- एसडी गुप्ता (बीजिंग से)
उत्तर कोरिया ने मिसाइल लॉन्च किया और वो जापान के इलाके में पहली बार गिरा है। इससे एक बहुत बड़ा बदलाव आया है। कल तक ये माना जाता था कि चीन का उत्तर कोरिया पर कंट्रोल है। अब ये देखा जा रहा है कि उत्तर कोरिया पर किसी का कंट्रोल नहीं है।
बार-बार ये सवाल उठ रहा है कि चीन का क्या उन देशों पर कोई नियंत्रण रह गया है जिनके बारे में कल तक वो खुद मानता था कि ये देश उसके नियंत्रण में हैं। एक ज़माने में बर्मा चीन के हाथ में था लेकिन वो अब उसकी परवाह नहीं करता है। अब उत्तर कोरिया उसकी बात नहीं सुनता। कल हो सकता है कि पाकिस्तान उसकी बात न सुने। तो चीन के दबदबे पर अब ये बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न लग गया है। उस पर एक तरह से बहुत दबाव भी है।
तानाशाह सरकार के साथ
उधर, राष्ट्रपति ट्रंप अमेरिका में कह रहे हैं कि चीन कुछ कर नहीं पा रहा है। इसकी भी संभावना है कि उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ जापान कोई कड़ा क़दम उठाए। चीन की चिंता है कि अगर उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ कोई सैनिक कार्रवाई की जाती है तो उसका क्या रुख़ होगा।
उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ तो वो जा नहीं सकता क्योंकि वो पुराना दोस्त है। लोग तो कहते हैं कि उत्तर कोरिया को हथियारों और मिलिट्री सहायता चीन से ही मिलती आई है।
लेकिन साथ में रहेंगे तो लोग ये भी कहेंगे कि चीन एक तानाशाह सरकार के साथ है। सवाल ये है कि जब उत्तर कोरिया को लेकर चीन पहले से ही परेशान है तो क्या वो ऐसे वक्त में भारत से रिश्ते बिगाड़ना चाहेगा। चीन की नज़र फिलहाल पूरी तरह से उत्तर कोरिया पर है। जी-20 की मीटिंग में उत्तर कोरिया का मुद्दा उठने वाला है।
अमेरिका से संबंध
उत्तर कोरिया ने चीन के लिए हालात इस कदर बदल दिए हैं कि उसे सोचना पड़ेगा कि कितनी दिशाओं में और कितने मोर्चों पर उसे लड़ना पड़ेगा। जापान से लड़ना होगा, दक्षिण कोरिया से उलझना होगा, उत्तर कोरिया से रिश्ते संभालना होगा, अमेरिका से संबंध खराब चल रहे हैं।
साउथ चाइना सी में परेशानी है, इंडोनेशिया और वियतनाम उससे नाराज़ हैं और दूसरी तरफ भारत है। दसों दिशाओं में चीन को पड़ोसी देशों से रिश्ते संभालना पड़ रहा है।
इससे उसकी छवि पर भी बहुत बड़ा सवाल आता है कि वो पड़ोसियों के साथ बेहतर संबंध क्यों नहीं बना पाता है। भूटान जैसे छोटे से देश के साथ भी चीन का अनबन भरा रिश्ता है। उसकी ज़मीन पर चीन की नज़र है। चीन के सामने उसकी छवि का बहुत बड़ा सवाल आ गया है। चीन को अब इस बारे में सोचना पड़ेगा।