सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता, भोपाल से
मध्य प्रदेश में सोमवार को आख़िरकार मंत्रिमंडल का गठन हो गया जिसके बाद कुल मंत्रियों की संख्या 31 हो गई है। मुख्यमंत्री मोहन यादव का कहना है कि मंत्रिमंडल में बाक़ी चार रिक्त स्थान भी जल्द भर लिए जायेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि नए मंत्रिमंडल के गठन में भी भारतीय जनता पार्टी ने 'राजनीतिक संदेश' साफ़ तौर पर दिया है। वो संदेश ये है कि आने वाले लोकसभा के चुनावों में उसका 'फोकस' अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटों पर होगा।
नए मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री मोहन यादव सहित कुल 13 मंत्री इस वर्ग से आते हैं। मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी अच्छी ख़ासी है और उनके वोट राजनीतिक दलों का भविष्य तय करने की क्षमता रखते हैं।
जातीय संतुलन बनाने की कोशिश
प्रदेश में इस वर्ग की आबादी कुल जनसंख्या का 50 प्रतिशत है। पार्टी ने दलित नेता और मंदसौर के विधायक जगदीश देवड़ा के साथ साथ अगड़ी जाति के राजेंद्र शुक्ला को उपमुख्यमंत्री बनाकर जातीय संतुलन साधने की भी कोशिश की है।
अन्य पिछड़ा वर्ग के बाद अगर दूसरे किसी समाज की सबसे ज़्यादा आबादी है तो वो हैं अनुसूचित जनजाति के लोग जो कुल जनसंख्या का 20 प्रतिशत हैं।
इसलिए इस समाज के वोटों को देखते हुए मंत्रिमंडल में पांच विधायकों को शामिल किया गया है जबकि अनुसूचित जनजाति से 5 विधायक।
वहीं, उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला को मिलाकर मंत्रिमंडल में कुल 8 मंत्री सवर्ण समाज से आते हैं। इसके साथ ही इस बार पांच महिलाओं को भी शामिल किया गया है।
मंत्रिमंडल का गठन चुनावी नतीजों के 22 दिनों के बाद हुआ जबकि भारतीय जनता पार्टी को इस विधानसभा के चुनावों में प्रचंड बहुमत मिला है।
विपक्षी रणनीति की काट?
विधानसभा की कुल 230 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी की झोली में 163 सीटें आयी हैं जबकि कांग्रेस को 66 पर ही जीत मिल सकी है।
पहले तो मुख्यमंत्री कौन होगा? इसको लेकर भोपाल से लेकर दिल्ली तक ख़ूब 'लॉबीयिंग' हुई। कई बड़े चेहरे इस दौड़ में शामिल थे। लेकिन 11 दिसंबर को उज्जैन के विधायक मोहन यादव के नाम की घोषणा बतौर मुख्यमंत्री की गयी।
इनके साथ ही दो उपमुख्यमंत्रियों के नामों की भी घोषणा हुई - मंदसौर के विधायक जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ला।
फिर मंत्रिमंडल को लेकर काफ़ी सुगबुगाहट बढ़ गयी क्योंकि इस बार विधानसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने नया प्रयोग करते हुए अपने सात सांसदों को चुनावी मैदान में उतारा जिनमें तीन केन्द्रीय मंत्री शामिल थे।
इनमें से दो, यानी प्रह्लाद पटेल और नरेंद्र सिंह तोमर तो चुनाव जीत गए मगर तीसरे केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते निवास सीट से चुनाव हार गए थे।
वरिष्ठ पत्रकार और भोपाल से प्रकाशित 'दैनिक सांध्य प्रकाश' के संपादक संजय सक्सेना के अनुसार, कांग्रेस के जातिगत जनगणना कराने की घोषणा को 'काउंटर' करने की दृष्टि से भी भारतीय जनता पार्टी ने अपने फोकस को पूरी तरह से अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी वर्ग को रिझाने पर केंद्रित कर दिया है।
वो कहते हैं, "नए मंत्रिमंडल में जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण साधने की कोशिश साफ़ दिखती है। कांग्रेस ओबीसी की बात करती है, लेकिन बीजेपी ने मंत्रिमंडल में ओबीसी को सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व देकर कांग्रेस को चुनौती दी है।"
वो कहते हैं कि मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने अपना रुख़ पहले ही स्पष्ट कर दिया था जबकि शिवराज सिंह चौहान भी इसी वर्ग से आते हैं।
उनका कहना था, "मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर ओबीसी के साथ साथ दूसरे राज्यों में यादव समाज को रिझाने की कोशिश भी भारतीय जनता पार्टी ने की है।"
ग्वालियर से मालवा की ओर
इसके अलावा मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखने के लिए भी पार्टी ने पूरा प्रयास किया है।
इस कड़ी में अकेले हिंदुत्व की सबसे पुरानी प्रयोगशाला यानी मालवा के इलाके से कुल 9 मंत्री बनाए गए हैं जिसमे ख़ुद मुख्यमंत्री मोहन यादव और जगदीश देवड़ा शामिल हैं।
इसके अलावा पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी इंदौर – 1 से विधायक चुने गए हैं और मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं।
मालवा भारतीय जनता पार्टी का भी सबसे पुराना और मज़बूत गढ़ माना जाता रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बग़ावत और फिर उनका अपने समर्थकों के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाना – इस घटनाक्रम के बाद मध्य प्रदेश की राजनीति का 'फोकस' ग्वालियर-चंबल की तरफ़ शिफ्ट हो गया था। इस बार ग्वालियर-चंबल संभाग से पिछली बार 9 की तुलना में सिर्फ़ 4 मंत्री बनाए गए हैं।
जानकार मानते हैं कि अब नए मंत्रिमंडल के गठन के बाद भारतीय जनता पार्टी ने इस बात के भी संकेत दिए हैं कि मालवा और निमाड़ का उसका पुराना गढ़ उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
शीर्ष और नए नेताओं वाला मंत्रिमंडल
पार्टी ने महाकौशल के इलाके को भी अपनी राजनीति के केंद्र में ही रखना चाहा है और इसलिए इस इलाके से भी मंत्रियों की संख्या 4 है जो शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में इस इलाके के प्रतिनिधित्व से ज़्यादा है। उसी तरह सेंट्रल मध्य प्रदेश से भी 6 विधायकों को भी नए मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है।
मोहन यादव के मंत्रिमंडल में नए और पुराने – दोनों चेहरों को शामिल किया गया है जिसमें पहली बार के विधायक भी हैं।
विश्लेषक मानते हैं कि ये सब कुछ पार्टी और मोहन यादव के लिए उतना आसान समीकरण भी नहीं है क्योंकि राजनीति में उनसे काफ़ी वरिष्ठ नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। जैसे कैलाश विजयवर्गीय और प्रह्लाद पटेल इत्यादि। एक वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया है।
वरिष्ठ पत्रकार अनूप दत्ता कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के कार्यकाल का संस्मरण साझा करते हुए कहते हैं कि उस समय भी उनके मंत्रिमंडल में उनसे भी कई वरिष्ठ नेता शामिल थे जिस वजह से अंदरूनी संघर्ष ख़ूब चलता रहता था।
बीबीसी से बातचीत में अनूप दत्ता कहते हैं, "उस समय होता ये रहा कि मंत्रियों और उनके विभागीय प्रमुख सचिवों के बीच अनबन आम बात थी। पत्रकारों को हर रोज़ ख़बर लिखने के लिए काफ़ी मसाला मिलता था। विभागीय प्रमुख सचिव मंत्रियों की बात मानते नहीं थे और सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय जो जवाब देते थे। इसलिए हमेशा टकराव की स्थिति पैदा हो जाती थी।"
उनका कहना है कि अब तो मंत्रियों को विभाग का बंटवारा हो जाने के बाद ही पता चल पाएगा कि मोहन यादव का मंत्रिमंडल कैसा चलने वाला है।
अनूप दत्ता की बात पर सहमति जताते हुए वरिष्ठ पत्रकार संजय सक्सेना कहते हैं कि मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही होने वाली है कि वो किस बड़े नेता को कौन सा विभाग देंगे? ये भी कि बड़े नेता किस तरह मुख्यमंत्री के साथ मंत्रालय के अंदर सामंजस्य बैठा पाएंगे?
अनूप दत्ता कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की कार्यशैली और कांग्रेस की कार्यशैली में यही बड़ा अंतर है।
उनके अनुसार कितने भी बड़े नेता हों, पार्टी के आदेश के आगे वो कुछ नहीं कर सकते। इसकी मिसाल देते हुए वो केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार का हवाला देते हैं कि जब उन्होंने पहली बार पद संभाला था।
वो कहते हैं कि संगठन में उनसे भी वरिष्ठ नेताओं ने मंत्रिमंडल में अपना काम किया था और किसी तरह का कोई विवाद नहीं हुआ था।
उनका कहना था, "मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार जैसी चली थी और जिस तरह से भाजपा की सरकार चली – दोनों में काफ़ी फ़र्क है। हालांकि बाद के दिनों में ये आरोप लगने लगे कि सारे विभागों का संचालन शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री आवास से होता था। इसको लेकर मंत्री नाराज़ तो थे लेकिन किसी ने अपनी नाराज़गी सार्वजनिक रूप से ज़ाहिर नहीं की। अगर कांग्रेस की सरकार होती तो माहौल कुछ और ही हो जाता।"