अमेरिकी वैज्ञानिकों को एंटी बॉयटिक्स प्रतिरोधी संक्रमण के ख़िलाफ़ एक बड़ी कामयाबी मिली है। बीते कुछ सालों में दुनिया भर में उन बैक्टीरिया का प्रकोप बढ़ा है, जो एंटी बायटिक्स के असर को कम कर देते हैं। यह दुनिया भर में बड़े स्वास्थ्य ख़तरे के तौर पर उभरा है।
बीते फरवरी में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसी बैक्टीरिया की सूची जारी की थी, जिन पर दवाओं का असर नहीं हो रहा है। लेकिन अमेरिकी वैज्ञानिकों का दावा है कि ऐसी बैक्टीरिया पर काबू पाने की मौजूदा दवा वैंकोमाइसिन में जादुई बदलाव लाने में कामयाबी मिली है।
वैंकोमाइसिन का असर इंटरकोक्की जैसे सामान्य बैक्टीरिया पर बहुत असर नहीं डाल पा रहा है, इंटरकोक्की के चलते ही पेशाब के रास्ते में संक्रमण होता है और इसी वजह से घावों में संक्रमण बना रहता है।
हज़ार गुना शक्तिशाली दवा
अमेरिकी वैज्ञानिकों के दावे के मुताबिक मौजूदा वैंकोमाइसिन को अब एक हज़ार गुना शक्तिशाली बना लिया गया है और तीन तरीकों से बैक्टीरिया पर प्रभाव डालता है। वैंकोमाइसिन के असर को बढ़ाने का ये दावा द स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीच्यूट के वैज्ञानिकों ने किया है और इस बारे में विस्तार से जानकारी प्रॉसिडिंग्स ऑफ़ द नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंस में प्रकाशित हुई है।
वैसे ये जानना दिलचस्प है कि एंटी बॉयटिक्स प्रतिरोधी संक्रमण के चलते अमेरिका और यूरोप में हर साल 50 हज़ार लोगों की मौत होती है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में ये तस्वीर और भी भयावह है। एंटी बॉयटिक्स और उसके इस्तेमाल पर नज़र रखने वाले प्रोजेक्ट रेस्सिटेंस मैप के मुताबिक भारत में एंटी बॉयटिक प्रतिरोधी संक्रमण का ख़तरा सबसे ज़्यादा है। इसके मुताबिक ये अनुमान भी लगाया जा रहा है कि भारत में 95 फ़ीसदी वयस्कों के शरीर एंटी बॉयटिक्स के असर को कम करने वाले बैक्टीरिया मौजूद हैं।