तारेंद्र किशोर, बीबीसी संवाददाता
भारत में लॉकडाउन का चौथा चरण शुरू होने वाला है। तीसरे चरण के लॉकडाउन की घोषणा के वक़्त कई तरह की रियायतें दी गई थीं। इसमें शराब की दुकानें खोलने जैसे फ़ैसले शामिल थे। इस फ़ैसले के पीछे बढ़ते आर्थिक दबाव की मजबूरी बताई गई थी।
जब तीसरे लॉकडाउन में कई तरह की पाबंदियों में छूट दी गई तो सवाल खड़ा हुआ कि क्या अब चौथे लॉकडाउन की ज़रूरत पड़ेगी। लेकिन हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख के आर्थिक पैकेज के साथ चौथे लॉकडाउन के भी संकेत दे दिए हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि यह लॉकडाउन कितने दिनों का होगा और किस तारीख़ तक होगा। उन्होंने यह ज़रूर कहा कि लॉकडाउन-4 नए रंग रूप और नए नियमों वाला होगा।
प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद उम्मीद की जा रही है कि चौथे लॉकडाउन के दौरान भी बाज़ार खोलने को लेकर कई तरह की अहम घोषणाएँ हो सकती हैं।
हालांकि दूसरे लॉकडाउन के वक़्त से ही उन्हें उद्योग जगत की ओर से जान और जहान दोनों की ही चिंता करने की सलाह दी जा रही है। लेकिन सरकार की असल चुनौती इन पाबंदियों में छूट देने के बाद ही शुरू होगी। शराब की दुकानें खोलने के बाद फैली अफ़रा-तफ़री में यह दिखा है कि बिना तैयारी ऐसे किसी भी फ़ैसले का नतीजा क्या हो सकता है।
क्या सरकार ने लॉकडाउन के दौरान की जाने वाली तैयारियों पर कोई काम नहीं किया है।
आर्थिक मुद्दों पर लिखने वाली पत्रकार पूजा मेहरा कहती हैं, "पूरी दुनिया में लॉकडाउन दो मक़सदों से किया गया। पहला यह कि जब लॉकडाउन खोलने का वक़्त आए या फिर उसमें छूट दी जाए तब तक आप स्वास्थ्य सेवाओं में ज़रूरी संसाधनों का इंतज़ाम कर पाए। क्योंकि इसके बाद साफ़ है कि संक्रमण की दर बढ़ेंगी। जब अचानक से संक्रमण की संख्या बढ़ेंगी तो फिर आपकी व्यवस्था ठप ना पड़ जाए इसलिए लॉकडाउन का इस्तेमाल इसकी तैयारी के लिए करना था जो कि भारत में नहीं हो पाया है।
दूसरा मक़सद यह था कि आगे पड़ने वाले आर्थिक दबाव के लिए तैयारियां की जा सके। इन दोनों ही मामले में भारत दूसरे देशों की तरह तैयारियां नहीं कर पाया है।"
जेएनयू में सेंटर फ़ॉर इकोनॉमिक स्टडीज़ एंड प्लानिंग के प्रोफ़ेसर प्रवीण झा भी इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं। वो कहते हैं, "भारत में स्वास्थ्य सेवाएँ पहले से बदतर स्थिति में हैं। यह बात सही है कि वो रातोंरात नहीं ठीक की जा सकतीं लेकिन पचास से ज्यादा दिनों तक चले लॉकडाउन में जिस स्तर की तैयारियां की जानी चाहिए थीं, वो नहीं की गईं। इस दौरान एक न्यूनतम आधारगत ढांचा का निर्माण करना था जो नहीं किया गया। इसलिए अब बेचारगी की स्थिति बन गई है। इस दौरान आर्थिक हालात भी किसी महामारी की तरह बन चुका हैं। "
वो आगे कहते हैं, "आर्थिक स्थिति बहुत भयावह हो गई है। सीएमआईई की रिपोर्ट बताती है कि मार्च तक बेरोज़गारी दर 23 फ़ीसदी हो गया था और अप्रैल तक आते-आते वो 27 फ़ीसदी तक था। लेकिन आजीविका और अजीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन जैसे दूसरे स्रोतों की मानें तो शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर अस्सी फ़ीसदी से भी ऊपर चला गया है। यानी कि रोज़गार एक तरह से ग़ायब ही हो गया है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर साठ से सत्तर फ़ीसदी के बीच है।"
लॉकडाउन-4 के बाद सरकार के सामने अब जो चुनौतियां पैदा होने वाली हैं, उसपर पूजा मेहरा कहती हैं, "हमने लॉकडाउन के इतने सारे दिन गंवा दिए हैं। इस दौरान बहुत किया जा सकता था लेकिन वो नहीं किया गया है और अब चूंकि आर्थिक दबाव है इसलिए कई सारे आर्थिक मामलों में छूट भी देनी होगी। ऐसी स्थिति में सरकार को प्रशासनिक क़दमों का सहारा लेना होगा। मसलन सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाया जाए। सार्वजनिक परिवहनों की ज़रूरत पड़ेगी तो उसमें इसका सख्ती से पालन किया जाए।"
वो आगे कहती हैं कि मेट्रो या डीटीसी बसों को खोलने की बात हो रही है। अगर ऐसा करते हैं तो यहाँ उमड़ने वाली भीड़ को नियंत्रित करने की ज़रूरत पड़ेगी।
पूजा मेहरा कहती है, "बसों और ट्रेनों को शुरू करने की स्थिति में किसी भी तरह की कोई ज़ोन का कोई मतलब नहीं रह जाएगा क्योंकि हर तरह के ज़ोन के लोग भी हर तरह के ज़ोन में फिर यात्रा करेंगे। इससे ज़ोन की आपकी नीति टूट जाती है। ट्रेन खोले जाने के बाद प्रवासी मज़दूर अब गांव पहुँच रहे हैं। अगर वहाँ संक्रमण फैलता है तो इसे संभालना और मुश्किल होगा। इसके बाद फिर बड़ी संख्या में संक्रमण की शुरुआत हो सकती है। ग्रामीण भारत में इसे संभालने के लिए हमारे पास पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं है।"
दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार को सार्वजनिक परिवहन चलाने को लेकर सुझाव दिया है। इसके अंतर्गत सरकार ने बस और दिल्ली मेट्रो को चलाने की बात कही है। इसे लेकर दिल्ली सरकार ने ज़ोन सिस्टम में भी बदलाव किए जाने की बात कही है ताकि पूरी दिल्ली रेड ज़ोन में ना आए। 2018-19 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक़ दिल्ली मेट्रो में तक़रीबन हर रोज़ 25 लाख लोग सफ़र करते हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 'एक देश एक राशन कार्ड' योजनी की घोषणा करते हुए कहा है कि प्रवासी मज़दूर राशन कार्ड की नेशनल पोर्टेबिलिटी के तहत देश के किसी भी हिस्से में अपने राशन कार्ड से राशन ले सकेंगे। और अगस्त 2020 तक यानी अगले तीन महीने के अंदर 23 राज्यों के 67 करोड़ लाभार्थियों को इस सिस्टम में कवर कर लिया जाएगा।
पूजा मेहरा इस बारे में कहती हैं कि पीडीएस के तहत वितरीत होने वाले राशन को लेकर प्रशासन को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी होगी। इस दौरान क़ानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है और सिस्टम बिगड़ सकता है।
लॉकडाउन के लगातार लंबे हो जाने के बीच प्रवासी मज़दूरों का पलायन भी जारी है। लॉकडाउन-4 के संकेत मिलने के साथ ही एक बार फिर से बड़े पैमाने पर देश भर से प्रवासी मज़दूर संसाधन के अभाव में अपने-अपने घरों को पैदल ही लौटना शुरू कर दिए हैं।
इस पर अर्थशास्त्री प्रवीण झा कहते हैं कि यह प्रवासी मज़दूरों का एक तरह का विरोध है। वो कोई अपनी इच्छा से नहीं जा रहे हैं चूंकि सरकार ने उन पर ध्यान देना छोड़ दिया है इसलिए वो हताशा में अपना रास्ता चुन रहे हैं।
वो बताते हैं कि अपने घरों को लौटने के दौरान क़रीब चार सौ लोग भूख या फिर दुर्घटना से अब तक मारे गए हैं। प्रशासनिक तैयारियों को लेकर वो कहते हैं कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच उचित तालमेल का अभाव है।
वो कहते हैं, "केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच उचित संवाद का अभाव रहा है। बहुत देर से थोड़ी-बहुत बातचीत शुरू हुई है। अब देखिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में समन्वय का इतना अभाव है कि एक दिन के कोरोना संक्रमण के केंद्र और राज्यों के आकड़ों में काफ़ी फ़र्क़ दिखता है। इतने न्यूनतम स्तर का समन्वय भी नहीं है।"
वो इसे प्रशासनिक कमज़ोरी के साथ-साथ मज़बूत इच्छा शक्ति का भी अभाव बताते हैं। इन तमाम परिस्थितियों के बीच सरकार लॉकडाउन-4 की घोषणा तो करने जा रही है लेकिन चुनौतियां बढ़ती ही दिख रही है घटती हुई नहीं।