छोटे और कमर्शियल वाहनों के लिए सबसे अच्छे विकल्प क्या हैं। बैटरी-चालित इलेक्ट्रिक वाहन सस्ते हो रहे हैं और दूसरी तरफ ई-फ्यूल भी बाजार में उतरने को तैयार हैं।
टेस्ला के इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) प्रचार से आगे, बैटरी चालित कारें आखिरकार बाजार पर छाने लगी हैं जहां लंबे समय तक पेट्रोलियम से चलने वाले इंजन का बोलबाला रहा है। नॉर्वे में बिकी 84 प्रतिशत नयी कारें इलेक्ट्रिक थीं।
उच्च कार्बन वाले पेट्रोल वाहनों की तुलना में, शून्य उत्सर्जन वाली कारें कम शोर करती हैं। ज्यादा तेजी से रफ्तार पकड़ती हैं और चलते हुए सीओटू नहीं छोड़ती। कई देशों में चार्जिंग की सुविधा में विस्तार होने से इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति उत्साह और बढ़ा है।
इलेक्ट्रिक वाहन मिलते जल्दी और सस्ते
हाल तक इलेक्ट्रिक वाहन, तेल के वाहनों के मुकाबले कमोबेश दोगुनी कीमत पर मिलते थे। लेकिन इलेक्ट्रिक मॉडल, ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस (बीएनईएफ) के एक अध्ययन के मुताबिक, फॉसिल ईंधन वाले वाहनों से कीमत के लिहाज से 2026 तक बराबरी पर आ जाएंगे और दशक के अंत तक 10-30 फीसदी सस्ते हो जाएंगे।
इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ एक अच्छी बात ये है कि ड्राइविंग के दौरान वे करीब 95 फीसदी ऊर्जा की बचत करते हैं जबकि तेल से चलने वाले इंजन दो तिहाई ऊर्जा, गर्म होने में ही गंवा देते हैं। तेल की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई हासिल कर रही हैं, ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहनों को चलाना और सस्ता पड़ने लगा है।
दो यूरो प्रति लीटर की मौजूदा तेल कीमत को देखते हुए, एक डीजल कार को 100 किलोमीटर चलाने में 14 यूरो खर्च होंगे। इसकी तुलना में, 100 किलोमीटर के सफर के लिए करीब 15 किलोवाट बिजली की खपत करने वाले इलेक्ट्रिक वाहन को चलाने में, प्रति किलो वॉट 20 यूरो सेंट के औसत बिजली खर्च के साथ, महज तीन यूरो की लागत आती है।
कीमत में इस महत्त्वपूर्ण लाभ की वजह से, जानकार उम्मीद करते हैं मुख्यधारा के बाजार में बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहनों का जल्द ही राज होगा। बीएनईएफ के अध्ययन का अंदाजा है कि यूरोपीय संघ में नयी बिकी 70 फीसदी कारें, 2030 तक बैटरी चालित हो सकती हैं।
उपभोक्ता के स्तर पर ईवी क्रांति क्षितिज पर उभर आई है, ऐसे में भारी कमर्शियल वाहन जैसे ट्रक, रेल, विमान और जहाज ऐसी प्रौद्योगिकी को कितना दूर तक अमल में ला सकते हैं?
भारी परिवहन के लिए हाइड्रोजन पर हावी बैटरियां
इस बारे में बहस उठने लगी हैं कि एक दिन में सैकड़ों किलोमीटर चलने वाले ट्रकों में शून्य उत्सर्जन कैसे हासिल किया जाए।
माल ढोने वाले इलेक्ट्रिक वाहन तेजी से सस्ते होने लगे हैं, लेकिन वे कम बिकेंगे। क्योंकि लंबी दूरी वाले मार्गों में चार्जिंग स्टेशन, निरंतरता में लगाने होंगे।ट्रकों के लिए एक कार्बन-न्यूट्रल विकल्प है हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स जो वाहनों में ऊर्जा के लिए बिजली पैदा करती हैं।
दिक्कत यही है कि इसकी कीमत ज्यादा है। हाइड्रोजन से चलने वाले ट्रक, सामान्य इलेक्ट्रिक ट्रकों के मुकाबले ज्यादा महंगे हैं। जर्मन वैज्ञानिक शोध संस्थान, फ्राउनहोफर आईएसई के हाल के अध्ययन के मुताबिक, उनकी ताकत भी कम होती है।
मान, स्कानिया और फॉक्सवागेन जैसे ब्रांडों की निर्माता और एक प्रमुख कंपनी, ट्रैटन समूह ने एक अध्ययन कराया था। उसमें इस बात की पुष्टि की गई कि बैटरियों वाले ई-ट्रक, हाइड्रोजन की तुलना में लागत बचाते हैं।
ट्रैटन समूह की मुख्य तकनीकी अधिकारी कैथरीना मोडाल-निलसन ने एक बयान में बताया कि, "ट्रकों के मामले में खासकर लंबी दूरियों में, विशुद्ध रूप से ई-ट्रक ज्यादा सस्ते और ज्यादा पर्यावरण अनुकूल समाधान होंगे।"
उनके मुताबिक, "ऐसा इसलिए है क्योंकि हाइड्रोजन ट्रकों में एक निर्णायक नुकसान है। करीब एक चौथाई आउटपुट ऊर्जा ही वाहन को चलाती है, तीन चौथाई परिवर्तन की प्रक्रियाओं में गंवा दी जाती है। ई-ट्रकों के मामले में, ये अनुपात उलट जाता है।
होड़ में बने रहने के लिए ई-ईंधनों का संघर्ष
सिंथेटिक ई-फ्यूल के उत्पादन में वर्षों लगे हैं, उन्हें अब तेल से चलने वाली कारों और ट्रकों के लिये ऐसे विकल्प के रूप में प्रोत्साहित किया जा रहा है जिनका जलवायु पर असर नहीं होता। ये ईंधन पानी और नवीनीकृत बिजली से पैदा हरित हाइड्रोजन का इस्तेमाल करते हैं। उसे सीओटू के साथ मिलाकर डीजल, गैसोलीन या केरोसीन जैसा सिंथेटिक ईंधन बनाया जाता है।
जर्मन कार निर्माता पोर्शे ने इस प्रौद्योगिकी में भारी निवेश किया है। उसका इरादा इस साल एक ई-फ्यूल तैयार करने का है। कंपनी के प्रवक्ता पीटर ग्रेव के मुताबिक "इससे तेल फूंकने वाले वाहनों का करीब करीब जलवायु निरपेक्ष ऑपरेशन चालू हो जाएगा।"
हालांकि ई-फ्यूल, शून्य कार्बन की दुनिया में तेल फूंकने वाले इंजनों की लाइफ बढ़ाने में मददगार तो हो सकता है लेकिन बैटरी तकनीकी के मुकाबले वे कमतर ही होते हैं। और वे काफी महंगे भी हो जाते हैं।
जर्मन ऊर्जा एजेंसी के कराए एक अध्ययन के मुताबिक, ई-फ्यूल पर चलने वाले वाहनों की खपत बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहनों से पांच गुना ज्यादा होती है। भविष्य में उनसे प्रति किलोमीटर का सफर करीब आठ गुना ज्यादा महंगा होगा।
जीरो कार्बन वाले जहाज, ट्रेन और विमान
प्रोपेलर से चलने वाले छोटे विमान और यात्री नावों में अब ऊर्जा के लिए बैटरी का इस्तेमाल बढ़ने लगा है, वहीं ज्यादा ऊर्जा खाने वाली ट्रेनों में ओवरहेड इलेक्ट्रिक तार काम आते हैं। उनका इस्तेमाल ई-बसों और ई-ट्रकों में भी अपेक्षाकृत कम कीमत पर किया जा सकता है।
आज की बैटरी तकनीक कमर्शियल विमानों और बड़े मालवाहक जहाजों के लिए भी अपर्याप्त है। लेकिन यहीं पर ई-ईंधन एकमात्र जलवायु अनुकूल विकल्प हो सकता है।
दुनिया का पहला कमर्शियल ई-ईंधन संयंत्र दक्षिणी चिली में बनाया जा रहा है। जर्मनी के ही प्रौद्योगिकी सिरमौर सीमेंस एनर्जी के साथ मिलकर पोर्शे, कम कीमत वाली पवन ऊर्जा की मदद से कार्बन न्यूट्रल ई-ईंधन बनाना चाहती है।
फिनलैंड की एलयूटी यूनिवर्सिटी में वैश्विक ऊर्जा परिदृश्यों के विशेषज्ञ क्रिस्टियान ब्रेयर का अनुमान है कि "दस साल में, ऐसी परियोजनाएं मशरूम की तरह जहातहां सामने आ जाएंगी और बिजली पानी और हवा से मिलकर जलवायु तटस्थ ईंधन बनाया जाने लगेगा।"
शून्य उत्सर्जन भविष्य की ओर
इलेक्ट्रिक वाहन बैटरियां, अपने संभावित मुख्तलिफ फायदों की बदौलत कार्बन तटस्थ परिवहन वाले भविष्य में ई-ईंधनों से बाजी मार लेंगी।
करीब 50 किलोवाट घंटों की भंडारण क्षमता के साथ, ईवी बैटरियां कार को भी ऊर्जा दे सकती हैं और जर्मनी में एक सप्ताह के लिए दो व्यक्तियों वाले घर की औसत बिजली जरूरत को पूरी कर सकती हैं।
मकान मालिक अपने घरों की छत पर लगी सस्ती सौर ऊर्जा से दिन में कार की बैटरी चार्ज कर सकते हैं और शाम ढलते ही उससे घर में बिजली चला सकते हैं।
फॉक्सवागेन जैसी कार बनाने वाली कंपनियां इस दोहरे काम के लिए अपने मॉडलों को तैयार कर रही हैं। ऊर्जा आपूर्ति करने वाले भी ईवी बैटरियों के उपयोग में दिलचस्पी लेने लगे हैं। उसकी मदद से वे भारी मांग के समय पावर ग्रिड को पावर दे सकते हैं।
फिलहाल ये तकनीक अभी शुरुआती चरण में हैं, चुनिंदा बैटरी वॉल बक्से ही बिजली को वापस ग्रिड में डाल सकते हैं। ऊर्जा के सप्लायर अभी कार मालिकों को बिजली सप्लाई करने के लिए भुगतान करने में समर्थ नहीं हैं। हालांकि जानकार कहते हैं कि ईवी को ग्रिड फीडिंग से जोड़ने वाले लोग, हर साल करीब 800 यूरो कमा सकते हैं। ये बस एक और पहल है जो इलेक्ट्रिक वाहनों को बड़े पैमाने पर खरीदने की मुहिम को बढ़ाएगी।