जाह्नवी मूले, बीबीसी मराठी
"हम पांच जालों में एक भी मछली नहीं पकड़ पाए हैं।"- मायूसी भरे चेहरे के साथ मुंबई के एक मछुआरे दर्शन किनी ने बात करते हुए बताया। मई महीने की एक सुबह जब मार्वे के तट पर हमारी मुलाक़ात हुई, उसी वक्त दर्शन बंदरगाह से लौटे थे। उनसे बात करते हुए मैंने महसूस किया कि इस गर्मी में मुंबई के आसपास के समुद्री इलाक़े में मछलियां लगभग ग़ायब हो चुकी हैं।
जलवायु परिवर्तन ने यहां के महासागरों को प्रभावित किया है और दर्शन जैसे समुद्र के साथ संबंध रखने वाले लोग इसे महसूस करते हैं।
दर्शन किनी बताते हैं, "मैं साढ़े चार बजे सुबह सुबह उठा, एक घंटे के अंदर चारकोप में अपने घर से निकला और यहां आया। इसके बाद एक दोस्त के साथ एक नाव में समुद्र में गए, हमने वहां जाल लगाया और बहुत लंबे समय तक इंतज़ार किया।"
पांच-छह घंटे काम करने के बाद दर्शन अपनी थकान को पीछे छोड़ते अपने पिता के साथ जाल समेटने लगे, लेकिन जाल खाली थे। दर्शन बताते हैं, "एक समय था, आप जाल डालते तो एक टोकरी मछली आ जाती थी, लेकिन आज यहां एक भी मछली नहीं है।"
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
साढ़े तीन से चार साल की उम्र से ही दर्शन समुद्र में जाते रहे हैं, आज उनकी उम्र 36 साल की हो चुकी है। इन तीन दशकों के दौरान अरब सागर में आए परिवर्तनों को उन्होंने बेहद क़रीब से देखा है।
वो कहते हैं, "मेरे दादाजी कहा करते थे कि खाड़ी में जितने लोग थे, उतने ही शार्क, बाघ, स्टिंग-रे, डॉल्फ़िन थे। जो मछलियां पहले, समुद्र तट से दो से पांच किलोमीटर की दूरी पर मिलती थीं, उसके लिए अब तीस या चालीस किलोमीटर जाना पड़ता है। दर्शन जैसे पारंपरिक मछुआरे समुद्र के इतने अंदर जाने का जोख़िम नहीं उठा सकते, साधन नहीं जुटा सकते।"
"डीज़ल की बढ़ती क़ीमतों, ट्रॉलरों द्वारा मशील से मछली पकड़ना और 'पर्स सीन' वाले जाल, समुद्री तटों को पहले से ही नुक़सान पहुंचा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के संकट ने समस्या को और जटिल बनाया है।"
दर्शन किनी कहते हैं, "तूफ़ान आने पर मछली पकड़ना बंद करना पड़ता है। गर्मी का असर मछली पर भी पड़ता है। मछली जिसे खाती है, वो प्लवक मरकर ऊपर की ओर तैरते हैं। समुद्र में वे नज़र आते हैं।" मछुआरे ही नहीं बल्कि जलवायु संकट से महिला मछुआरे भी प्रभावित हुई हैं।
संकट में महिलाओं की आय
नयना भंडारी पिछले कई सालों से चारकोप बाज़ार में मछली बेच रही हैं। हर सुबह बाज़ार खुलते ही उन्हें ग्राहकों का इंतज़ार होता है।
नयना कहती हैं, "इस साल मछलियां कम और महंगी हो गई हैं। पहले हमें बहुत सारी मछलियां मिलती थीं और वह सस्ती होती थीं। अब ऐसा नहीं रहा।" नयना जैसी महिलाएं मछली पकड़ने के व्यवसाय की रीढ़ हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार , महाराष्ट्र की समुद्री तटरेखा साढ़े सात सौ किलोमीटर लंबी है। देशभर में मछली बेचने के कारोबार में 28 लाख लोग हैं।
मछली पकड़ने के बाद, उसे बाज़ार तक लाने और बेचने के काम धंधों में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 70 प्रतिशत है और मछली की घटती संख्या से उनकी आमदनी पर सीधा असर पड़ रहा है।
मछलियों के बढ़ते दाम
इस साल मछली की कीमतों में बढ़ोत्तरी मछली की उपलब्धता में गिरावट के कारण भी है। मालाड के होलसेल मार्केट में मछली ख़रीदने पहुंची मनीषा ने बताया, "डेढ़ साल पहले एक जोड़ी पॉपलेट मछली 1100 रुपये में मिलती थी, अब उसकी क़ीमत 2500 रुपये हो चुकी है।"
उन्होंने बताया, "पहले मछलियां बड़ी-बड़ी होती थीं और आपको अलग-अलग तरह की मछलियां मिल जाती थीं। पहले हम सप्ताह में तीन या चार दिन मछली खाते थे, कभी-कभी दो बार। अब हम सप्ताह में एक या दो बार खाने का ख़र्च उठा सकते हैं।"
मछली कम तापमान में क्यों रहती हैं?
1951 और 2015 के बीच, भूमध्यरेखीय क्षेत्र में हिंद महासागर की सतह के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई। साल 2020-21 में अरब सागर में दो तूफ़ान आए थे।
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में पश्चिमी हिंद महासागर में गर्मी की लहरें बढ़ी थीं।
पहले मछुआरों को पता होता था कि समुद्र में मछलियाँ कहाँ से आती हैं। लेकिन अब उनको पता नहीं चल रहा है क्योंकि जब पानी गर्म होता है, तो मछलियाँ नई जगहों पर चली जाती हैं।
समुद्री जीव विज्ञानी वर्धन पाटनकर सरल भाषा में बताते हैं, "जिस तरह हम इमारतों में रहते हैं, हमें अपने घरों की ज़रूरत होती है। मछलियों को भी रहने के लिए एक आवास की आवश्यकता होती है। कोरल मछलियों को ऐसा ही आवास उपलब्ध कराते हैं, ये आवास तापमान में परिवर्तन से नष्ट हो जाते हैं।"
बढ़ते तापमान का असर मछलियों की प्रजनन क्षमता पर भी पड़ता है। वर्धन कहते हैं, "मछली की कई प्रजातियां प्रजनन के लिए विभिन्न रासायनिक संकेतों पर निर्भर करती हैं। कुछ शर्तों के तहत, नर और मादा एक ही समय में अपने युग्मक छोड़ते हैं और नए जीव बनते हैं।"
"लेकिन जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, वैसे-वैसे महासागरों की रासायनिक संरचना में भी बदलाव होता है। यह मछली की प्रजनन क्षमता को बदल देती है। यह संतुलन को बिगाड़ देती है और मछली की आबादी पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है।"
"एक समय था जब कहा जाता था कि समुद्र में अनगिनत मछलियाँ हैं और इन पर जलवायु परिवर्तन का असर नहीं पड़ता है।"
मछली पकड़ने के भ्रामक आँकड़े?
केंद्र सरकार के मत्स्य पालन विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दस सालों में समुद्र से पकड़ी गई मछलियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। यह 2012 में 32 लाख टन से बढ़कर 2020 में 37 लाख टन हो गया था।
ऑल महाराष्ट्र फिशरमैन एक्शन कमेटी के देवेंद्र दामोदर टंडेल के मुताबिक ये आंकड़े सही तस्वीर नहीं दिखाते हैं। उनके अनुसार, "वर्ष के कुल आंकड़ों को देखने के बजाय, हमें उन महीनों को देखना होगा जिनमें इतनी सारी मछलियाँ पाई गईं।"
"पर्स साइन (इसमें छेद के साथ मछली के आकार का एक बड़ा जाल) का उपयोग करने वाली मछली पकड़ने वाली नौकाओं का भी मुद्दा है। प्रतिबंधित क्षेत्रों में मछली पकड़ने के लिए अक्सर ऐसी नावों का उपयोग किया जाता है।"
उन्हें डर है कि अगर यही स्थिति बनी रही तो महाराष्ट्र के तट के पास की मछलियां दो-तीन साल में विलुप्त हो जाएंगी।
भविष्य में क्या होगा
देवेंद्र टंडेल इस बात पर अफ़सोस जताते हैं कि लोग अभी समुद्र में हो रहे बदलावों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। वो कहते हैं, "पेड़ हमारे सामने हैं। लेकिन हम नहीं देखते कि समुद्र में क्या हो रहा है।"
तटीय क्षेत्र के लोगों के लिए भोजन और आय का एक मुख्य स्रोत संकट में है। इसका असर मछली बेचने वालों के पेट के साथ ही मछली खाने वालों के पेट पर भी पड़ा है।
फ़िलहाल दर्शन के परिवार ने रोज़ी-रोटी के लिए व्हाट्सऐप पर मछलियां बेचना शुरू कर दिया है, यानी छोटे-मोटे ऑर्डर व्हाट्सऐप पर मंगाकर उसकी आपूर्ति करते हैं और ये मछलियां वे होलसेल मार्केट से लाते हैं। उन्हें उम्मीद है कि बारिश के बाद मछलियां फिर से समुद्र तटीय इलाकों में वापस आ जाएंगी।