- राम पुनियानी (इतिहासकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता)
महाराष्ट्र की यादों में शिवाजी सबसे लोकप्रिय राजा हैं। मुंबई एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन ही उनके नाम पर नहीं हैं, अरब सागर में उनकी भव्य प्रतिमा का निर्माण करने की भी योजना है। उन्हें राजनीतिक विचारधाराएं अपने अपने तरीके से याद करती हैं।
कुछ उन्हें गौ ब्राह्मण परिपालक (ब्राह्मण और गाय के रक्षक) बताते हैं तो अन्य लोक कल्याणकारी राजा कहते हैं। इसी के साथ एक ऐसा अहसास भी है जो उन्हें मुस्लिम विरोधी के रूप में दर्शाता है। कुछ सालों पहले महाराष्ट्र के मिराज-सांगली इलाके में एक गणपति उत्सव के दौरान तोरण पर शिवाजी को अफ़ज़ल ख़ान का क़त्ल करते हुए दिखाया गया था। इसके पोस्टर समूचे महाराष्ट्र में भेजे गए थे।
क्या थी शिवाजी की नीतियां?
इसके बाद इसी मुद्दे को लेकर उस इलाके में सांप्रदायिक हिंसा हुई, लोगों में यह धारणा बनने लगी कि हिंदू शिवाजी मुस्लिम अफ़ज़ल ख़ान को मार रहे हैं। इस तरह के प्रचार का इस्तेमाल मुसलमानों को उकसाने और हिंसा भड़काने के लिए किया जाता है।
धुर हिंदू दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने प्रतापगढ़ में अफ़ज़ल ख़ान का मकबरा तोड़ने की कोशिश की। यह उपद्रव तब जाकर रुका जब लोगों को यह बताया गया कि इस मकबरे को खुद शिवाजी ने खड़ा किया था। शिवाजी वो राजा थे जो सभी धर्मों का सम्मान करते थे। उनकी नीतियों, सेना और प्रशासनिक नियुक्तियों में इसकी साफ़ झलक देखने को मिलती है।
एक दिलचस्प कहानी है, शिवाजी के दादा मालोजीराव भोसले ने सूफी संत शाह शरीफ के सम्मान में अपने बेटों को नाम शाहजी और शरीफजी रखा था। शिवाजी ने स्थानीय हिंदू राजाओं के साथ ही औरंगजेब के ख़िलाफ़ भी लड़ाइयां लड़ीं। दिलचस्प बात ये है कि औरंगजेब के साथ युद्ध में, औरंगजेब की सेना का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति राजा जयसिंह थे, जो एक राजपूत थे, और औरंगजेब के राजदरबार में उच्च अधिकारी थे।
शिवाजी ने अपने प्रशासन में मानवीय नीतियां अपनाई थीं, जो किसी धर्म पर आधारित नहीं थी। उनकी थलसेना और जलसेना में सैनिकों की नियुक्ति के लिए धर्म कोई मानदंड नहीं था और इनमें एक तिहाई मुस्लिम सैनिक थे।
शिवाजी और मुसलमान
उनकी नौसेना की कमान सिद्दी संबल के हाथों में थी और सिद्दी मुसलमान उनके नौसेना में बड़ी संख्या में थे। जब शिवाजी आगरा के किले में नजरबंद थे तब कैद से निकल भागने में जिन दो व्यक्तियों ने उनकी मदद की थी उनमें से एक मुसलमान थे, उनका नाम मदारी मेहतर था। उनके गुप्तचर मामलों के सचिव मौलाना हैदर अली थे और उनके तोपखाने की कमान इब्राहिम गर्दी के हाथों में थी।
शिवाजी सभी धर्मों का सम्मान करते थे और उन्होंने 'हज़रत बाबा याकूत थोरवाले' को ताउम्र पेंशन देने का आदेश दिया था तो फ़ादर एंब्रोज की भी उस वक्त मदद की जब गुजरात स्थित उनके चर्च पर आक्रमण हुआ था। शिवाजी ने अपनी राजधानी रायगढ़ में अपने महल के ठीक सामने मुस्लिम श्रद्धालुओं के लिए एक मस्जिद का ठीक उसी तरह निर्माण करवाया था जिस तरह से उन्होंने अपनी पूजा के लिए जगदीश्वर मंदिर बनवाया था।
बसाई के नवाब की बहू की कहानी
शिवाजी ने अपने सैनिक कमांडरों को ये स्पष्ट निर्देश दे रखा था कि किसी भी सैन्य अभियान के दौरान मुसलमान महिलाओं और बच्चों के साथ कोई दुर्व्यवहार न किया जाए। मस्जिदों और दरगाहों को समुचित सुरक्षा दी गई थी। उनका ये भी आदेश था कि जब कभी किसी को कुरान की कॉपी मिले तो उसे पूरा सम्मान दिया जाए और मुसलमानों को सौंप दिया जाए।
बसाई के नवाब की बहू को शिवाजी के द्वारा सम्मान देने की कहानी तो सभी जानते हैं। जब उनके सैनिक लूट के सामान के साथ नवाब की बहू को भी लेकर आए थे तो शिवाजी ने उस महिला से पहले तो माफ़ी मांगी और फिर अपने सैनिकों की सुरक्षा में उसे उनके महल तक वापस पहुंचवाया था।
अफ़ज़ल ख़ान की हत्या के मामले को बहुत उछाला गया। अफ़ज़ल ख़ान आदिलशाही सल्तनत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जिनके साथ शिवाजी ने बहुत लंबी लड़ाई लड़ी थी। अफ़ज़ल ख़ान ने उन्हें अपने तंबू में बुलाकर मारने की योजना बनाई थी तो शिवाजी को एक मुसलमान, रुस्तमे जमां, ने आगाह कर दिया था, जिन्होंने शिवाजी को एक लोहे का पंजा अपने साथ रखने की सलाह दी थी।
अफ़ज़ल ख़ान और शिवाजी
लोग यह भूल जाते हैं कि अफ़ज़ल ख़ान के सलाहकार भी एक हिंदू, कृष्णमूर्ति भास्कर कुलकर्णी, थे जिन्होंने शिवाजी के ख़िलाफ़ अपनी तलवार उठाई थी। ब्रिटिशों ने जब इतिहास को लिखा तो उन्होंने राजाओं के बीच सत्ता संघर्ष को धार्मिक घुमाव दे दिया।
'शिवाजी मुस्लिम विरोधी थे' यह धारणा राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बनाई गई, कई किताबें प्रकाशित की गई जिनमें इसी नज़रिये से इस मसले को लिखा गया। पुरंदरे के नाटक 'जाणता राजा' को बड़े पैमाने पर महाराष्ट्र में लोकप्रिय बना दिया गया। यह शिवाजी को मुस्लिम विरोधी के रूप में प्रस्तुत करता है।
इतिहासकार सरदेसाई ने न्यू हिस्ट्री ऑफ़ मराठा में लिखते हैं, 'शिवाजी को किसी भी प्रकार से मुसलमानों के प्रति नफ़रत नहीं थी, ना तो एक संप्रदाय के रूप में और ना ही एक धर्म के रूप में।'
ये सब शिवाजी ने सांप्रयादिक सौहार्द के लिए जो अपनाया उसे दर्शाता है, और उनका प्राथमिक लक्ष्य अपने राज्य की सीमा को अधिक से अधिक क्षेत्र तक स्थापित करना था। उन्हें मुस्लिम विरोधी या इस्लाम विरोधी दर्शाया जाना सच्चाई का उपहास करना है।