सौतिक बिस्वास (बीबीसी संवाददाता)
साढ़े 8 लाख मामलों और 1 लाख से अधिक मौतों के बाद भारत में कोरोनावायरस महामारी की रफ्तार धीमी हो रही है? भारत में इस महीने हर दिन औसतन 64,000 केस आए, जो कि सितंबर के आखिरी 2 हफ़्तों के प्रतिदिन के औसत से कम है, जबकि 86,000 केस आ रहे थे।
इससे पहले सितंबर महीने में औसतन 93,000 मामले प्रतिदिन आ रहे थे। राज्यों में मरने वालों की संख्या भी कम हुई है। हालांकि टेस्टिंग की संख्या पिछले महीनों के मुकाबले बढ़ी है। अगस्त में हर दिन औसतन क़रीब 11 लाख से अधिक टेस्ट किए जा रहे हैं। अक्टूबर में हर दिन क़रीब 70,000 टेस्ट किए जा रहे थे और सितंबर में ये संख्या 10.5 लाख थी।
सा लग रहा है कि महामारी का प्रभाव कम हो रहा है लेकिन कई जानकारों का मानना कि इन संख्याओं को एहतियात के साथ पढ़ना चाहिए। उनका मानना है संख्या में कमी आना एक सकारात्मक सिग्नल है लेकिन ये कहना कि महामारी ख़त्म हो रही है, जल्दबाज़ी होगी, क्योंकि सिर्फ टेस्ट का बढ़ना और मामलों का गिरना ही किसी महामारी को समझने के लिए काफ़ी नहीं है। हर दिन होने वाले कुल टेस्ट में से आधे रैपिड एंटीजेन तकनीक से किए जा रहे हैं। इससे नतीजे जल्दी आ रहे हैं, ये तकनीक किफ़ायती भी है लेकिन कई मामलों में ये सटीक नतीजे नहीं देतीं। कई बार 50 प्रतिशत तक नतीजे गलत होते हैं, वहीं पीसीआर तकनीक से नतीजे आने में समय भी ज़्यादा लगता है और यह महंगा भी है।
देश के जाने-माने वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील के मुताबिक, 'संक्रमण के मामलों में कमी रैपिट टेस्टिंग के गलत नतीजों के कारण है या सही में मामले कम हो रहे हैं, ये कहना मुश्किल है।' उनके मुताबिक इसका पता तभी लगाया जा सकता है, जब सरकार डेटा जारी कर बताए कि कितने पीसीआर टेस्ट और कितने एंटीजेन टेस्ट किए जा रहे हैं। तभी हर दिन आने वाले मामलों से तुलना की जा सकती है।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. श्रीनाथ रेड्डी के मुताबिक भारत में 'ऑन डिमांड टेस्टिंग' शुरू हो गई है जिसके कारण मुमकिन है कि बिना लक्षण वाले लोगों की टेस्टिंग में इज़ाफ़ा हुआ हो। हालांकि कई एंटी बॉडी सर्वे और दूसरी रिपोर्ट्स से पता चलता है कि भारत में रिपोर्ट नहीं किए गए मामलों की संख्या बहुत अधिक है।
मिशिगन विश्वविद्यालय के ब्र्हामर मुखर्जी, जो इस महामारी को ट्रैक कर रहे हैं, बताते हैं कि भारत में संक्रमित हो चुके लोगों की संख्या 12 से 13 करोड़ तक हो सकती है, जो कि आबादी का क़रीब 10 फ़ीसदी है। देशभर में हुए एंटीबॉटी टेस्ट बताते हैं कि क़रीब 9 करोड़ लोग संक्रमित चुके हैं, जो कि आधिकारिक आंक़डों से 15 गुना अधिक है।
फिर ये कैसे पता चलेगा कि महामारी की रफ़्तार धीमी हो रही है या नहीं? डॉक्टर रेड्डी के मुताबिक 'मौत के आंकड़ों को ट्रैक करने से ये जानकारी मिल सकती है। अगर थोड़े कम मामले भी रिपोर्ट किए जा रहे हैं, तब भी मरने वाले के 7 दिन का मूविंग एवरेज बता सकता है ट्रेंड गिर रहा है या नहीं? हमें इस पर ध्यान रखना होगा।'
महामारी के 4 मुख्य चरण होते हैं- स्पार्क, ग्रोथ, पीक और डिक्लाइन। लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजीन के एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के वैज्ञानिक एडम कचरास्की के मुताबिक कई मामलों में सभी चरण कई बार आते हैं। साल 2009 में स्वाइन फ़लू बहुत तेज़ी से बढ़ा और जुलाई में पीक पर पहुंचा। इसके बाद फिर से बढ़ोतरी दर्ज की गई और अक्टूबर के अंत में एक और पीक आया।
डॉक्टर मुखर्जी के मुताबिक सुरक्षा का ये अहसास 'क्षणिक और अल्पकालिक' है। त्योहारों का मौसम आने वाला है और तब लोग एक-दूसरे से ज़्यादा मिलेंगे और एक 'सुपर स्प्रेडर इवेंट' से वायरस का कोर्स 2 हफ़्ते के अंदर ही बदल सकता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम एहतियात बरतते रहें, मास्क का इस्तेमाल करते रहें और हाथ धोने की आदत को जारी रखें और भीड़भाड़ से दूर रहें।