असम के मिसामुख गांव से दिलीप कुमार शर्मा
असम के नगांव जिले में बाढ़ से तबाह हुए लोग अपना सब कुछ गंवाने के बाद सड़क पर आ गए हैं। मिसामुख गांव के राहत शिविर में अपने परिवार के साथ रह रहे आमिर अली अपने गांव के मुखिया की तारीफ करते नहीं थकते।
आमिर कहते हैं, 'हमारे गांव के मुखिया हिंदू हैं लेकिन जिस दिन से बाढ़ आई है, तभी से वह हमारे परिवार की मदद कर रहे हैं। कई बार रात को वह हमारे साथ बाढ़ के पानी से घिरे घर पर भी गए हैं। राहत शिविर में राशन को लेकर भी कोई परेशानी नहीं है। गांव के दूसरे हिंदू भाई लोग भी इस मुश्किल समय में हमारे साथ हैं।'
आमिर के अनुसार गांव में हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों की आबादी कम है लेकिन उन्हें अपनी सुरक्षा को लेकर कभी कोई चिंता नहीं हुई। इस गांव में हिंदू और मुसलमानों के घर एक ही कतार में हैं।
44 साल के आमिर आगे कहते हैं, 'बाढ़ का पानी रात करीब दो बजे हमारे घर में घुसा था और महज आधे घंटे में कमर तक पहुंच गया। हमने अपने जन्म के बाद कभी इतना पानी नहीं देखा। मैंने अपने घर का आधा सामान एक हिंदू दोस्त के घर पर रखा है। इस तरह कई हिंदू लोगों ने भी अपना कीमती सामान मुसलमानों के घर पर रखा है. हमारे बीच का यह भरोसा एक दिन का नहीं है, काफी सालों से हैं।'
घर वापस जाने के सवाल पर आमिर कहते हैं कि अभी भी हमारे घर में पानी है और जिन लोगों की कच्ची झोपड़ियां थीं, वे बाढ़ में बह चुकी हैं।
कई सालों से चला आ रहा है भाई-चारा
ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी कोलोंग के किनारे बसे इस गांव में पिछले 30 सालों में किसी ने भी बाढ़ की तबाही का ऐसा मंजर नहीं देखा था। मगर इस साल की बाढ़ ने यहां अधिकतर मकानों को तबाह कर दिया है।
कई लोग ऐसे भी हैं जिनके सिर पर अब छत तक नहीं बची है। बेघर हुए ये लोग पिछले 15 दिनों से रोहधोला पंचायत कार्यालय के सामने प्लास्टिक की पन्नी से बने अस्थाई शिविरों में रह रहे हैं।
रिश्तों की अहमियत
229 परिवारों की अबादी वाले मिसामुख गांव में हिंदू-मुसलमान बिना किसी विवाद के सालों से खुशी-खुशी रह रहे हैं. देश में धर्म के मसले पर चल रही असहज करने वाली बहस से इन लोगों का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं हैं। गांव के लोगों से मिलने पर इंसानी रिश्तों की सही अहमियत समझ आती है।
मिसामुख गांव में मेरी मुलाकात गांव के मुखिया पुतुल चंद्र कुंवर से हुई। उन्होंने कहा,'हमारे गांव में सालों से हिंदू-मुसलमान साथ में रह रहे हैं। कभी कोई दिक्कत ही नहीं हुई। इसीलिए गांव में जब बाढ़ आई तो हमने दोनों धर्मों के लोगों की रहने की व्यवस्था एक ही जगह पर की।'
पुतुल चंद्र कुंवर बताते हैं कि सब एक-दूसरे के साथ मिलकर रह रहे हैं और यहां राहत शिविर में भी सबको एक समान सुविधाएं मिली हुई हैं। उनके मुताबिक किसी को भी एक-दूसरे से कोई दिक्कत नहीं है।
यहां अधिकतर लोग ग़रीब हैं, ऐसे में घर की मरम्मत के लिए भी किसी के पास पैसा नहीं हैं।
अब भी नजर आते हैं बढ़े जलस्तर के निशान
थोड़ी दूर तक पक्की और बाद में कीचड़ से भरी कच्ची सड़क से होते हुए मैं इस गांव में पहुंचा। वहां पानी तो ज़्यादा नहीं था लेकिन कुछ पक्के मकानों और पेड़ आदि पर पानी के बने निशान से साफ पता चल रहा था कि बाढ़ का रूप क्या रहा होगा।
इसी गांव में रहने वालीं भद्र माया ने कहा, 'रात को जब बाढ़ के पानी की आवाज़ सुनी तो कलेजा बैठ गया था। सब चिल्ला रहे थे- भागो-भागो। मैं भी अपने परिवार के साथ सबकुछ छोड़कर सुरक्षित जगह की तरफ भागी।'
वह कहती हैं बाढ़ से सबको नुकसान पहुंचा है, फिर चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान। आखिर हम सब इंसान हैं।
राहत शिविर में मौजूद बीजेपी कार्यकर्ता संजीव दर्जी ने बताया, 'यहां हिंदू-मुस्लिम को लेकर अलग से कोई नहीं सोचता. हमसब भाईचारे से रहते आ रहे हैं। मैं हिंदू हूं और वो मुसलमान, ऐसा कोई नहीं सोचता।'
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बाढ़ में एक दूसरे की मदद करने की ऐसी कई अभूतपूर्व मिसालें सुनने को मिल रही थीं। इन सबसे परे हेम बहादुर कहते हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से काफी उम्मीद है। उनका कहना है कि मोदी जी जब भी असम आते है, यहां के लोगों की मदद करने की बात कहते हैं।
पेशे से ड्राइवर हेम बहादुर कहते हैं कि बाढ़ से उनका घर-द्वार सब कुछ तबाह हो गया लेकिन उम्मीद है कि प्रधानमंत्री उनकी मदद जरूर करेंगे।
असम में बाढ़ की स्थिति में सुधार होने की बात कही जा रही है लेकिन अब भी राज्य के 12 ज़िलों में 11 लाख से अधिक लोग बाढ़ की चपेट में है। ब्रह्मपुत्र और इसकी कुछ सहायक नदियों का पानी आज भी ख़तरे के निशान से ऊपर बह रहा है। लेकिन राहत की बात यह है कि पिछले 24 घंटो में बाढ़ के कारण यहां किसी की भी मौत नहीं हुई है।
नगांव जिले में बाढ़ पीड़ितों के लिए अब भी 133 राहत शिविर हैं और इनमें 27 हजार से अधिक बेघर लोगों ने शरण ली है।