Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

मज़दूर से 'बाघ बहादुर' बनने की कहानी

हमें फॉलो करें मज़दूर से 'बाघ बहादुर' बनने की कहानी
, सोमवार, 9 मई 2016 (16:40 IST)
- सीटू तिवारी, पटना  
 
बाघ बहादुर इतने नाटे क़द के हैं कि लगता है, एक स्वस्थ बाघ भी उनकी कमर से  ऊंचा होगा। फिर बाघ बहादुर के इशारे पर बाघ कैसे नाचते होंगे? यह सवाल करने भर  की देर थी और बहादुर ने पीले पड़ गए अख़बार की कतरनों का ढेर थमा दिया।
उन कतरनों में छपी तस्वीरों में राम प्यारे राम उर्फ़ 'बाघ बहादुर', बाघ के मुंह से मुंह  सटाए और उनके साथ सोए हुए दिखते हैं। किसी फ़ोटो में बाघ के साथ उनका पूरा  परिवार भी दिखता है।   अप्रैल में बाघ बहादुर पटना के संजय गांधी जैविक उद्यान की पशुपालक की नौकरी से  रिटायर हो गए हैं। बाघों के प्रति अपने लगाव की वजह से ही, वो बाघ बहादुर के नाम  से लोकप्रिय हुए।
webdunia
उनका जीवन किसी फ़िल्म की पटकथा जैसी है। एक ग़रीब परिवार में जन्मे और  सातवीं तक पढ़े, बाघ बहादुर को कमाने-खाने की चिंता पटना के चिड़ियाघर तक ले  आई। 
webdunia
वह 1972 का साल था, जब पटना के चिड़ियाघर की बाउंड्री का काम चल रहा था। पटना के पास फुलवारी शरीफ़ के रानीपुर गांव में रहने वाले राम प्यारे को पता चला कि  वहां मज़दूर की ज़रूरत है।  फिर तीन रुपए की मज़दूरी पर राम प्यारे वहां मज़दूरी करने लगे। राम प्यारे बताते हैं, कि जब बांउड्री का काम पूरा हुआ तो मैं पौधों की देखभाल करने लगा। उस वक़्त चिड़ियाघर में सिर्फ़ मोर और हिरण थे। 
 
धीरे-धीरे हम जानवरों की देखभाल करने लगे, तो सरकारी नौकरी पर रख लिया गया और चिड़िया केज की जिम्मेदारी दी गई। 1984 में चिड़ियाघर के तत्कालीन निदेशक पीके सेन ने राम प्यारे को चिड़िया केज से हटाकर बाघों के पास लगा दिया और धीरे- धीरे उन्हें बाघों से लगाव हो गया।
 
पीके सेन के बाद आए निदेशक पीआर सिन्हा ने राम प्यारे को विदेशों में कई जगह  बाघ और इंसान के दोस्ताना संबंधों के बारे में बताया। उसके बाद तो बाघों के साथ राम प्यारे की दोस्ती कुछ यूं हुई कि उनके साथ सुबह की सैर, सोना और खेलना ही उनका जीवन बन गया।
webdunia
फ़ोटो जर्नलिस्ट संजीव बनर्जी बताते हैं कि 1987 से 2000 तक बहुत सारे लोग  चिड़ियाघर राम प्यारे को ही देखने आते थे। उनके मुताबिक़, "राम प्यारे करिश्मा से लगते थे और कई बार उनकी बाघ से नज़दीकी डराती थी। ऐसी फोटो तक को खींचने में डर लगता था, लेकिन राम प्यारे के चेहरे पर डर का कोई निशान नहीं होता था, बल्कि लगता था कि उसे सबसे ज्यादा सुकून बाघों के पास ही मिलता है। हालांकि बाघों से राम प्यारे की दोस्ती कई बार उन्हें मौत के दरवाज़े तक ले गई।
 
नवंबर 1991 में सोनू नाम के बाघ ने राम प्यारे पर जानलेवा हमला किया था, लेकिन  उस हमले से भी उन्हें सोनी और रिंकी नाम की बाघिन ने ही बचाया था। उस क़िस्से को याद करते हुए राम प्यारे की आंखें चमक उठती हैं।
 
वो बताते हैं- सोनी को ज़्यादा तवज्ज़ो देने से सोनू बाघ नाराज़ हो गया था। उसने  नाराज़गी में छलांग लगाई और मेरे कंधों पर अपने पंजे रखकर अपना विशालकाय मुंह  खोला ही था कि मुझे बचाने के लिए सोनी और रिंकी आ गए। उन दोनों को देखकर  सोनू किनारे हो गया लेकिन बाद में वो मेरे पास आकर सर झुकाए देर तक खड़ा रहा  और मैं उसे प्यार से सहलाता रहा। 
 
बाघिन रिंकी का राम प्यारे से लगाव की भी एक कहानी है। सफेद रंग की इस बाघिन को जब हार्निया हुआ, तो उसके लिए लेट पाना भी मुश्क़िल होता था। इस दौरान 15 दिनों तक रामप्यारे ही रिंकी को हाथ में लेकर लेटे रहते थे। राम प्यारे कहते हैं कि उस वक़्त तो घर भी बमुश्क़िल जाना होता था। घर जाता था, तो पत्नी कहती थी कि तुम्हारे शरीर से बाघ जैसी बदबू आती है।
 
जब कभी राम प्यारे बाघ से घायल हो जाते थे, तो वो देर रात घर जाते थे और अगली  सुबह जल्दी निकल जाते थे। इस तरह से वो घर के लोगों से अपनी चोट को छुपा लेते थे और घर पर कोई झगड़ा नहीं होता था।
 
1987 के अख़बारों में इस क़िस्से की भी बहुत ही दिलचस्प रिपोर्टिंग देखने को मिलती  है। 1984 में पटना चिड़ियाघर में महज़ चार बाघ थे, लेकिन 1994 तक इनकी संख्या 15 हो गई थी। सरफराज़ नाम के विकलांग बाघ को ठीक करने का श्रेय भी राम प्यारे को जाता है। 

बख़्तियारपुर में खूंखार तेंदुए को पकड़ने पर राजद सुप्रीमो लालू यादव ने उन्हें एक हज़ार  रुपए का इनाम भी दिया था। बाघ बहादुर का उदविलाव, लकड़बग्घा और सांपों के साथ भी याराना बहुत चर्चा में रहा  है। दिसंबर 1987 में पत्रकार सैली वॉकर ने बाघ को बकरी का दूध पिलाते हुए, बाघ बहादुर की तस्वीर को 'ज़ू प्रिंट' मैंग्ज़ीन के कवर पेज पर छापी थी।
 
राम प्यारे को अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ़ ज़ू कीपर्स का सदस्य भी बनाया गया। साल 2003 के क़रीब ज़ू प्रशासन ने बाघ बहादुर को बाघ केज से हटा दिया था। बाघों के पास ड्यूटी के दौरान बाघ बहादुर ने सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक की  नौकरी नहीं की। 
 
उन्होंने इस दौरान इंसान से ज़्यादा, बाघों के पास वक़्त बिताया। अब रियायर होने के बाद, क्या उन्हें बाघों की याद सताएगी? बाघ बहादुर उदास होकर कहते हैं कि बाघ से तो पहले ही दूर हो गया था, अब उन्हें देखने के लिए भी आंखें तरस जाएंगीं। 

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कंगना का झन्नाटेदार तमाचा