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बांग्लादेश: वो कुछ घंटे, जिनमें शेख़ हसीना से छिनी सत्ता और देश छोड़कर भागना पड़ा

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BBC Hindi

, मंगलवार, 6 अगस्त 2024 (08:00 IST)
छात्र आंदोलन, हिंसा, सैकड़ों लोगों की मौत और सोमवार को प्रदर्शनकारियों के मार्च के एलान के बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने पद और देश छोड़ दिया।
 
सरकारी नौकरियों में आरक्षण के ख़िलाफ़ शुरू हुआ ये छात्र आंदोलन, देशव्यापी प्रदर्शन में तब्दील होकर शेख़ हसीना की सरकार के पतन तक पहुंच गया।
 
सेना की ओर से देश में अंतरिम सरकार का गठन करने की घोषणा के बावजूद, आंदोलन और बांग्लादेश में आगे क्या होगा ये अभी स्पष्ट नहीं है। पांच अगस्त का दिन बांग्लादेश के लिए ऐतिहासिक दिन साबित हुआ।
 
शेख़ हसीना का लगातार पंद्रह साल से चला आ रहा शासन और पांचवां कार्यकाल अचानक समाप्त हो गया। आनन-फानन में हसीना को देश छोड़कर जाना पड़ा।
 
पांच अगस्त को क्या-क्या हुआ
चार अगस्त को हुई व्यापक हिंसा के बाद पांच अगस्त की शुरुआत बेहद तनावपूर्ण हालात में हुई। तनाव के मद्देनज़र सरकार ने सोमवार से बुधवार की छुट्टी की घोषणा कर दी थी।
 
सुबह दस बजे ही ढाका में सेंट्रल शहीद मीनार के पास अलग-अलग कॉलेजों और संस्थानों की भीड़ ‘ढाका मार्च’ में शामिल होने के लिए जुट गई थी।
 
‘स्टूडेंट अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन मूवमेंट’ ने इस मार्च का आह्वान किया था। पुलिस ने आंसू गैस और साउंड ग्रेनेड चलाकर छात्रों को हटाने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही।
 
बांग्लादेश सरकार ने 25 जुलाई को ही इंटरनेट बंद कर दिया था। फ़ेसबुक, व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी रोक लगा दी गई। लेकिन सोमवार को देश में पूरी तरह इंटरनेट बंद करने का आदेश दे दिया गया। ब्राडबैंड इंटरनेट को भी बंद कर दिया गया। न्यूज़ वेबसाइटें भी ऑफ़लाइन हो गईं।
 
सख़्त इंतज़ाम, दमन की कोशिशें और पाबंदियां लोगों को घरों से निकलने से नहीं रोक सकीं। शहर के हर कोने से लोग बाहर सड़कों पर निकलने लगे।
 
11 बजते-बजते ढाका के जतराबाड़ी इलाक़े में हज़ारों लोगों की भीड़ जुट गई। तैनात की गई पुलिस भीड़ को थामने के लिए नाकाफ़ी रही।
 
यहां बख़्तरबंद गाड़ियों में सवार सैनिक भी सड़कों पर तैनात कर दिए गए। पुलिस ने आंसू गैस, साउंड ग्रेनेड और गोलियां चलाकर भीड़ को रोकने की कोशिश की।
 
वहीं, दोपहर क़रीब 12 बजे ढाका के हबीबगंज इलाक़े में बोरो बाज़ार की तरफ़ बढ़ रही भीड़ पर पुलिस ने गोलीबारी की। इस घटना में छह लोगों की मौत हुई, जिनमें नाबालिग बच्चे भी शामिल थे।
 
सोमवार के ढाका मार्च को रोकने के लिए दसियों हज़ार छात्रों, प्रदर्शनकारियों और विपक्ष के नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया।
 
लेकिन इस सबके बावजूद बड़े पैमाने पर छात्र और आम लोग बाहर निकले और शहीद मीनार से शाहबाग़ इलाक़े की तरफ़ बढ़े। रविवार को शाहबाग़ में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई हिंसा में कई लोग मारे गए थे।
 
देश में तेज़ी से बदल रहे हालात के बीच बांग्लादेश के सेना प्रमुख वाकेर उज़्ज़मां ने दोपहर दो बजे राष्ट्र को संबोधित करने की घोषणा की। सेना ने एक बयान जारी कर सेना प्रमुख के संबोधन तक लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की। इसी बीच, सड़कों पर भीड़ बढ़ती गई, लाखों लोग ढाका की सड़कों पर उतर आए।
 
शेख हसीना ने देश छोड़ा
दोपहर क़रीब सवा एक बजे, बांग्लादेश में ब्राडबैंड इंटरनेट फिर से बहाल कर दिया गया। ऑफ़लाइन हुई वेबसाइटें लाइव आने लगीं। सोशल मीडिया वेबसाइटों पर लगी पाबंदियां भी हटने लगीं। हालांकि, इंटरनेट बहाल किए जाने का कोई अधिकारिक आदेश नहीं आया।
 
इसी बीच, देश के सेना प्रमुख ने अलग-अलग राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ सेना मुख्यालय पर बैठक की। इस बैठक में नागरिक समूहों से जुड़े लोग और बुद्धिजीवी भी शामिल हुए। ढाका यूनिवर्सिटी के क़ानून विभाग के प्रोफ़ेसर आसिफ़ नज़रुल को भी बैठक में बुलाया गया।
 
इसी बीच, दोपहर ढाई बजे, प्रधानमंत्री शेख हसीना के गणभवन से सैन्य हेलीकॉप्टर में निकलने की ख़बर आई। उनकी बहन शेख़ रेहाना भी उनके साथ थीं। गणभवन से हेलीकॉप्टर के उड़ने के कुछ मिनट बाद ही शेख़ हसीना के भारत के लिए रवाना होने की रिपोर्टें आने लगीं।
 
समाचार एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट में बताया गया कि देश छोड़ने से पहले शेख़ हसीना राष्ट्र के नाम संबोधन रिकॉर्ड करना चाहती थीं, लेकिन उन्हें ऐसा करने का मौक़ा नहीं मिल सका।
 
दोपहर सवा तीन बजे, सेना प्रमुख वाकेर उज़्ज़मां ने बताया कि प्रधानमंत्री ने इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ दिया है। उन्होंने विमर्श के बाद अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा भी की। सेना प्रमुख ने कहा कि प्रदर्शनकारियों की मौत में शामिल रहे लोगों पर मुक़दमे दर्ज किए जाएंगे।
 
शांति की अपील करते हुए सेना प्रमुख ने कहा, ‘हम देश को ठीक से चलाने में कामयाब होंगे।’ हालांकि, प्रदर्शनकारी शांत नहीं हुए। अवामी लीग पार्टी के दफ़्तरों में प्रदर्शनकारियों ने आग लगा दी।
 
प्रधानमंत्री आवास में लगी बांग्लादेश के संस्थापक और शेख़ हसीना के पिता शेख़ मुजीबुर्रहमान की विशाल मूर्ति पर प्रदर्शनकारी चढ़ गए। हथौड़े से इस मूर्ति को तोड़ने की कोशिश की गई।
 
दोपहर ढलते-ढलते ढाका शहर एक तरह से प्रदर्शनकारियों के नियंत्रण में आ गया। चीफ़ जस्टिस के घर में तोड़फोड़ हुई, प्रधानमंत्री आवास, संसद भवन, स्मारकों में प्रदर्शनकारी घुस गए।
 
धनमंडी इलाक़े में प्रमुख निवास स्थान सुधा सदन में आग लगा दी गई और इसे लूट लिया गया। शेख़ हसीना सरकार के कई मंत्रियों के घर पर भी हमले हुए, पार्टी के ऑफिसों को तोड़ा गया।
 
शाम छह बजे सेना ने शाहजलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर छह घंटों के लिए उड़ान के संचालन को निलंबित किए जाने की जानकारी दी।
 
अंतरिम सरकार की रूपरेखा तय करने के लिए 24 घंटों की समय सीमा
इसी बीच पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना शाम क़रीब सवा छह ग़ाज़ियाबाद के डासना स्थित भारतीय वायुसेना के हवाई अड्डे पर सी-130 विमान से उतरीं। शाम क़रीब साढ़े सात बजे भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने शेख़ हसीना से मुलाक़ात की। भारत सरकार ने सोमवार देर शाम बांग्लादेश के हालात पर चर्चा के लिए उच्चस्तरीय बैठक की।
 
वहीं, बांग्लादेश में प्रधानमंत्री के पद छोड़ने के बाद भी हालात तनावपूर्ण बने रहे। पूर्व प्रधानमंत्री और शेख़ हसीना की कट्टर प्रतिद्वंदी ख़ालेदा ज़िया ने लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की।
 
इसी बीच, शेख़ हसीना के बेटे और सलाहकार साजीब वाजेद ने बीबीसी से कहा कि उनकी मां ने अपनी सुरक्षा के लिए देश छोड़ा है और वो अब कभी राजनीति में नहीं लौटेंगी।
 
शेख़ हसीना ने विवादित आम चुनावों में भारी बहुमत हासिल करने के बाद 11 जनवरी को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। एक महीने पहले तक ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल था कि शेख़ हसीना की सत्ता पर रही मज़बूत पकड़ इस तरह ढीली हो जाएगी।
 
सोमवार को बांग्लादेश की राजनीति और हालात ने नई करवट ली है। आगे क्या होगा अभी बहुत स्पष्ट नहीं हैं।
छात्र संगठनों ने अंतरिम सरकार की रूपरेखा तय करने के लिए 24 घंटों की समय सीमा दी है।
 
बांग्लादेश में आगे क्या होगा, ये बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि अंतरिम सरकार में कौन-कौन होगा और क्या छात्र संगठन इस सरकार को स्वीकार करेंगे।
 
चार अगस्त को हुई हिंसा में 94 लोग मारे गए थे
1 जुलाई से चल रहे छात्र आंदोलन के बाद 21 जुलाई को बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लगभग समाप्त कर दिया था। लेकिन इस फ़ैसले के बावजूद, बांग्लादेश के छात्रों और लोगों का आक्रोश शांत नहीं हुआ। शेख़ हसीना के इस्तीफ़े की मांग ज़ोर पकड़ने लगी।
 
यूनिवर्सिटी और कॉलेजों से शुरू हुआ आंदोलन देश के कोने-कोने में पहुंच गया और विपक्षी दल भी सड़कों पर उतर आए। 
 
छात्र संगठनों ने चार अगस्त से पूर्ण असहयोग आंदोलन शुरू करने की घोषणा की थी। सरकार ने इन प्रदर्शनों का सख़्ती से दमन करने का प्रयास किया। गोलियां चलीं, सेना सड़कों पर उतरी, लेकिन लोग नहीं थमे। चार अगस्त को हुई हिंसा में कम से कम 94 लोग मारे गए। छात्र आंदोलन की शुरुआत से मौतों का आंकड़ा तीन सौ को पार कर गया।
 
रविवार आंदोलन का सबसे हिंसक दिन साबित हुआ। एक ज़िला पुलिस मुख्यालय पर भीड़ के हमले में 13 पुलिसकर्मियों की मौत भी हुई। हिंसा सिर्फ़ प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच ही नहीं हुई, बल्कि सत्ताधारी अवामी लीग के कार्यकर्ता भी इसमें शामिल हो गए। देश के कोने-कोने में लोग आमने-सामने आ गए।
 
बेहद तनावपूर्ण हालात और व्यापक हिंसा के बावजूद, सोमवार को ढाका की तरफ़ मार्च के एलान से न प्रदर्शनकारी पीछे हटे और न छात्र संगठन।
 
सरकार ने राजधानी में चप्पे-चप्पे पर पुलिस और सुरक्षाबलों को तैनात कर दिया गया। लेकिन सख़्त कर्फ्यू और बड़े पैमाने पर हुई हिंसा के बाद भी लोग नहीं थमे और सोमवार को शेख़ हसीना को पद छोड़ना पड़ा और देश से भी जाना पड़ा।

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