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"मुसलमान आशंकित हैं कि सरकार टीका लगवाने के पीछे क्यों पड़ी है"

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, शनिवार, 22 दिसंबर 2018 (11:45 IST)
उत्तर प्रदेश में मीजल्स रूबेला के टीकाकरण अभियान को कई इलाकों में मुस्लिम समुदायों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
 
 
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 9 महीने से 15 साल तक के आठ करोड़ बच्चों को गंभीर बीमारी मीजल्स रूबेला का टीका लगाने के अभियान की शुरुआत की। लेकिन इस टीकाकरण अभियान को कई मुस्लिम इलाकों में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। कुछ वैसा ही विरोध देखने को मिला है जैसा देश में पल्स पोलियो अभियान के खिलाफ हुआ था। तब बहुत से इलाकों में मुस्लिम परिवारों ने अपने बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाने से मना कर दिया था।
 
कैसी है मुसलमानों में टीकाकरण की स्थिति
इस टीकाकरण अभियान के तहत सभी स्कूली बच्चों के नि:शुल्क टीकाकरण की व्यवस्था की गयी है। उदाहरण के तौर पर अगर मेरठ शहर के कुछ मुस्लिम इलाकों की बात करें तो खबरों के मुताबिक वहां मदरसों में इस टीकाकरण का विरोध हो रहा है। मेरठ के 272 में से कम से कम 70 मदरसों ने स्वास्थ्यकर्मियों को प्रवेश नहीं दिया। बहुत जगह बच्चों की उस दिन छुट्टी कर दी गई।
 
ऐसे में मेरठ में टीकाकरण अभियान को धक्का लगना तय है। मेरठ के जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ विश्वास चौधरी बताते हैं, "हमारे यहां वैसे तो 623 मदरसे हैं लेकिन 272 रजिस्टर्ड हैं। जिसमें से आज भी हम 50 मदरसों में कवरेज नहीं कर पाएं हैं। कोशिश जारी है और हम अब प्रत्येक व्यक्ति से मिल रहे हैं जिससे जो भी भ्रांतियां हैं उनको दूर कर दिया जाए।''
 
व्हाट्सऐप संदेशों ने फैलाया झूठ
डॉ विश्वास चौधरी के अनुसार आजकल फैल रहे व्हाट्सऐप संदेशों ने काफी नुकसान किया है। वे बताते हैं, "इन संदेशों में कोई पुरानी क्लिप होती है जैसे केरल की और उससे भ्रम फैलाया जाता है। यही दिखाते हैं कि इस टीके से बच्चे की मृत्य हो गई या फिर आगे चल कर नपुंसकता आ जाएगी। इन संदेशों का नकारात्मक असर पड़ा है।''
 
इसी प्रकार की खबरें सहारनपुर, बिजनौर, अलीगढ़ से भी आई हैं। सभी जगह वही बाते हैं कि मुस्लिम मदरसों में टीकाकरण को सहयोग नहीं किया जा रहा है। सहारनपुर में मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ बीएस सोढ़ी बताते हैं, "हमारे शहर में 60 मदरसे हैं जिसमें से हम अभी तक 47 में कवरेज कर पाए हैं। उसमें भी बच्चों की संख्या काफी कम है। ज्यादातर जगह यही कह दे रहे हैं कि अभिभावकों ने इंजेक्शन लगवाने से मना किया है। हमने स्पेशल टीम लगायी है इन लोगों को समझाने के लिए।''
 
सहारनपुर के सीएमओ डॉ सोढ़ी मानते हैं कि पहले भी पोलियो उन्मूलन अभियान में विरोध का सामना मुस्लिम समुदाय की तरफ से हुआ था। वे बताते हैं, "ये लोग अशिक्षित हैं, राष्ट्रीय कार्यक्रम का विरोध कर रहे हैं। बहुत बड़ा योगदान व्हाट्सऐप पर आए संदेशों का भी है। ऐसे सन्देश आए कि फलां जगह बच्चे बीमार हो गए। इस बात को मीडिया ने और हवा दे दी और हमको टीकाकरण में विरोध देखना पड़ा।''
 
वैसे व्हाट्सऐप पर आए संदेशों में एक बात कॉमन थी। जिस जिले में ऐसे संदेश फैले वहां से काफी दूर के जिले के बारे में ऐसा लिखा गया कि वहां 20 बच्चे टीकाकरण के बाद बीमार हो गए। संदेश पाने वालों के लिए इन दावों की पुष्टि करना संभव नहीं था। डॉ सोढ़ी के अनुसार आमतौर पर बच्चों में ऐसा होता है कि अगर एक कहे कि दर्द हो रहा है तो सब कहने लगेंगे कि उन्हें भी दर्द हो रहा है। लेकिन इन संदेशों ने भय तो बना ही दिया है।
 
अलीगढ़ में भी 121 मदरसे पंजीकृत हैं और शुरूआती दौर में लगभग सभी जगह से ना सुनने को मिली। किसी तरह वहां टीकाकरण अभियान को गति दी गयी है। मुजफ्फरनगर के रहने वाले आस मोहम्मद कैफ बताते हैं कि शुरुआत में भले थोड़ा बहुत भ्रम रहा हो लेकिन अब धीरे धीरे स्थिति सामान्य हुई है। कैफ बताते हैं, "मैं अपने बेटे को भी टीका लगवा चुका हूं।"
 
कैसे टूटेगी मुसलमानों में भ्रांतियां
एक बार फिर शासन और स्थानीय प्रशासन मुस्लिम धर्मगुरुओं को आगे ला रहा है। कुछ ऐसा ही तब हुआ था जब पोलियो ड्रॉप्स के विरोध के बाद लखनऊ में ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली सामने आए थे। उन्होंने अपने हाथ से अपने छोटे बेटे को दो बूंद पोलियो की ड्रॉप्स पिलाई थीं। उस फोटो को प्रदेश के हर मुस्लिम इलाके में पोस्टर बना कर उर्दू भाषा में लगाया गया था जिसका व्यापक असर हुआ था। हर इलाके के मुस्लिम डॉक्टर और बुद्धिजीवियों को आगे किया गया था।
 
मेरठ में डॉ विश्वास चौधरी ने बताया कि शहर काजी मौलाना जैनुस साजिदीन भी टीकाकरण के समर्थन में आ गए हैं। उन्होंने मुसलमानों से अपील की है कि ये टीकाकरण सुरक्षित है और इससे कोई नुकसान नहीं होता बल्कि मीजल्स रूबेला जैसे बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती हैं।
 
मौलाना जैनुस सजीदीन ने बताया, "मैंने लिख कर दिया है कि इस टीके से कोई नुकसान नहीं है। जो अफवाह फैलाई जा रही है उससे बचना चाहिए। ये गलत हैं। मदरसों में जो बच्चे रह गए हैं उनका टीकाकरण करना चाहिए।'' मौलाना साजीदीन का मेरठ में व्यापक प्रभाव है और मुसलमान इनकी बात मानते हैं।
 
इसके अलावा जामिया मिलिया इस्लामिया के विशेषज्ञ और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी विश्वविद्यालय में जवाहरलाल नेहरु मेडिकल कॉलेज के एक्सपर्ट्स से भी सहयोग लिया जा रहा है। इन जगहों पर एक्सपर्ट्स मुस्लिम हैं और उनकी अपने समुदाय में स्वीकार्यता है, इसीलिए इनको आगे लाया गया है।
 
अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के डॉ अली जाफर आब्दी बताते हैं, "शुरुआत में दिक्कतें आती हैं। जहां पर भी मुस्लिम समुदाय है उसके अन्दर वैक्सीन अवॉयड करने का बिहेवियर आ जाता है। वो सोचते हैं कि और चीजों में हमको लाइन लगानी पड़ती है तो इस वैक्सीन के लिए ये हमारे पीछे क्यूं पड़े हैं?
 
उनमें वैक्सीन के लिए अविश्वास रहता हैं। ये बात सिर्फ अशिक्षितों में ही नहीं बल्कि पढ़े लिखे मुसलमानों में भी देखी गयी है कि आखिर क्यूं सरकार ये कर रही है। फिर अफवाह से अफवाह निकलती जाती है। पोलियो कार्यक्रम में भी हमने यही देखा था। फिर हम लोग जा जा कर इन लोगों से इनकी जगह पर मिले और समझाया था। थोड़ी दिक्कतों के बाद सबकी सहभागिता होगी।''
 
अब मेरठ में तो ये भी किया जा रहा है कि जुमे की नमाज में मस्जिदों में एलान करवाया जाए कि टीकाकरण बिलकुल सुरक्षित है और इसको सब बच्चों को लगवाना चाहिए।
 
रिपोर्ट फैसल फरीद

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