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नोबेल सम्मान से सम्मानित ये स्वनाम धन्य वैज्ञानिक

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शरद सिंगी

इस वर्ष भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से संयुक्त रूप से 3 वैज्ञानिकों जेम्स पीबल्स, मिशेल मेयर और डिडिएर क्वेलोज़ को सम्मानित किया गया। भौतिक शास्त्र का नोबेल पुरस्कार ऐसे वैज्ञानिकों को मिलता है जिन्होंने या तो कोई खोज की हो, आविष्कार किया हो या फिर मनुष्य की अब तक की सैद्धांतिक जानकारी और समझ में व्यापक परिवर्तन किया हो। भौतिकी का पहला पुरस्कार विल्हेम कॉनराड रॉन्टगन को मिला था जिन्‍होंने क्ष-किरणों (एक्स-रे) की खोज की थी। केवल सोचकर देखिए कि इन किरणों की खोज के बाद कितने ही करोड़ों लोगों को लाभ मिला और मिलता रहेगा। ऐसे अनेक वैज्ञानिक हैं जिनकी असंख्य खोजों ने मानव जीवन को उस जगह पर लाकर खड़ा किया, जहां आज हम हैं।

विज्ञान और अध्यात्म दोनों की शुरुआत शाश्वत प्रश्नों से होती है। हम कौन हैं? कहां से आए हैं और कहां जाना है? अध्यात्म द्वारा ऋषियों ने अपनी तपस्या से अलौकिक शक्तियों का संचय किया, फिर जिस तरह जीवन के अनेक रहस्यों को खोला और सिद्धांत दिए उसी तरह विज्ञान अपने विकसित ज्ञान और उपकरणों के माध्यम से ब्रह्मांड के रहस्यों से परदा उठा रहा है। वैज्ञानिक इस सृष्टि की उत्पत्ति और विकास के बारे में जानने को उत्सुक हैं। ब्रह्मांड की उत्पत्ति का जो सबसे अधिक मान्यता प्राप्त सिद्धांत है, वह है महा विस्फोट या बिग बेंग का सिद्धांत जिसने कुछ क्षणों में ही सृष्टि को वे सब द्रव्य दे दिए जिनसे बृह्मांड के निर्माण की शुरुआत हुई।

इस महा विस्फोट से निकले द्रव्यों की पहचान करने के लिए वैज्ञानिक आतुर हैं। अभी तक तो मात्र 5 प्रतिशत की ही पहचान हुई, बहुत कुछ शेष है। जो शेष हैं उनकी वजह से ब्रह्मांड की निर्माण श्रृंखला समझ में नहीं आ रही। कई प्रश्न अनुत्तरित हैं। इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने उसी श्रृंखला में एक कड़ी जोड़ दी है। मजे की बात है कि जैसे ही वैज्ञानिकों के हाथ कोई नई कड़ी लगती है, पूरी श्रृंखला ही बदली नज़र आने लगती है।

ब्रह्मांड न तो स्थिर है और न ही किन्हीं सीमाओं में बद्ध। इसका न केवल बड़े वेग से विस्तार हो रहा है वरन इस वेग की तीव्रता भी निरंतर बढ़ती जा रही है। इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेता जेम्स पीबल्स ब्रह्मांड विज्ञानी हैं वहीं मिशेल मेयर और डिडिएर क्वेलोज़ खगोलविद हैं। नोबेल पुरस्कार कमेटी के जजों ने कहा कि इनकी खोज ने ब्रह्मांड के विकास और ब्रह्मांड में पृथ्वी के स्थान की वैज्ञानिकों की समझ को ही बदल दिया है।

जेम्स पीबल्स ने अपनी शोध सन् 1960 से आरंभ की थी यानी 60 वर्षों से शोध कर रहे हैं। उन्होंने बिग बेंग से निकले माइक्रोवेव रेडिएशन की सहायता से बिग बेंग के सिद्धांत की पुष्टि की और सृष्टि के निर्माण को समझने में अपना शोध पत्र रखा। उनके अनुसार अंतरिक्ष में जो हम अभी तक देख या समझ पाए हैं वह मात्र 5 प्रतिशत है। मान्यता थी कि शेष अंतरिक्ष में शून्य है किन्तु ऐसा नहीं है। 95 प्रतिशत ब्रह्मांड डार्क एनर्जी या डार्क मैटर (कृष्ण द्रव्य और कृष्ण ऊर्जा) से भरा है जो अभी रहस्य है।

शेष दो वैज्ञानिकों का योगदान भी कम नहीं हैं। सन् 1992 तक तो ये मान्यता थी कि हमारे सौर मंडल के अतिरिक्त कहीं और कोई ग्रह नहीं है। किन्तु इन्होंने पहली बार हमारे सौर मंडल के बाहर भी एक ग्रह की खोज की, जो उसके तारे के आसपास परिक्रमा कर रहा था। हमारे सौरमंडल के बाहर मिले इस ग्रह को एक्सो प्लेनेट का नाम दिया गया। उनकी बताई विधि से तो वैज्ञानिकों ने अब तक 4 हज़ार से अधिक ग्रह खोज लिए हैं और जिनमें 4-5 तो ऐसे हैं जिनका वातावरण पृथ्वी की तरह ही है और वहां जीवन की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है।

सृष्टि के जिन नियमों में बंधा ब्रह्मांड अपना स्वतः निर्माण कर रहा है उन नियमों की हमारी समझ नई खोजों की वजह से धीरे-धीरे विकसित हो रही है। ब्रह्मांड की जितनी गहराई में हम जाते हैं उतनी ही नए मोती हाथ लगते हैं, परन्तु इस गहराई का कोई अंत नहीं है। सृष्टि में अनेक ब्रह्मांड, हैं, प्रत्येक में अनेक आकाश गंगाएं हैं जिनमें असंख्य तारे हैं और हैं उनके सौर मंडल। उनकी संपूर्णता को समझने के लिए मनुष्य का ज्ञान अभी शैशवास्था में भी नहीं पहुंचा है।

ब्रह्मांड के अरबों वर्षों के इतिहास में मनुष्य का प्रवेश तो मानों कल की बात है। इसलिए हम कड़ी-दर-कड़ी ही ज्ञान की इस श्रृंखला को जोड़ पाएंगे और रहस्यों से शनैः शनैः परदा उठेगा। हम तो करें उन वैज्ञानिकों को नमन जो अपना पूरा जीवन आहूत कर देते हैं उन कड़ियों की खोज में। जो सफल हो जाते हैं उन्हें मान्यता मिल जाती है और जो असफल होते हैं वे शायद ब्रह्मांड की कृष्ण ऊर्जा में विलीन हो जाते हैं। उनकी साधना को भी हमारा नमन। 

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