स्टीफ़न डॉलिंग, बीबीसी फ़्यूचर
सौ साल पहले प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान क़रीब दो करोड़ लोग मारे गए थे। उस युद्ध के परिणामों से दुनिया अभी उबरी नहीं थी कि उसे अचानक एक और भयानक संकट ने घेर लिया, और ये था फ़्लू का प्रकोप। 'स्पेनिश फ़्लू' नाम से जानी जाने वाली यह महामारी पश्चिमी मोर्चे पर स्थित छोटे और भीड़ वाले सैन्य प्रशिक्षण शिविरों में शुरू हुई। इन शिविरों और ख़ासतौर पर फ़्रांस की सीमा के क़रीब की ख़ंदकों मे गंदगी की वजह से ये बीमारी पनपी और तेज़ी से फैली।
युद्ध तो नवंबर 1918 में समाप्त हो गया था, लेकिन घर वापिस लौटने वाले संक्रमित सैनिकों के साथ यह वायरस भी अन्य क्षेत्रों में फैलता गया। इस बीमारी की वजह से बहुत सारे लोग मारे गए। माना जाता है कि स्पेनिश फ़्लू से 5 से 10 करोड़ के बीच लोग मारे गए थे। दुनिया में उसके बाद भी कई महामारियां फैलीं लेकिन इतनी घातक और व्यापक कोई और महामारी नहीं रही।
फ़िलहाल जब दुनिया में COVID-19 का प्रकोप सुर्खियों मे है, तो बीबीसी फ़्यूचर नज़र डाल रहा है 100 साल पहले फ़ैले स्पेनिश फ़्लू के कारण पैदा हुई स्थिति पर, ताकि आप जान सकें कि उस महामारी से हमने क्या सबक सीखे थे।
निमोनिया सबसे घातक साबित हुआ
COVID-19 से मरने वाले कई लोग एक प्रकार के निमोनिया का शिकार हुए हैं जो वायरस से लड़ने में कमज़ोर हो चुके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर हावी हो जाता है। COVID-19 और स्पेनिश फ़्लू के बीच यह एक समानता है, हालांकि स्पेनिश फ़्लू की तुलना में COVID-19 से संक्रमित लोगों की मृत्यु दर काफ़ी कम है।
अभी तक इस बीमारी से मरने वाले लोगों मे अधिकांश बूढ़े लोग हैं या ऐसे लोग जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर थी। ऐसे लोगों में संक्रमण भी आसानी से हुआ और उन्हें निमोनिया हो गया जिसका सीधा असर उनके फेफड़ों की क्षमता पर पड़ा।
कुछ क्षेत्र प्रकोप से बच गए
जब स्पेनिश फ़्लू फैला था तब दुनिया में हवाई यात्रा की शुरुआत बस हुई थी। यह बड़ी वजह थी कि उस समय दुनिया के दूसरे देश बीमारी के प्रकोप से अछूते रहे। उस समय बीमारी रेल और नौकाओं में यात्रा करने वाले यात्रियों के ज़रिए ही फैली इसलिए उसका प्रसार भी धीमी गति से हुआ।
कई जगहों पर स्पेनिश फ़्लू को पहुंचने में कई महीने और साल लग गए, जबकि कुछ जगहों पर यह बीमारी लगभग पहुंची ही नहीं। उदाहरण के तौर पर, अलास्का। इसकी वजह थी वहां के लोगों द्वारा बीमारी को दूर रखने के लिए अपनाए गए कुछ बुनियादी तरीके।
अलास्का के ब्रिस्टल बे इलाक़े में यह बीमारी नहीं फैली। वहाँ के लोगों ने स्कूल बंद कर दिए, सार्वजानिक जगहों पर भीड़ के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी और मुख्य सड़क से गाँव तक पहुँचने बाले रास्ते बंद कर दिए।
अब कोरोना वायरस को रोकने के लिए उसी तरह के मगर आधुनिक तरीक़े चीन और इटली में अपनाए जा रहे हैं जहाँ लोगों की आवाजाही और उनके भीड़ वाली जगहों जाने को नियंत्रित किया जा रहा है।
अलग लोग - अलग वायरस
डॉक्टर स्पेनिश फ़्लू को 'इतिहास का सबसे बड़ा जनसंहार' बताते हैं। बात केवल यह नहीं है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग इससे मारे गए बल्कि यह कि इसका शिकार हुए कई लोग जवान और पूरी तरह स्वस्थ थे।
आमतौर पर स्वस्थ लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता फ़्लू से निपटने में सफल रहती है। लेकिन फ़्लू का यह स्वरूप इतनी तेज़ी से हमला करता था कि शरीर की प्रतिरोधक शक्ति पस्त हो जाती। इससे सायटोकिन स्टॉर्म नामक प्रतिक्रिया होती है और फेफड़ों में पानी भर जाता है जिससे यह बीमारी अन्य लोगों में भी फैलती है। उस समय बूढ़े लोग इसका शिकार कम हुए क्योंकि संभवत: वो 1830 में फैले इस फ़्लू के एक दूसरे स्वरूप से जूझ चुके थे।
फ़्लू की वजह से विश्व के विकसित देशों में सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रणाली में काफ़ी विकास हुआ क्योंकि सरकारों और वैज्ञानिकों को अहसास हुआ की महामारियां बहुत तेज़ी से फैलेंगी। कोरोना वायरस से ज़्यादा ख़तरा बूढ़े और पहले से बीमार लोगों को है। हालांकि इस बीमारी में मृत्यु दर कम है किंतु 80 से अधिक उम्र के लोगों में यह सबसे अधिक है।
सार्वजानिक स्वास्थ्य सबसे प्रभावी प्रतिरोध
स्पेनिश फ़्लू विश्व में तब फैला जब वह प्रथम युद्ध से उबर ही रहा था और उस समय संसाधन सैन्य कार्यों में लगा दिए गए थे और सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रणाली की परिकल्पना अधिक विकसित नहीं थी। कई जगहों पर केवल मध्य और उच्च वर्ग के लोग ही डॉक्टरों से इलाज करवाने की क्षमता रखते थे।
स्पेनिश फ़्लू से मरने वालों में अधिकांश लोग झुग्गियों या शहरों के ग़रीब इलाकों में रहते थे जहां सफ़ाई और पोषक आहार की कमी थी। शहरी इलाकों में मामले दर मामले लोगों का इलाज करना महामारी से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
सरकारों को युद्ध स्तर पर संसाधन लगाने होंगे, संक्रमित लोगों को अलग रखना होगा, और उसमें भी बच्चों को गंभीर रूप से संक्रमित लोगों से अलग रखना होगा। साथ ही लोगों की आवजाही पर नियंत्रण लगाने पड़ेंगे ताकि बीमारी ख़ुद ही ख़त्म हो जाए।
कोरोना वायरस से निबटने के लिए आज जो सार्वजानिक स्वास्थ्य के कदम उठाए जा रहे हैं वो स्पेनिश फ़्लू के परिणामों से सीखे गए सबक का ही नतीजा हैं।