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ब्रिटेन और अमेरिका के ईसाइयों ने ही बैन कर दिया था क्रिसमस

हमें फॉलो करें ब्रिटेन और अमेरिका के ईसाइयों ने ही बैन कर दिया था क्रिसमस
, शनिवार, 22 दिसंबर 2018 (12:15 IST)
एक दौर था जब अंग्रेज़ों को लगा कि ग़ैर-ईसाई गतिविधियों के ख़िलाफ़ क़दम उठाने चाहिए। हर दिसंबर में नैतिक रूप से अनुचित क़िस्म का माहौल जनता को अपने आगोश में ले लेता था। ऐसे में कुछ तो ज़रूर किया जाना चाहिए था।
 
 
लोग ज्यादा ही जोश से भरे होते और ईसाई जीवन शैली के हिसाब से अपमानजनक व्यवहार करते। मयखाने नशे से चूर लोगों से भर जाते, दुक़ानें और कारोबार समय से पहले बंद हो जाते, दोस्त और परिवार साथ आकर विशेष खानपान का लुत्फ़ उठाते, घरों को पत्तों और फूलों से सजाया जाता और गलियों में नाचना-गाना चलता रहता। ये उस समय 'अधर्मी' काम था। ये क्रिसमस का जश्न था।
 
 
कौन हैं 'सच्चे' ईसाई?
1644 में अति धर्मनिष्ठ अंग्रेज़ों ने क्रिसमस मनाने की परंपरा ख़त्म करने का फ़ैसला किया। ये प्रोटेस्टेंट ईसाई थे जो कड़े धार्मिक नियमों के पालन में यक़ीन रखते थे। प्यूरिटन या अति धर्मनिष्ठ सरकार क्रिसमस को ग़ैर-ईसाई त्योहार समझती थी क्योंकि बाइबल में इस बात का ज़िक्र नहीं था कि ईसा का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था। तारीख़ को लेकर उनकी इस बात में दम भी था, मगर इसपर हम बाद में बात करेंगे।
 
 
हमें हमारा क्रिसमस वापस दो!
इंग्लैंड में 1660 तक क्रिसमस से जुड़ी गतिविधियां बंद रहीं। 25 दिसंबर को दुकानों और बाज़ारों को जबरन खुला रखा जाता जबकि कई चर्च अपने दरवाज़े बंद रखते। क्रिसमस सर्विस का आयोजन करना अवैध था। मगर इस प्रतिबंध को आसानी से स्वीकार नहीं किया गया।
 
 
पीने, ख़ुशी मनाने और संगीत में डूबकर नाचने-गाने की आज़ादी के लिए विरोध प्रदर्शन हुए। जब चार्ल्स द्वितीय महाराजा बने, तब जाकर क्रिसमस विरोधी क़ानून वापस लिया गया। क्रिसमस पर जश्न मनाने की अमेरिकी अति धर्मनिष्ठों की भी तिरछी निगाह रही थी।
 
 
और हां, अमेरिका में भी क्रिसमस पर प्रतिबंध लगा था। मैसाच्यूसट्स में 1659 से लेकर 1681 तक क्रिसमस नहीं मनाया गया। इसके कारण भी वही थे, जो इंग्लैंड में थे। जब क्रिसमस मनाने को प्रतिबंधित करने वाला क़ानून हटा, तब भी बहुत सारे अति धर्मनिष्ठों ने दिसंबर के त्योहारी मौसम को ग़ैर-ईसाइयों का घृणित कार्य मानना जारी रखा।
 
 
असली जन्मदिन कब?
यीशु का जन्म कब हुआ, इसे लेकर एकराय नहीं है। कुछ धर्मशास्त्री मानते हैं कि उनका जन्म वसंत में हुआ था क्योंकि इस बात का ज़िक्र है कि जब ईसा का जन्म हुआ था, उस समय गड़रिये मैदानों में अपने झुंडों की देखरेख कर रहे थे। अगर उस समय दिसंबर की सर्दियां होतीं तो वे कहीं शरण लेकर बैठे होते।
 
 
और अगर गड़रिये मैथुन काल के दौरान भेड़ों की देखभाल कर रहे होते तो वे उन भेड़ों को झुंड से अलग करने में मशगूल होते, जो समागम कर चुकी होतीं। ऐसा होता तो ये पतझड़ का समय होता। मगर बाइबल में ईसा के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है।
 
 
पैगन परंपरा
मगर हम जानते हैं कि रोमन काल से ही दिसंबर के आख़िर में पैगन (मूर्तिपूजक) परंपरा के तौर पर जमकर पार्टी करने का चलन रहा है। असल में यह फसल कटाई का त्योहार था। इसमें तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता, घरों को मालाओं और हारों से सजाया जाता, ख़ूब खाना होता और शराब पीकर पार्टी की जाती।
 
 
इतिहासकार साइमन सेबग मोन्टेफ़िओर के मुताबिक़, शुरू में ईसाई बने लोग सामाजिक स्तर पर उसी तरह की मस्ती करने की होड़ में रहते, जैसी मौज-मस्ती ग़ैर-ईसाई पैगन करते थे। रोमनों ने धीरे-धीरे मूर्ति पूजा छोड़ दी और ईसाई धर्म अपना लिया। मगर बदलाव के इस दौर में पैगन कैलंडर धीरे-धीरे ईसाई कैलंडर में समाहित हो गया।
 
 
एक दौर तक रोमन दोनों परंपराओं के हिसाब से पार्टी करते रहे। चौथी सदी के अंत तक पैगन और ईसाई परंपराएं दिसंबर के चौदह दिनों तक साथ-साथ चलती रहीं। मगर ऐसा नहीं कि इसे लेकर कोई संघर्ष नहीं हुआ।
 
 
जीत और हार
आख़िर में ईसाई परंपराओं की जीत हुई। 17वीं सदी में क्रिसमस के ख़िलाफ़ छेड़ा गया अभियान अतिधर्मनिष्ठों की नज़र में एक तरह से पैगन परंपरा की निशानी था। मगर आज देखिए, क्रिसमस कितनी धूमधाम से मनाया जाता है। ज़ाहिर है, प्यूरिटन यानी अतिधर्मनिष्ठ हार चुके हैं।
 
 
आज पूरी दुनिया के ईसाई भले ही क्रिसमस पर सजे हुए पेड़ के बगल में बैठकर वाइन के साथ टर्की का लुत्फ़ उठाते हुए क्रिमस मनाते हैं, मगर यह पर्व शायद 2000 साल से भी पुराना है।
 
 

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