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WhatsApp जासूसी के ग़ैरक़ानूनी खेल में मोदी सरकार फ़ेल? : नज़रिया

हमें फॉलो करें WhatsApp जासूसी के ग़ैरक़ानूनी खेल में मोदी सरकार फ़ेल? : नज़रिया

BBC Hindi

, शनिवार, 2 नवंबर 2019 (10:01 IST)
विराग गुप्ता (सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर क़ानून के जानकार)
 
इसराइली टेक्नोलॉजी से व्हाट्सएप में सेंध लगाकर पत्रकारों, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी के मामले में अनेक खुलासे हुए हैं, पर पूरा सच अभी तक सामने नहीं आया। इसराइली कंपनी NSO के स्पष्टीकरण को सच माना जाए तो सरकार या सरकारी एजेंसियां ही पेगासस सॉफ़्टवेयर के माध्यम से जासूसी कर सकती हैं। ख़ुद अपना पक्ष रखने के बजाय सरकार ने व्हाट्सएप को 4 दिनों के भीतर जवाब देने को कहा है।
 
कैंब्रिज एनालिटिका मामले में भी फ़ेसबुक से ऐसा ही जवाब मांगा गया था। कैंब्रिज मामले में यूरोपीय क़ानून के तहत कंपनी पर पेनल्टी भी लगी, पर भारत में सीबीआई अभी आंकड़ों का विश्लेषण ही कर रही है। कागज़ों से ज़ाहिर है कि व्हाट्सएप में सेंधमारी का यह खेल कई सालों से चल रहा है। तो अब कैलिफ़ोर्निया की अदालत में व्हाट्सएप द्वारा मुकदमा दायर करने के पीछे क्या कोई बड़ी रणनीति है?
 
व्हाट्सएप का अमेरिका में दायर मुक़दमा
 
व्हाट्सएप ने अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में इसराइली कंपनी एनएसओ और उसकी सहयोगी कंपनी Q साइबर टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर किया है। दिलचस्प बात यह है कि व्हाट्सएप के साथ फ़ेसबुक भी इस मुकदमे में पक्षकार है। फ़ेसबुक के पास व्हाट्सएप का स्वामित्व है लेकिन इस मुक़दमे में फ़ेसबुक को व्हाट्सएप का सर्विस प्रोवाइडर बताया गया है, जो व्हाट्सएप को इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
 
पिछले साल ही फ़ेसबुक ने यह स्वीकारा था कि उनके ग्रुप द्वारा व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम के डाटा को इन्टेग्रेट करके उसका व्यावसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है। फ़ेसबुक ने यह भी स्वीकार किया था कि उसके प्लेटफ़ॉर्म में अनेक एप के माध्यम से डाटा माइनिंग और डाटा का कारोबार होता है।
 
कैंब्रिज एनालिटिका ऐसी ही एक कंपनी थी जिसके माध्यम से भारत समेत अनेक देशों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की गई। व्हाट्सएप अपने सिस्टम में की गई कॉल, वीडियो कॉल, चैट, ग्रुप चैट, इमेज, वीडियो, वॉइस मैसेज और फ़ाइल ट्रांसफ़र को इंक्रिप्टेड बताते हुए अपने प्लेटफ़ॉर्म को हमेशा से सुरक्षित बताता रहा है।
 
कैलिफ़ोर्निया की अदालत में दायर मुक़दमे के अनुसार इसराइली कंपनी ने मोबाइल फ़ोन के माध्यम से व्हाट्सएप के सिस्टम को भी हैक कर लिया। इस सॉफ़्टवेयर के इस्तेमाल में एक मिस्ड कॉल के ज़रिए स्मार्टफ़ोन के भीतर वायरस प्रवेश करके सारी जानकारी जमा कर लेता है। फ़ोन के कैमरे से पता चलने लगता है कि व्यक्ति कहां जा रहा है, किससे मिल रहा है और क्या बात कर रहा है?
 
ख़बरों के अनुसार एयरटेल और एमटीएनएल समेत भारत के 8 मोबाइल नेटवर्क का इस जासूसी के लिए इस्तेमाल हुआ। मुक़दमे में दर्ज तथ्यों के अनुसार इसराइली कंपनी ने जनवरी 2018 से मई 2019 के बीच भारत समेत अनेक देशों के लोगों की जासूसी की। अमेरिकी अदालत में दायर मुक़दमे के अनुसार व्हाट्सएप ने इसराइली कंपनी से मुआवज़े की मांग की है। सवाल यह है कि भारत में जिन लोगों के मोबाइल में सेंधमारी हुई, उन्हें न्याय कैसे मिलेगा?
 
NSO इसराइली कंपनी है लेकिन उसकी मिल्कियत यूरोपियन है
 
इस साल फ़रवरी में यूरोप की एक प्राइवेट इक्विटी फ़र्म नोवाल्पिना कैपिटल एलएलपी ने NSO को 100 करोड़ डॉलर में ख़रीद लिया था। बिज़नेस इन्साइडर की बैकी पीटरसन की रिपोर्ट के मुताबिक़ एनएसओ का पिछले साल का मुनाफ़ा 125 मिलियन डॉलर था। जासूसी करने वाली अनजान कंपनी जब अरबों कमा रही है तो फिर फ़ेसबुक जैसी कंपनियां अपनी सहयोगी कंपनियों के साथ डाटा बेचकर कितना बड़ा मुनाफ़ा कमा रही होंगी?
 
NSO के अनुसार उसका सॉफ़्टवेयर सरकार या सरकार अधिकृत एजेंसियों को बाल यौन उत्पीड़न, ड्रग्स और आतंकियों के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए दिया जाता है और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ जासूसी के लिए उनके सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल गलत है। इसके बाद शक की सुई अब भारत सरकार पर टिक गई है। रिपोर्टों के अनुसार 10 डिवाइसों को हैक करने के लिए लगभग 4.61 करोड़ रुपए का ख़र्च और 3.55 करोड़ रुपए का इंस्टॉलेशन ख़र्च आता है।
 
सवाल यह है कि इसराइली सॉफ्टवेयर के माध्यम से अनेक भारतीयों की जासूसी में करोड़ों का ख़र्च सरकार की किस एजेंसी ने किया होगा? यदि यह जासूसी केंद्र सरकार की एजेंसियों द्वारा अनधिकृत तौर पर की गई है तो इससे भारतीय क़ानून और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ है। यदि जासूसी को विदेशी सरकारों या निजी संस्थाओं द्वारा अंजाम दिया गया है, तो यह पूरे देश के लिए ख़तरे की घंटी है।
 
दोनों ही स्थितियों में सरकार को तथ्यात्मक स्पष्टीकरण देकर मामले की एनआईए या अन्य सक्षम एजेंसी से जांच कराई जानी चाहिए। कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरंटो की सिटीज़न लैब ने पिछले साल सितंबर में कहा था कि 45 देशों में NSO के माध्यम से व्हाट्सएप में सेंधमारी की जा रही है। भारत में 17 लोगों के विवरण अभी तक सामने आए हैं जिनमें से अधिकांश लोगों को इसकी जानकारी सिटीज़न लैब के माध्यम से मिली है।
 
सवाल यह है कि व्हाट्सएप के यूजर्स के साथ एग्रीमेंट में कहीं भी सिटीज़न लैब का जिक्र नहीं है तो फिर व्हाट्सएप ने अपने भारतीय ग्राहकों से इस सेंधमारी के बारे तुरंत और सीधा संपर्क क्यों नहीं किया?
 
टेलीफ़ोन टैपिंग पर सख़्त क़ानून, परंतु डिजिटल सेंधमारी में अराज़कता
 
भारत में टेलीग्राफ़ क़ानून के माध्यम से परंपरागत संचार व्यवस्था को नियंत्रित किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी PUCL मामले में अहम फ़ैसला देकर टेलीफ़ोन टैपिंग के बारे में सख़्त कानूनी व्यवस्था बनाई थी जिसे पिछले हफ्ते बॉम्बे हाईकोर्ट ने फिर से दोहराया है। व्हाट्सएप मामले से जाहिर है कि मोबाइल और इंटरनेट की नई व्यवस्था में पुराने कानून बेमानी हो गए हैं। पिछले दशक में ऑपरेशन प्रिज़्म में फ़ेसबुक जैसी कंपनियों द्वारा भारत के अरबों डाटा की जासूसी के प्रमाण के बावजूद दोषी कंपनियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई नहीं हुई।
 
भारत की सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच में पुट्टास्वामी मामले में निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार माना गया। फिर व्हाट्सएप और फ़ेसबुक जैसी कंपनियां भारत के करोड़ों लोगों के निजी जीवन में दखलअंदाजी करके उनके जीवन के साथ खिलवाड़ कैसे कर सकती हैं?
 
सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया कंपनियों के मामलों को एक जगह स्थानांतरित करके जनवरी 2020 में सुनवाई करने का आदेश दिया है। सरकार तो कुछ करने से रही तो क्या अब मोबाइल और डिजिटल कंपनियों की सेंधमारी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा सख्त जवाबदेही तय नहीं होनी चाहिए?
 
सुरक्षा के मसले पर दलीय राजनीति क्यों?
 
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रणब मुखर्जी और जनरल वीके सिंह के साथ हुई जासूसी को उछालते हुए इसे दलीय मामला बनाने की कोशिश की है, पर यह आम जनता की निजता और सुरक्षा से जुड़ा महत्वपूर्ण मामला है। कर्नाटक में कांग्रेसी और जेडीएस की पुरानी सरकार ने भाजपा नेताओं की जासूसी कराई थी जिसकी जांच हो रही है। नेताओं के साथ जजों के टेलीफोन टैपिंग के आरोप लग चुके हैं।
 
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद ऐसी कोई भी जासूसी लोगों के जीवन में दखलअंदाजी और उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। भारत में 40 करोड़ से ज्यादा व्हाट्सएप यूज़र हैं।
 
इसराइली सॉफ्टवेर के माध्यम से फ़ोन को ट्रैक करके इस्तांबुल में सऊदी अरब के दूतावास में 'वॉशिंगटन पोस्ट' के पत्रकार जमाल खशोज्जी की हत्या कर दी गई थी। इसलिए इन खुलासों को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार को पारदर्शी और ठोस कदम उठाकर जासूसी के गोरखधंधे पर विधिक लगाम लगाना चाहिए।
 
व्हाट्सएप की रणनीति
 
NSO जैसी दर्जनों इसराइली कंपनियां डिजिटल क्षेत्र में जासूसी की सुविधा प्रदान करती हैं। अमेरिका की अधिकांश इंटरनेट और डिजिटल कंपनियों में इसराइल की यहूदी लॉबी का आधिपत्य है। फ़ेसबुक जैसी कंपनियां अनेक एप्स और डाटा ब्रोकर्स के माध्यम से डाटा के कारोबार और जासूसी को खुलेआम बढ़ावा देती हैं। तो फिर व्हाट्सएप ने एनएसओ और उसकी सहयोगी कंपनी के ख़िलाफ़ ही अमेरिकी अदालत में मामला क्यों दायर किया है?
 
भारत में सोशल मीडिया कंपनियों के नियमन के लिए आईटी एक्ट में सन् 2008 में बड़े बदलाव किए गए थे जिसके बाद वर्ष 2009 और 2011 में अनेक इंटरमीडिटीयरी कंपनियों और डाटा सुरक्षा के लिए अनेक नियम बनाए गए। उन नियमों का पालन कराने में पुरानी यूपीए सरकार को सोशल मीडिया कंपनियों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा।
 
सोशल मीडिया कंपनियों के असंतोष को भाजपा और आप जैसी पार्टियों ने राजनीतिक लाभ में तब्दील किया। मोदी सरकार ने 'डिजिटल इंडिया' के नाम पर इंटरनेट कंपनियों को अराजक विस्तार की अनुमति दी, पर उनके नियमन के लिए कोई प्रयास नहीं किए। राष्ट्रीय सुरक्षा पर लगातार बढ़ते ख़तरे और न्यायिक हस्तक्षेप के बाद पिछले वर्ष दिसंबर 2018 में इंटरमीडिटीयरी कंपनियों की जवाबदेही बढ़ाने के लिए ड्राफ़्ट नियम का मसौदा जारी किया गया।
 
इन नियमों को लागू करने के बाद व्हाट्सएप जैसी कंपनियों को भारत में अपना कार्यालय स्थापित करने के साथ नोडल अधिकारी भी नियुक्त करना होगा। इसकी वजह से इन कंपनियों को भारत में क़ानूनी तौर पर जवाबदेह होने के साथ बड़ी मात्रा में टैक्स भुगतान भी करना होगा।
 
राष्ट्रहित और जनता की प्राइवेसी के रक्षा का दावा कर रही सरकार भी इन कंपनियों के साथ मिलीभगत में है जिसकी वजह से इन नियमों को अभी तक लागू नहीं किया गया। पिछले महीने सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा देकर कहा कि अगले 3 महीनों में इन नियमों को लागू करके सोशल मीडिया कंपनियों की जवाबदेही तय कर दी जाएगी। अमेरिका में मुक़दमा दायर करके और सेंधमारी के भय को दिखाकर, व्हाट्सएप कंपनी कहीं, भारत में सरकारी नियमन को रोकने का प्रयास तो नहीं कर रहीं?

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