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चीन के क़र्ज़ तले दबे दुनिया के ये आठ देश

हमें फॉलो करें चीन के क़र्ज़ तले दबे दुनिया के ये आठ देश
, सोमवार, 25 जून 2018 (10:33 IST)
टीम बीबीसी हिंदी (नई दिल्ली)
 
चीन के सरकारी बैंक अपने देश में लोगों को क़र्ज़ देने से ज़्यादा क़र्ज़ दूसरे मुल्क को दे रहे हैं। चीनी बैंकों के इस क़दम को वहां की सरकार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है।
 
 
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत कई देशों में आधारभूत ढांचा के विकास के लिए समझौते किए हैं, लेकिन इन समझौतों को एकतरफ़ा बताया जा रहा है। चीन दुनिया भर के कई देशों में आधारभूत ढांचा के विकास पर काम कर रहा है और उसने भारी निवेश किया है।
 
 
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में पहली बार चीन के चार बड़े सरकारी बैंकों में से तीन ने देश में कॉर्पोरेट लोन देने से ज़्यादा बाहरी मुल्कों को क़र्ज़ दिए।
 
रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन अपनी कंपनियों को दुनिया के उन देशों में बिज़नेस करने के लिए आगे कर रहा है जहां से एकतरफ़ा मुनाफ़ा कमाया जा सके। रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए क़र्ज़ रणनीति को तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है।
 
 
चीन के क़र्ज़ का बढ़ता दायरा
दक्षिण एशिया के तीन देश- पाकिस्तान, श्रीलंका और मालदीव पर चीन के बेशुमार क़र्ज़ हैं। पिछले साल तो श्रीलंका को एक अरब डॉलर से ज़्यादा क़र्ज़ के कारण चीन को हम्बनटोटा पोर्ट ही सौंपना पड़ गया था। इसके साथ ही पाकिस्तान भी चीनी क़र्ज़ में उलझा हुआ है और एक बार फिर से आर्थिक संकट के बीच वो चीन की शरण में जा सकता है।
 
मालदीव में भी चीन कई परियोजनाओं का विकास कर रहा है। मालदीव में जिन प्रोजक्टों पर भारत काम कर रहा था उसे भी चीन को सौंप दिया गया है। मालदीव ने भारतीय कंपनी जीएमआर से 511 अरब डॉलर की लागत से विकसित होने वाले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की डील को रद्द कर दिया था।
 
 
एक रिपोर्ट के अनुसार चाइना कंस्ट्रक्शन बैंक की तरफ़ दिए जाने वाले विदेशी क़र्ज़ों में 31 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि इसकी तुलना में देश में यह वृद्धि दर 1.5 फ़ीसदी ही है।
 
 
2016 की तुलना में 2017 में बैंक ऑफ चाइना की ओर से बाहरी मुल्कों को क़र्ज़ देने की दर 10.6 फ़ीसदी बढ़ी थी। 2013 में चीन की कमान शी जिनपिंग के हाथों में आने के बाद से ही उनकी महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट वन रोड परियोजना में और तेज़ी आई है।
 
 
वन बेल्ट वन रोड
यह तीन ख़रब अमरीकी डॉलर से ज़्यादा की लागत वाली परियोजना है। इसके तहत आधारभूत ढांचा विकसित किया जाना है। इसके ज़रिए चीन सेंट्रल एशिया, दक्षिणी-पूर्वी एशिया और मध्य-पूर्व में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है। इस परियोजना के साथ कई देश हैं, लेकिन ज़्यादातर पैसे चीन समर्थित विकास बैंक और वहां के सरकारी बैंकों से आ रहे हैं।
 
 
चीन एशियाई देशों में ही नहीं बल्कि अफ़्रीकी देशों में भी आधारभूत ढांचा विकसित करने के काम में लगा है। उन्हीं देशों में एक देश है जिबुती। जिबुती में अमरीका का सैन्य ठिकाना है। चीन की एक कंपनी को जिबुती ने एक अहम पोर्ट दिया है जिससे अमरीका नाख़ुश है।
 
 
पिछले साल 6 मार्च को अमरीका के तत्कालीन विदेश मंत्री रेक्स टिलर्सन ने कहा था, ''चीन कई देशों को अपने ऊपर निर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। वो जिन अनुबंधों को हासिल कर रहा है वो पूरी तरह से अपारदर्शी हैं। नियम और शर्तों को लेकर स्पष्टता नहीं है। बेहिसाब क़र्ज़ दिए जा रहे हैं और इससे ग़लत कामों को बढ़ावा मिलेगा। उन देशों की आत्मनिर्भता तो ख़त्म होगी है साथ में संप्रभुता पर भी असर पड़ेगा। चीन में क्षमता है कि वो आधारभूत ढांचों का विकास करे, लेकिन वो इसके नाम पर क़र्ज़ के बोझ को बढ़ाने का काम कर रहा है।''
 
 
द सेंटर फोर ग्लोबल डिवेलपमेंट का कहना है कि वन बेल्ट वन रोड में भागीदार बनने वाले आठ देश चीनी क़र्ज़ के बोझ से दबे हुए हैं। ये देश हैं- जिबुती, किर्गिस्तान, लाओस, मालदीव, मंगोलिया, मोन्टेनेग्रो, पाकिस्तान और तजाकिस्तान।
 
 
शोधकर्ताओं का कहना है कि इन देशों ने यह अनुमान तक नहीं लगाया कि क़र्ज़ से उनकी प्रगति किस हद तक प्रभावित होगी। क़र्ज़ नहीं चुकाने की स्थिति में ही क़र्ज़ लेने वाले देशों को पूरा प्रोजेक्ट उस देश के हवाले करना पड़ता है।
 
 
चीनी क़र्ज़ का डर
कई विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल भी चीन की मदद चाहता है, लेकिन उसके मन में एक किस्म का डर रहता है कि कहीं वो भी श्रीलंका और पाकिस्तान की तरह चीनी क़र्ज़ के बोझ तले दब न जाए। चाइना-लाओस रेलवे परियोजना को वन बेल्ट न रोड के तहत शुरू किया गया है। इस परियोजना की पूरी लागत 6 अरब डॉलर है यानी यह लाओस की जीडीपी का आधा है।
 
 
कई लोगों का कहना है कि पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट भी इसी राह पर बढ़ रहा है। चीन पाकिस्तान में 55 अरब डॉलर अलग-अलग परियोजनाओं में ख़र्च कर रहा है। पाकिस्तान के बारे में कहा जा रहा है कि दबाव के बावजूद इस प्रोजेक्ट के अनुबंधों को सार्वजनिक नहीं किया गया है। विश्लेषकों का मानना है कि इस रक़म का बड़ा हिस्सा क़र्ज़ के तौर पर है।
 
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में ग्वादर और चीन के समझौते को लेकर कहा जा रहा है कि पाकिस्तान चीन का आर्थिक उपनिवेश बन रहा है।
 
ग्वादर में पैसे के निवेश की साझेदारी और उस पर नियंत्रण को लेकर 40 सालों का समझौता है। चीन का इसके राजस्व पर 91 फ़ीसदी अधिकार होगा और ग्वादर अथॉरिटी पोर्ट को महज 9 फ़ीसदी मिलेगा। ज़ाहिर है अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के पास 40 सालों तक ग्वादर पर नियंत्रण नहीं रहेगा।
 
 
चीनी क़र्ज़ के बोझ तले दबे ये 8 देश
 
पाकिस्तान
द सेंटर फोर ग्लोबल डिवेलपमेंट की रिपोर्ट के अनुसार चीनी क़र्ज़ का सबसे ज़्यादा ख़तरा पाकिस्तान पर है। चीन का पाकिस्तान में वर्तमान परियोजना 62 अरब डॉलर का है और चीन का इसमें 80 फ़ीसदी हिस्सा है।
 
चीन ने पाकिस्तान को उच्च ब्याज़ दर पर क़र्ज़ दिया है। इससे डर को और बल मिलता है कि पाकिस्तान पर आने वाले वक़्त में चीनी क़र्ज़ का बोझ और बढ़ेगा।
 
 
जिबुती
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि जिबुती जिस तरह से क़र्ज़ ले रहा है वो उसके लिए ही ख़तरनाक है। महज दो सालों में ही लोगों पर बाहरी क़र्ज़ उसकी जीडीपी का 50 फ़ीसदी से 80 फ़ीसदी हो गया।
 
इस मामले में दुनिया के कम आय वाले देशों में जिबुती पहला देश बन गया है। इसमें से ज़्यादातर क़र्ज़ चीन के एक्ज़िम बैंक के हैं।
 
 
मालदीव
मालदीव के सभी बड़े प्रोजेक्टों चीन व्यापक रूप से शामिल है। चीन मालदीव में 830 करोड़ डॉलर की लागत से एक एयरपोर्ट बना रहा है। एयरपोर्ट के पास ही एक पुल बना रहा है जिसकी लागत 400 करोड़ डॉलर है।
 
विश्व बैंक और आईएमएफ़ का कहना है कि मालदीव बुरी तरह से चीनी क़र्ज़ में फंसता दिख रहा है। मालदीव की घरेलू राजनीति में टकराव है और वर्तमान में मालदीव की सत्ता जिसके हाथ में है उसे चीन का विश्वास हासिल है।
 
 
लाओस
दक्षिण-पूर्वी एशिया में लाओस ग़रीब मुल्कों में से एक है। लाओस में चीन वन बेल्ट वन रोड के तहत रेलवे परियोजना पर काम कर रहा है। इसकी लागत 6.7 अरब डॉलर है जो कि लाओस की जीडीपी का आधा है।
 
आईएमएफ़ ने लाओस को भी चेतावनी दी है कि वो जिस रास्ते पर है उसमें अंतरराष्ट्रीय क़़र्ज़ हासिल करने की योग्यता खो देगा।
 
 
मंगोलिया
मंगोलिया के भविष्य की अर्थव्यवस्था कैसी होगी ये आधारभूत ढांचा के विकास में हुए बड़े निवेशों पर निर्भर करता है। चीन के एग्ज़िम बैंक 2017 की शुरुआत में एक अरब अमरीकी डॉलर का फंड देने के लिए तैयार हुआ था।
 
चीन ने इसकी शर्त हाइड्रोपावर और हाइवे प्रोजेक्ट में हिस्सेदारी रखी थी। कहा जा रहा है कि वन बेल्ट वन रोड के तहत चीन अगले पांच सालों में मंगोलिया में 30 अरब डॉलर का निवेश करेगा। अगर ऐसा होता है तो मंगोलिया के लिए इस क़र्ज़ से बाहर निकलना आसान नहीं होगा।
 
 
मोन्टेनेग्रो
विश्व बैंक का अनुमान है कि 2018 में यहां के लोगों पर क़र्ज़ उसकी जीडीपी का 83 फ़ीसदी पहुंच गया। मोन्टेनेग्रो की भी समस्या उसके बड़े प्रोजेक्ट हैं। ये प्रोजेक्ट हैं पोर्ट विकसित करना और ट्रांसपोर्ट नेटवर्क को बढ़ाना।
 
इन परियोजनाओं के लिए 2014 में चीन के एग्ज़िम बैंक से एक समझौता हुआ था, जिसमें पहले चरण की लागत एक अरब डॉलर में 85 फ़ीसदी रक़म चीन देगा।
 
 
तजाकिस्तान
तजाकिस्तान की गिनती एशिया के सबसे ग़रीब देशों में होती है। आईएमएफ़ चेतावनी दे चुका है कि वो क़र्ज़ के बोझ तले दबा हुआ है।
 
तजाकिस्तान पर सबसे ज़्यादा क़र्ज चीन का है। 2007 से 2016 के बीच तजाकिस्तान पर कुल विदेशी क़र्ज़ में चीन का हिस्सा 80 फ़ीसदी था।
 
 
किर्गिस्तान
किर्गिस्तान भी चीन के वन बेल्ट वन रोड परियोजना में शामिल है। किर्गिस्तान की विकास परियोजनाओं में चीन का एकतरफ़ा निवेश है। 2016 में चीन ने 1.5 अरब डॉलर निवेश किया था। किर्गिस्तान पर कुल विदेशी क़र्ज़ में चीन का 40 फ़ीसदी हिस्सा है।
 

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