने लगते हैं। भाषण उन्हें रास नहीं आ रहे। सूत्रधार के पास कहने को कुछ नया नहीं है। वो भारत माता की जय का उद्घोष करते हैं। फिर एक वक्ता को कुछ और नारे याद आते हैं। पांडाल में आवाज़ गूँजती है - गऊ माता की जय। फिर अन्ना के गाँव रालेगण सिद्धी की सरपंच रोहिणी ताई को मंच पर गाने के लिए आमंत्रित किया जाता है। वो अन्ना की प्रशंसा में लिखा एक मराठी गीत गाने लगती हैं।
 
हमचा अन्नाचा जीवनाचा मंत्र जीवन जीवने...
 
ऑर्केस्ट्रा ख़ामोश है। क्रीम कलर का सफ़ारी सूट पहने एक तिलकधारी सेल्फ़ी स्टिक से किसी प्रोफ़ेशनल टीवी कैमरामैन की धज में पूरे दृश्य को अपने आइफ़ोन पर उतार रहा है। मंच पर अन्ना का स्तुतिगान करने वाले एक और कवि की आवाज़ गूँजने लगती है।
 
रामविसाल कुशवाहा स्वरचित गीत सुना रहे हैं:
अनशन पर आ बैठे हैं अन्ना जी दिल्ली में,
ना कोई आगे न कोई पीछे - फिर भी चले हैं अन्ना जी दिल्ली में...
रालेगान सिद्धी से जनलोकपाल से वास्ते....
 
मंच पर बैठे अन्ना हज़ारे गाने की लय पर ताली बजाने लगे हैं। पंडाल के सबसे पीछे बैठे किसानों के हुजूम से नारों की आवाज़ें आनी शुरू हो गई हैं। "हमें उम्मीद है कल तक लिखित में समझौता हो जाएगा और अगर सरकार ने लिखित में माँगें मानने का आश्वासन दिया तो अनशन समाप्त होने की संभावना है", नवीन जयहिंद पूरी गंभीरता के साथ बताते हैं।
 
उन्हें उम्मीद है इस बार अन्ना ख़ाली हाथ नहीं जाएंगे। रामलीला मैदान में आए लोगों को भी यही उम्मीद है। पर किसन बाबूराव उर्फ़ अन्ना हज़ारे का दिल ही जानता है कि उनको नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार से कितनी उम्मीद है।

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